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तो क्या लोकसभा चैनल के संपादक का पद फिक्स था?

एक बात सच है कि सफेदपोश पॉवर के सामने मौजूदा समय में अनुभव, हुनर व ज्ञान की कीमत बहुत कम आंकी जा रही है। लोकसभा सभा चैनल के संपादक का पद पिछले कुछ माह से रिक्त है उसको भरने के लिए सरकार द्वारा आवेदन मांगे गए। मीडिया के कई धुरंधरों ने इसके लिए आवेदन भी किया। लेकिन उसके बाद अंदरखाने जो खेल खेला गया, वह किसी तमाशे से कम नहीं था।

<p>एक बात सच है कि सफेदपोश पॉवर के सामने मौजूदा समय में अनुभव, हुनर व ज्ञान की कीमत बहुत कम आंकी जा रही है। लोकसभा सभा चैनल के संपादक का पद पिछले कुछ माह से रिक्त है उसको भरने के लिए सरकार द्वारा आवेदन मांगे गए। मीडिया के कई धुरंधरों ने इसके लिए आवेदन भी किया। लेकिन उसके बाद अंदरखाने जो खेल खेला गया, वह किसी तमाशे से कम नहीं था।</p>

एक बात सच है कि सफेदपोश पॉवर के सामने मौजूदा समय में अनुभव, हुनर व ज्ञान की कीमत बहुत कम आंकी जा रही है। लोकसभा सभा चैनल के संपादक का पद पिछले कुछ माह से रिक्त है उसको भरने के लिए सरकार द्वारा आवेदन मांगे गए। मीडिया के कई धुरंधरों ने इसके लिए आवेदन भी किया। लेकिन उसके बाद अंदरखाने जो खेल खेला गया, वह किसी तमाशे से कम नहीं था।

इंटरव्यू लेने वाले तीन सदस्यों का पैनल गठित किया जिसमें तीनों को मीडिया की एबीसीडी का ठीक से ज्ञान नहीं था। पैनम में फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना, आईबी के एक नौकरशाह और लोकसभा अध्यक्षा का एक करीबी सख्स मौजूद थे। सूत्रों की माने तो लोकसभा संपादक का पद पहले से ही फिक्स था। इंटरव्यू लेना सिर्फ कागजी कार्रवाई करना भर था। इंटरव्यू देने गए 40 मीडिया के धुरंधरों में से कई वरिष्ठों को मैं करीब से जानता हुूुं। ज्ञानेंद्र नाथ बरतरिया जी व मुकेश जी के साथ मुझे काम करने का स्वभाग भी प्राप्त हुआ है इसलिए मैं उनकी उर्जा को हमेशा महसूस करता हूं।

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बरतरिया जो को 100 में से 39 व मुकेश जी को 35 नंबर दिए गए। जिसे नियुक्त किया गया है उनका नाम सीमा गुप्ता है। सीमा गुप्ता के पिता संघी हैं जिनका उन्हें फायदा मिला है। सीमा जी को सबसे ज्यादा 66 मिले हैं। उपरोक्त वरिष्ठों से सीमा जी का अनुभव काफी कम बताया जाता है। कुमार संजॉय सिंह भी गए थे साक्षात्कार देने उनके हिस्से में 33 नंबर आए। चर्चा यह भी थी कि अगर सीमा गुप्ता को संपादक नहीं बनाया जाता तो नवीन कुमार उर्फ नवीन गुप्ता को बनाया जाता। नवीन जी भाजपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं और कई चैनलों में काम कर चुके हैं। जब रिजल्ट आया तो सभी आवेदकों का यही मानना था कि पद पहले से ही फिक्स था तो यह नाटक क्यों किया गया।

रमेश ठाकुर

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विश्लेषक एवं युवा पत्रकार

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