Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

इबलीस की शैतानी ताकत के खिलाफ एकजुट हों आध्यात्मिकतावादी

केरल के बाद अब दिल्ली में भी मैगी की बिक्री को पंद्रह दिन के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। उधर सेना ने भी अपने डिपार्टमेंटल स्टोरों से मैगी की बिक्री पर रोक लगा दी है। मैगी को लेकर जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है। इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद से हुई जहां मैगी के नमूने प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजे गए थे जिसमें यह रिपोर्ट आई कि मैगी में जस्ते की मात्रा सुरक्षा मानकों से काफी ज्यादा है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में और साथ ही दूसरे राज्यों में भी ताबड़तोड़ मैगी के नमूनों का परीक्षण कराया गया। लगभग सभी जगह अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार मैगी के नूडल्स को खाना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद माना गया है। हालांकि बंगला देश ने मैगी को क्लीन चिट दे दी है। 

<p>केरल के बाद अब दिल्ली में भी मैगी की बिक्री को पंद्रह दिन के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। उधर सेना ने भी अपने डिपार्टमेंटल स्टोरों से मैगी की बिक्री पर रोक लगा दी है। मैगी को लेकर जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है। इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद से हुई जहां मैगी के नमूने प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजे गए थे जिसमें यह रिपोर्ट आई कि मैगी में जस्ते की मात्रा सुरक्षा मानकों से काफी ज्यादा है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में और साथ ही दूसरे राज्यों में भी ताबड़तोड़ मैगी के नमूनों का परीक्षण कराया गया। लगभग सभी जगह अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार मैगी के नूडल्स को खाना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद माना गया है। हालांकि बंगला देश ने मैगी को क्लीन चिट दे दी है। </p>

केरल के बाद अब दिल्ली में भी मैगी की बिक्री को पंद्रह दिन के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। उधर सेना ने भी अपने डिपार्टमेंटल स्टोरों से मैगी की बिक्री पर रोक लगा दी है। मैगी को लेकर जबरदस्त हंगामा मचा हुआ है। इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद से हुई जहां मैगी के नमूने प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजे गए थे जिसमें यह रिपोर्ट आई कि मैगी में जस्ते की मात्रा सुरक्षा मानकों से काफी ज्यादा है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में और साथ ही दूसरे राज्यों में भी ताबड़तोड़ मैगी के नमूनों का परीक्षण कराया गया। लगभग सभी जगह अभी तक की रिपोर्ट के अनुसार मैगी के नूडल्स को खाना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद माना गया है। हालांकि बंगला देश ने मैगी को क्लीन चिट दे दी है। 

बहरहाल मैगी विवाद को लेकर एक बात सामने आई है कि आज प्रोपोगंडा की मशीनरी इतनी ताकतवर हो गई है कि समाज ने अपने विवेक पर ताला लगाकर उसकी कुंजी जैसे समुद्र में फेक€ डाली है जिसकी वजह से संचार और प्रचार माध्यम जिसे फैशन के रूप में स्थापित कर दें उसका अंधानुकरण होना अनिवार्य है। यहां तक कि खानपान के मामले में भी एहतियात नहीं बरता जाता। इस भेड़चाल के चलते खास तौर से भारतीय समाज को व्यापक नुकसान हो रहा है। बिगड़ते सिस्टम का मैगी विवाद तो केवल एक सिरा है लेकिन संपूर्णता में विचार करें तो इस अनर्थ की व्यापकता का कोई छोर नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मानवीय विवेक को पंगु करने वाले प्रोपोगंडा तंत्र के पीछे मुनाफे की लूट करने वाली बाजार व्यवस्था है। बाजार का सबसे बड़ा दुश्मन संस्कृति है। इस कारण संस्कृति का निर्माण खानपान, पहनावे सहित जिन घटकों से मुख्य रूप से होता है बाजार उन्हें सबसे पहले अपने शैतानी रंग से संक्रमित करता है। दरअसल उच्छृंखलता एक तरह की उन्मुक्तता ही है लेकिन दोनों के बीच काफी बड़ा फर्क भी है। बुनियादी तौर पर जंगलीपन के मायने है आदिम उच्छृंखलता या उन्मुक्तता। आदमी जब इस जंगलीपन से संस्कृति के जरिए आगे बढ़ा तभी उसने सभ्यता के ऊंचे सोपानों पर कदम रख पाया। कहने की जरूरत नहीं है कि संस्कृति निर्माण की प्रक्रिया आदमी द्वारा अपने व्यवहार, लिप्सा आदि को संयमित करने की साधना के बीच शुरू हुई। दूसरी ओर बाजार के विस्तार के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट किसी भी तरह का संयम है इसलिए गौरव के प्रतिमान के रूप में सदियों से स्थापित संस्कृति को विगलित करके बहा देना बाजार के सैलाब का अभीष्ट भी है। सभी जगह खानपान वहां की जलवायु प्राकृतिक रूप से उपलब्ध भोज्य संसाधनों के आधार पर अस्तित्व में आया है। परंपरागत खानपान न केवल निरापद है बल्कि वह अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य संवद्र्धन के लिए भी अनुकूल है लेकिन यह बाजार का कमाल है कि जब वह विवेक का अपहरण कर लेता है तो बाजार फैशन के आकर्षण में लपेट कर ऐसे खानपान को दूसरे समाजों पर थोप देता है जो उसके लिए तो ज्यादा से ज्यादा मुनाफादेह हैं लेकिन हो सकता है कि एक जगह की अच्छी खाद्य सामग्री दूसरी जगह जीवन पर विपरीत प्रभाव डालने वाली बन जाए। कभी-कभी अपरिचित खाद्य सामग्री को इसलिए थोपा जाता है कि स्वाद में वह बहुत प्रीतिकर लगे लेकिन इसकी आड़ में उसमें बहुत सस्ते घटिया सामान की मिलावट करने की गुंजायश रहे जिससे उसे कई गुना मुनाफा बटोरने का हथियार बनाया जा सके। मैगी ही नहीं जंक फूड भी बहुत हानिकारक है। खुद विकसित देशों में इन पर प्रतिबंध लगता जा रहा है लेकिन यहां के अभिभावक अपने बच्चों को आधुनिक बनाने के लिए उन्हें जंक फूड का अभ्यस्त बनाना अनिवार्य समझने लगे हैं। बाबा रामदेव ने कुछ वर्ष पहले साफ्ट ड्रिंक के खिलाफ सशक्त अभियान चलाया था तब पहली बार लोगों ने आज के समय में खानपान में अपने विवेक के प्रयोग की जरूरत महसूस की थी। बाबा रामदेव के कारण कोल्ड ड्रिंक बेचने वाली कंपनियां इतनी बुरी तरह हिल गई थीं कि बाबा की हत्या तक का षड्यंत्र किया जाने लगा था। बाद में बाबा राजनीतिक महत्वाकांक्षा के शिकार होकर अपने रास्ते से भटक गए और जिसकी वजह से आज फिर कोल्ड ड्रिंक कंपनियों का मोहपाश सशक्त होने लगा है। बाबा रामदेव के जोर के समय लोग कोल्ड ड्रिंक के विकल्प में फिर से अपने परंपरागत पेय यानी मट्ठे की तरफ मुड़ गए थे जो वास्तविक शीतलता प्रदान करने के साथ-साथ सेहतमंद भी है लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि मट्ठा को अपनाने में अब नई पीढ़ी में पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया। यही बात पहनावे में भी है। स्त्री स्वातंत्रय के नारे को आड़ बनाकर वैज्ञानिक और सांस्कृतिक रूप से घातक पहनावे को बाजार भारतीय समाज पर थोप रहा है। खेल के क्षेत्र में क्रिकेट के प्रति उन्माद लोगों के उसके प्रति स्वाभाविक प्रेम का नतीजा नहीं है। बाजार ने क्रिकेट को एक दैवीय खेल के रूप में गढ़ा है जबकि जलवायु के हिसाब से भारत जैसे देश के लिए बेहद प्रतिकूल होने से यह खेल पूरी तरह से अमान्य होना चाहिए। कोई देश किसी खेल का चुनाव अपने यहां के लोगों के शारीरिक सौष्ठव के विकास के लिए करता है। जैसे चीन और सोवियत संघ में जिमनास्ट को दिया जाने वाला प्रोत्साहन लेकिन बाजार की भेड़चाल के पीछे चलने के लिए अभिशप्त भारत खेल के मामले में अपने गलत फैसले की वजह से जन स्वास्थ्य के लिए मुफीद पहलवानी, कबड्डी, हाकी जैसे परंपरागत खेलों का परित्याग कर चुका है। क्रिकेट के समानांतर असली खेल सट्टे का चलता है। यह दिन पर दिन इतना जोर पकड़ता जा रहा है कि आज जब आईपीएल चलता है तो दूरदराज के गांव तक में सट्टेबाजों के यहां लाखों रुपए की बुकिंग करा दी जाती है। सट्टा यानी जुए का दूसरा रूप और जुआ कितना अनर्थकारी है यह भारत के लोगों के अलावा कौन जानता है। दुनिया में पहला साम्राज्य भारत में हस्तिनापुर का बना था और यह पूरा साम्राज्य जुए की वजह से हुए महाभारत की भेंट चढ़ गया जिसमें सारे तत्कालीन महारथी योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए। फिर भी भारतीय इस खतरे को लेकर सावधान नहीं हैं। यह आश्चर्य का विषय है। इस तरह से कई क्षेत्रों में बाजार के द्वारा की जाने वाली चोट के उदाहरण गिनाए जा सकते हैं जिनका मुख्य लक्ष्य सांस्कृतिक तानेबाने को कमजोर करना यानी नैतिक रूप से समाज को पथ भ्रष्ट करके कुछ सोफिस्टीकेटिड ढंग से आदमी को जंगलीपन के युग में वापस लाना है।

मैगी को लेकर कुछ फिल्मी हस्तियों के खिलाफ भी मुकदमे कायम हुए हैं जिनमें मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन भी शामिल हैं जिनको उनके प्रशंसक उनके नाम के मंदिर बनवाकर भगवान तक का दर्जा दे चुके हैं। क्या श्री अमिताभ बच्चन की अभिनय कला सचमुच ऐसी है कि वे बालीवुड में अभिनय के बेताज बादशाह के रूप में माने जाने वाले दिलीप कुमार, संजीव कुमार और नाना पाटेकर के ही मुकाबले बीस हों। इस प्रश्न का उत्तर सही तरीके से तभी दिया जा सकता है जब कि समाज में लोगों का विवेक जाग्रत हो। अमिताभ बच्चन के पिता की नेहरू परिवार से नजदीकी के कारण अगर इंदिरा गांधी के समय चौदह फिल्में पिट जाने के बावजूद भी उन्हें पीएमओ के दबाव से बार-बार अवसर न मिले होते तो शायद वे हीरो बनने का सपना छोड़कर शुरू में ही भाग खड़े होते। उनमें राजेश खन्ना की तरह वो कुदरती दिलकश अंदाज नहीं था जिसकी वजह से लोग उनके दीवाने होते। सही बात यह है कि उनके सुपर स्टार बनने में मुख्य कारक उनके व्यक्तित्व का आकर्षण या अभिनय न होकर उनके बालसखा राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद सत्ता के शिखर पर उनके पैर मजबूती से जमे होने का आभास था। वे कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों तक को चपरासी की तरह ट्रीट करते थे और उनकी यह सुपर हस्ती मनोवैज्ञानिक तौर पर लोगों में उन्हें सुपर स्टार के रूप में देखने की भावना का कारण बनी। व्यक्तिगत रूप से भी अमिताभ बच्चन सुनील दत्त तो छोडि़ए शत्रुघन सिन्हा से भी बेहतर नहीं हैं। जब वे इलाहाबाद के सांसद थे तो उनसे मिलने गए उनके पिता के साथी प्रोफेसरों को उनका जो अपमानजनक व्यवहार झेलना पड़ा था उसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ ने फिर उनसे कभी भेंट न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी। मीडिया की तत्कालीन रिपोर्टें इसकी गवाह हैं। एबीसीएल घोटाले का कलंक भी उन पर है जिसमें हीरो बनने के शौक में देश के करोड़ों नौजवान उनकी ठगी का शिकार हुए थे और आज तक हीरो बनने के लिए उनसे जमा कराए गए ड्राफ्ट का पैसा वापस करने का बड़प्पन अमिताभ बच्चन ने नहीं दिखाया है। बीपीएल के साथ विज्ञापन का पच्चीस करोड़ रुपए का करार करने के बाद उन्होंने देश में इनकम टैक्स भरने से निजात पाने के लिए अमेरिका की ग्रीन कार्ड नागरिकता स्वीकार कर ली थी। यह भी उनके व्यक्तित्व के घटियापन का एक नमूना रहा। जिन सोनिया गांधी का अमिताभ बच्चन ने भाई की हैसियत से कन्यादान लिया था उन्हें राजनीति के मैदान में न आने देकर भारत से सपरिवार पलायन कर जाने को मजबूर करने का ठेका भी उन्होंने मुलायम सिंह जैसे लोगों से ले रखा था। बाद में जब पोल खुली और उनके स्व. सुरेंद्र नाथ अवस्थी जैसे शिष्यों के खिलाफ कांग्रेस में कार्रवाई हुई तो अमिताभ बच्चन अपनी धर्म बहन के खिलाफ खुलेआम हमलावर होने से नहीं चूके। बाराबंकी के उनके जमीनी कागज तैयार कराने संबंधी घोटाले से भी सब परिचित हैं। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में जब उन्होंने यह स्यापा मीडिया में साया करवाया कि वे जब अस्पताल में भर्ती थे तब उन्हें सोनिया गांधी द्वारा निर्देशित सरकार ने आयकर का नोटिस भिजवाया। इसके बाद आयकर बोर्ड के अध्यक्ष का स्पष्टीकरण आया कि उनके अस्पताल में भर्ती होने के कई महीने पहले करापवंचन के बेहद तथ्य परक संदेह की वजह से उन्हें नोटिस भेजा गया था जिसका उन्होंने जवाब देने की जहमत नहीं उठाई थी और जब वे अचानक बीमार हो गए तो लोगों की सहानुभूति लूटने के लिए आज बीमारी के समय सोनिया गांधी द्वारा नोटिस भिजवाने का सफेद झूठ उन्होंने गढ़ डाला। अमिताभ बच्चन इसका खंडन नहीं कर पाए थे। अमिताभ बच्चन अपनी अभियन कला में निखार के लिए जिनकी कद्रदानी को सबसे अमूल्य मानते हैं वे पहलवान से शिखर के राजनेता बने मुलायम सिंह हैं जिन्होंने शायद तब तक कोई फिल्म नहीं देखी होग जब तक कि वे एक दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन चुके होंगे। सर्वश्रेष्ठ फिल्म मर्मज्ञ के रूप में मुलायम सिंह उनके प्रति कृतज्ञ हों या न हों लेकिन फिल्म जगत की बारीकियां जानने वाले जरूर उनकी इस दरियादिली पर निसार हो गए होंगे। जब कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान वे एक स्टंट शूट के दौरान घायल हो गए थे तब उनके लिए दुआ करने वालों में सबसे ज्यादा देश भर के मुसलमान थे और मुस्लिम दर्शकों की दीवानगी की वजह से ही उन्हें सुपर स्टार का तमगा हासिल हो सका था। इसी कारण वे आगे की फिल्मों में मुस्लिम दर्शकों की संवेदनाओं को छूने वाले दृश्य डलवाना कभी नहीं भूलते थे लेकिन मोदी के पिट्ठू बनकर अपने व्यवसायिक फायदे के लिए उन्होंने मुस्लिम जज्बातों के साथ खिलवाड़ करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अमिताभ बच्चन की विश्वसनीयता का आलम यह है कि उन्होंने मैगी तो हो सकता है खाई हो लेकिन न तो उन्होंने कभी नवरत्न तेल होगा और न वे लगाएंगे और इसी तरीके से कायमचूर्ण तो उन्होंने देखा तक न होगा लेकिन दोनों का वे विज्ञापन कर रहे हैं। भले ही उनकी साख के कारण प्रेरित होने वाले उपयोग कर्ता इनका उपयोग करके बर्बाद हो जाएं। अरुण शौरी ने बाबा साहब अंबेडकर जैसी दिव्य आत्मा को झूठा भगवान ठहराने की कोशिश की थी जिसकी सजा अपनी ही सरकार में कोई पद न मिलने से सामने रही उनकी कुंठा से मालूम हो रही है लेकिन अगर कोई नकली भगवान है तो यह अमिताभ बच्चन है। आज जब उनके खिलाफ मुजफ्फरपुर बिहार की अदालत ने माधुरी दीक्षित और प्रीति जिंटा के साथ मैगी का विज्ञापन करने के कारण न केवल मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं बल्कि यह लिखा है कि अगर जरूरत पड़े तो उन्हें जेल भी भेज दिया जाए तो यह सवाल उठाने का इस समय सही वक्त है कि जिसका चरित्र व आचरण शुरू से ही संदिग्ध था उसे लोगों ने भगवान मान कैसे लिया था। यह करिश्मा है इबलीस का अवतार उस प्रोपोगंडा मशीनरी का जो उन कंपनियों की बंधक है जिनके अमिताभ बच्चन ब्रांड एंबेसडर हैं। चूंकि इन कंपनियों के विज्ञापन से ही मीडिया की रोजीरोटी चलती है इसलिए अगर यह कहेंगे कि अमिताभ बच्चन को सिद्धिविनायक मंदिर जाते हुए रात तीन बजे कवर करना है तो रिपोर्टरों का जाना मजबूरी है क्योंकि उन्हें अपनी नौकरी बचानी है और मालिक का आदेश है और यह काम उनको अमिताभ बच्चन के गार्डों से लातें खाते हुए भी करना पड़ता है। ऐसे एंद्रजालिक भगवान जहर का भी विज्ञापन कर सकते हैं और लोग विश्वास कर लेंगे क्योंकि प्रोपोगंडा मशीनरी के सम्मोहक प्रभाव की वजह से उनकी विवेक शक्ति जवाब दे चुकी है। विवेक शक्ति के जवाब देने की मुख्य वजह यह भी है कि जातिगत पूर्वाग्रहों की वजह से उन्होंने कुदरती तौर पर प्राप्त न्याय भावना जिसे प्राकृतिक न्याय कहा जाता है को अपने आप में समाप्त कर लिया है। इस कारण यह एक कठिन समय है। इस समय जरूरत तो तालिबान जैसी जिद की है जो अमेरिका जैसी साम्राज्यवादी ताकतों की हर बात को नकारे बिना यह सोचे कि इससे कुछ फायदा भी है या नहीं। तालिबान की यह जिद बेहद रचनात्मक बन गई है क्योंकि साम्राज्यवादी ताकतों का कोई नैतिक उद्देश्य नहीं है। तात्कालिक तौर पर किसी नैतिक उद्देश्य की पूर्ति हो भी रही हो तो साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा पोषित तंत्र की जरूरत अंततोगत्वा आदमी के जंगलीपन को वापस लाना है जिसे किसी भी आध्यात्मिक सांस्कृतिक समाज को स्वीकार नहीं करना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यहां मैं कोई राजनीतिक पार्टी से नहीं चाहता। दक्षिणपंथी ताकतें जो कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रवक्ता हैं मैं चाहता हूं कि वे और तालिबानी ताकतें दोनों साहचर्य के स्वाभाविक रूप से उपस्थित बिंदुओं को समझें। नारा देने से सांस्कृतिक राष्ट्र्रवाद नहीं होता उसके लिए क्रिया और प्रक्रियाएं तय करनी होती हैं। वे क्या हो सकती हैं यह आलेख मैगी से शुरू हुआ था यानी थोपे हुए ऐसे खानपान जिसमें औचित्य का विचार न किया गया हो। उसके प्रतिकार न करने से हुए हानि के चलते। हमारा अपना वजूद है कोई हमारे ऊपर किसी चीज को कैसे थोप सकता है। जिस तरह से पंजाबियों ने अमेरिका के सेविन स्टार होटल की प्रमुख डिसों में मक्के की रोटी, चने का साग स्थापित करके देश का गौरव बढ़ाया वैसे ही उत्तर प्रदेश के लोगों को भी कहना होगा कि हमें मैगी, मोमोज, पिज्जा, बर्गर, ढोकला नहीं चाहिए क्योंकि हमारी बिड़हीं, टपका, चीला, मिथौरी, आम पापड़ जैसे व्यंजन दुनिया की किसी भी डिस से ज्यादा बेहतर हैं और हमें यही चाहिए। हमें कहना होगा कि हमारे परंपरागत परिधान हिंदुओं का कुर्ता पाजामा या धोती कुर्ता और मुसलमानों की पठानी ड्रेस दुनिया में सबसे सौंदर्यपूर्ण है। हमें कहना होगा कि भारतीय मुसलमानों और कन्याभोज करने वाले भारतीय हिंदुओं के लिए नाबालिग लड़कियों की अस्मिता की रक्षा से बड़ा कोई ईश्वरीय कर्तव्य नहीं है इसलिए हम मांगलिक समारोह में कन्याओं से साफ्ट ड्रिंक सहित कोई भी चीज सर्व कराने की हरकत गवारा नहीं करेंगे। हमें बिना धार्मिक भेदभाव के भारतीय उप महाद्वीप के धर्म के पार के कुदरती भाईचारे के नाते यह देखना होगा कि कहीं मलाला साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली लड़की तो नहीं है जो ऊपरी तौर से तो स्त्री सशक्तिकरण की प्रतीक लग रही हो लेकिन असल में बाजार की स्त्री देह को सामान बेचने का हथियार समझने वाली मानसिकता की टूल हो। साम्राज्यवादी ताकतों ने संस्कृतिवादियों को बहुत लड़ा लिया अब इसका अंत हो और दुनिया की सारी आध्यात्मिक और संस्कृतिवादी ताकतें एक जुट हों।

केपी सिंह से संपर्क : [email protected]

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. आसिफ खान

    June 4, 2015 at 10:21 am

    क्या कहने…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement