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उत्तर प्रदेश

‘दृष्टांत’ मैग्जीन ने यूपी सरकार के माननीय महबूब अली को क्यों बताया भ्रष्ट, पढ़ें पूरा विवरण

जिसे सलाखों के पीछे होना चाहिए था वह अपनी आपराधिक छवि के चलते यूपी विधानसभा की गरिमा को चोट पहुंचा रहा है। जिसके खिलाफ हत्या का प्रयास, डकैती, अपहरण, मारपीट, गाली-गलौच, जान से मारने की धमकी, दंगे करवाना, मकान-जमीनों पर अवैध तरीके से कब्जा करवाना और धोखाधड़ी से सम्बन्धित दर्जनों की संख्या में आपराधिक मुकदमें दर्ज हों, उसे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे रखा है। जिसकी शिक्षा महज 12वीं तक है, वह माध्यमिक शिक्षा विभाग का कैबिनेट मंत्री बना बैठा है। यहां बात हो रही है माध्यमिक शिक्षा कैबिनेट मंत्री महबूब अली की।

जिसे सलाखों के पीछे होना चाहिए था वह अपनी आपराधिक छवि के चलते यूपी विधानसभा की गरिमा को चोट पहुंचा रहा है। जिसके खिलाफ हत्या का प्रयास, डकैती, अपहरण, मारपीट, गाली-गलौच, जान से मारने की धमकी, दंगे करवाना, मकान-जमीनों पर अवैध तरीके से कब्जा करवाना और धोखाधड़ी से सम्बन्धित दर्जनों की संख्या में आपराधिक मुकदमें दर्ज हों, उसे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे रखा है। जिसकी शिक्षा महज 12वीं तक है, वह माध्यमिक शिक्षा विभाग का कैबिनेट मंत्री बना बैठा है। यहां बात हो रही है माध्यमिक शिक्षा कैबिनेट मंत्री महबूब अली की।

अपनी उम्र के छह दशक पार कर चुके महबूब अली अपने विधानसभा क्षेत्र अमरोहा (ज्योतिबा फूले नगर) में आज भी आपराधिक छवि के नेता के रूप में जाने जाते हैं। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच लोकायुक्त को समस्त दस्तावेजों के साथ सौंपी गयी थी। ताज्जुब की बात है कि लोकायुक्त ने महज एक माह में ही जांच पूरी करके महबूब अली को क्लीनचिट भी दे दी। बताया जाता है कि लोकायुक्त से जांच करवाने वाले शख्स को इस कदर प्रताड़ित किया गया कि उसने पूरे मामले से पल्ला झाड़ लेने में ही भलाई समझी।

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महबूब अली पर मुरादाबाद में पीस पार्टी के उम्मीदवार नौशाद अली और उनके पोलिंग एजेंट पर जानलेवा हमले के आरोप में मुकदमा पंजीकृत किया गया था। महबूब अली के साथ ही अन्य दर्जन भर उन लोगों के खिलाफ भी मुकदमा पंजीकृत किया गया था जो महबूब अली के साथ मौजूद थे। पुलिस ने अपनी जीडी में साफ लिखा था कि महबूब अली ने अपने सहयोगियों की मदद से नौशाद और उसके साथी खुर्शीद पर धारदार हथियार से जानलेवा हमला किया था। यह हमला उस वक्त किया गया था जब भुक्तभोगी अपने साथी के साथ वोट देने के बाद कुंदन कॉलेज से बाहर निकल रहा था।

खुर्शीद और नौशाद किसी तरह से अपनी जान बचाकर भागने में सफल हो गए थे। इन दोनो ने भागकर अमरोहा कोतवाली में जानलेवा हमले से सम्बन्धित रिपोर्ट दर्ज करवायी थी। हमले में गंभीर रूप से घायल खुर्शीद को पहले अमरोहा के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, बाद में एक निजी अस्पताल में उसका इलाज चलता रहा। महबूब अली के राजनैतिक प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरेआम हमला करने और प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद न तो उन्हें गिरफ्तार किया गया और न ही उनके किसी साथी को।

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सूबे में सपा की सरकार बनने के लगभग एक वर्ष बाद ही महबूब अली एक बार फिर से सुर्खियों में छा गए। फरवरी 2013 में तत्कालीन राज्यमंत्री महबूब अली  पर समाजवादी पार्टी के एक विधायक (नौगांव, सादात) अशफाक खां ने दमन करने और उनके विधानसभा क्षेत्र नौगांव सादात में घुसपैठ करने का आरोप लगाया। अशफाक का कहना था कि महबूब अली उनके विधानसभा क्षेत्र में सरकारी योजनाओं के चेक स्वयं बांटकर जनता के बीच वाह-वाही लूट रहे हैं। जिससे उनकी राजनैतिक छवि खराब हो रही है। अशफाक ने महबूब अली की दबंगई से सम्बन्धित घटना को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी बताया। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि सपा के ये दोनों नेता एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। इन दोनों नेताओं के बीच बैर के बारे में कहा जाता है कि महबूब अली ने सपा के अशफाक को हराने की गरज से अपने छोटे भाई महमूद उर्फ भूरे को अशफाक के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया था लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी थी। 

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल सितम्बर 2011 में महबूब अली और उनके भाई समेत उनके दो बेटों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया था। महबूब अली के परिवार सहित दर्जन भर अन्य साथियों के खिलाफ भी मुकदमा पंजीकृत किया गया था। महबूब अली को उम्मीद थी कि सपा नेतृत्व उनके बचाव में आगे आयेगा लेकिन सपा के किसी भी जिम्मेदार नेता ने महबूब अली की वकालत नहीं की।

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गौरतलब है कि मायाराज में अपराधों को अंजाम देने वाले जनप्रतिनिधियों के खिलाफ जमकर अभियान चलाया गया था। हत्या की वारदात से जुड़ा यह मामला ज्योतिबाफूले नगर के रजबपुर इलाके के शंकरपुर गांव निवासी 55 वर्षीय केवल सिंह से सम्बन्धित था। केवल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। केवल के परिवार वालों ने सपा विधायक महबूब अली और उनके परिवार के सदस्यों सहित उनके गुर्गों को नामजद किया था। इस मामले में महबूब अली पर तो कोई आंच नहीं आयी अलबत्ता उनके भाई महमूद अली उर्फ भूरे को पुलिस ने जेल भेज दिया था। उस वक्त महबूब अली ने अपने व अपने परिजनों के बचाव में मायावती सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उन्हें बदनाम करने की गरज से ऐसा किया गया था। गौरतलब है कि जिस वक्त महमूद अली को गिरफ्तार किया गया था उस वक्त वे नोगांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे और वह भी सपा के ही खिलाफ।

महबूब अली की दबंगई और राजनीतिक गलियारों में उनकी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मायावती सरकार के कार्यकाल में भी उनकी हैसियत से सभी परिचित थे। मायावती सरकार के कार्यकाल में अमरोहा में करोड़ों की जमीन महबूब अली के बेटे शाहनवाज को कौड़ियों के भाव दे दी गयी। दिसम्बर 2011 में बसपा नेता और नगर पालिका अध्यक्ष हाजी इकरार ने समाजवादी पार्टी के दबंग विधायक महबूब अली के बेटे को बीस बीघा जमीन (खसरा नम्बर 5826) 25 रूपए महीने पर दे दी। वैसे तो सपा और बसपा के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है लेकिन महबूब अली के मामले में बसपा नेता की रहमदिली विधासनभा चुनाव 2012 तक चर्चा में रही। कहा जाता है कि बसपा का कर्ज उतारने की गरज से ही उन्होंने अपने बेटे को सपा नेता के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था। यह दीगर बात है कि सपा की आंधी में महबूब अली की भी एक नही चली।

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नगरपालिका की इस बीस बीघा जमीन के सम्बन्ध में सरकार के राजस्व रिकार्ड में साफ लिखा था कि इस जमीन पर शहर का कूड़ा और खाद डाली जाएगी और ये सरकारी सार्वजनिक सम्पत्ति है। यूं तो जमीन का लैंड यूज बदले बगैर ये किसी को दी नहीं जा सकती, इसके बावजूद करोड़ों की जमीन कौड़ियों के भाव दे दी गयी। गौरतलब है कि लैंड यूज बदलने का अधिकार सिर्फ सरकार को होता है। वो भी तब जब शहर के विकास या अन्य आवश्यक आपूर्ति के लिए किसी जमीन के इस्तेमाल की जरूरत पड़े। जिले से प्रस्ताव पारित होकर सरकार को भेजा जाता है। प्रस्ताव पास होने के बाद ही जमीन हस्तांतरित की जाती है। लेकिन अमरोहा में ये सब नहीं किया गया। इस खेल का पता तब चला जब इस जमीन पर पेट्रोल पंप का निर्माण कार्य शुरू हुआ।

नगर पालिका कर्मचारियों ने इसे रजिस्ट्री कार्यालय में सत्यापति भी कर दिया। जब इस मामले को मीडिया ने उठाया तो विधायक महबूब अली खासे खफा हुए। वे मीडिया का नाम सुनते ही भड़क जाते थे। गौरतलब है कि सीएनएन आईबीएन के एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद मुलायम सरकार में उनकी मंत्री पद से छुट्टी कर दी थी। बाद में सपा में मौजूद अपने आकाओं की मदद से वे दोबारा सपा प्रमुख के आंख का तारा बन गए। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में वे पहले राज्यमंत्री बनाए गए, बाद में इन्हे कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया गया। और विभाग भी वह दिया गया जो इनकी शैक्षिक योग्यता से कतई मेल नहीं खाता।

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हाल ही में महबूब अली लोकायुक्त जांच के घेरे में भी आ चुके हैं। माध्यमिक शिक्षा मंत्री महबूब अली के खिलाफ स्कूलों को फर्जी तरीके से मान्यता देने के भी आरोप लग चुके हैं। उन पर एक ऐसे अधिकारी को हरदोई का डीआइओएस नियुक्त करने का आरोप था जिस पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे थे। इस आरोप पर लोकायुक्त की तरफ से उन्हें नोटिस भेजा गया था। यह आरोप हरदोई निवासी बाबा भगत तेज गिरि ने मार्च के महीने में लोकायुक्त के यहां एक शिकायत दाखिल कर लगाया था। उस वक्त लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने भी माना था कि माध्यमिक शिक्षा मंत्री पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं, जिस पर सफाई के लिए उन्हें नोटिस भेजा गया है। ताज्जुब की बात है कि एक महीने बाद ही आरोपों की जांच के बाद महबूब अली को क्लीनचिट भी दे दी गयी थी।  गौरतलब है कि स्कूलों की मान्यता में गड़बड़ी से सम्बन्धित साक्ष्य भी सौंपे गए थे। गौरतलब है कि डीआईओएस जेपी मिश्र के खिलाफ जांच अभी भी चल रही है।

‘दृष्टांत’ मैग्जीन का प्रकाशन लखनऊ से किया जाता है और इसके प्रधान संपादक तेजतर्रार पत्रकार अनूप गुप्ता है. अनूप ने दृष्टांत मैग्जीन के जरिए पत्रकारिता और राजनीति के कई भ्रष्ट चेहरों को बेनकाब किया है और यह सिलसिला जारी है.

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