Sandeep Thakur-
कई राज्यों में परिवारवाद नेताओं के हार जीत का कारण बन रहा है और ऐसे
में बंगाल की शेरनी कही जाने वाली ममता बनर्जी के परिवार के माेह में फंस
जाने के कारण चुनाव के जीत हार को लेकर सवाल जवाब हाेने लगे हैं। बंगाल
के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि ममता को हरा पाना भाजपा के लिए
कठिन था लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर ममता द्वारा अपने
भतीजे अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाए जाने के कारण पार्टी के पुराने नेताओं
व कार्यकर्ताओं में नारजगी है। कई नेताओं के पार्टी छोड़ कर जाने की वजह
भतीजा प्रेम ही बताया जा रहा है। बंगाल की राजनीति में दखल रखने वालों
का मानना है कि भतीजा प्रेम का प्रतिकूल प्रभाव चुनाव परिणाम पर पड़ सकता
है।
हर सरकार अपनी बर्बादी का कारण साथ लाती है। विरोधियों का कहना है कि
इस बार ममता भी कारण साथ लाई है और वह कारण है सीनियर नेताओं की उपेक्षा
कर भतीजे अभिषेक बनर्जी को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में राज्य
में पेश करना। वैसे पार्टी को होने वाले नुकसान व भाजपा को होने वाले
फायदे का अनुमान तो परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन एक बात तय
मानी जा रही है कि यदि ममता हारीं तो उसकी सबसे बड़ी वजह उनका भतीजा
प्रेम होगा। अभिषेक बनर्जी का राजनीतिक कैरियर बहुत लंबा नहीं है।
अभिषेक 2014 व 2019 का विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। व महज 33 साल की
आयु में टीएमसी के सबसे ताकतवर नेता बन गए । दिल्ली के एक प्राइवेट
संस्थान से एमबीए करने वाले अभिषेक बनर्जी के बारे में टीएमसी के एक
सांसद ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वे न सिर्फ बेहद मुंहफट
बल्कि व्यवहारकुशल भी नहीं हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उनसे मिलने
के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। ममता बनर्जी के दाहिने हाथ माने
जाने वाले सुवेंदु अधिकारी ने टीएमसी छोड़ने की वजह अभिषेक ही बताया जाता
है। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का जनाधार तैयार
करने में सुवेंदु अधिकारी का बहुत बड़ा हाथ रहा। उन्होंने दर्जन भर से
ऊपर जिलों में पार्टी को मजबूत बनाया। जिन इलाकों में अधिकारी ने पार्टी
को मजबूत बनाया उसमें 13 लोकसभा व 86 विधानसभा की सीटें आती हैं। बताया
जाता है कि उनकी मदद से ही 2011 में ममता बनर्जी ने 34 साल पुराना
वामपंथियों का राज पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका था।
बताया जाता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ अभिषेक बनर्जी का
व्यवहार ठीक नहीं था। पार्टी के बड़े नेता मुकुल राय के यहां जब सीबीआई
ने छापा मारा था तो राय ने ममता बनर्जी से मदद मांगी थी लेकिन अभिषेक ने
बीच में टांग अड़ा दी थी। इसे लेकर ममता बनर्जी व मुकुल राय के बीच में
झड़प भी हुई थी। उसके बाद ही मुकुल राय भाजपा में चले गए थे। ऐसा ही कुछ
सुवेंदु अधिकारी के साथ हुआ बताते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी
पर अभिषेक बनर्जी की पकड़ बेहद मजबूत हो गई व सुवेंदु अधिकारी हाशिए पर
आ गए। 2021 के विधानसभा चुनावो के लिए ममता बनर्जी द्वारा गठित 21
सदस्यीय पैनल में सुवेंदु को तो शामिल किया गया पर पैनल के गठन की सूचना
अभिषेक बनर्जी के हस्ताक्षर वाले पत्र के जरिए दी गई। वरिष्ठ नेताओं और
समर्पित कार्यकर्ताओं को यह अपना अपमान लगा।
इतना ही नहीं सुवेंदु अधिकारी के इलाके में उनसे पूछे बिना भारी फेरबदल
किया जाने लगा। इसके बाद से ही सुवेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के
कार्यक्रमों से दूरी बनाए रख कर अपनी नाराजगी के संकेत देने लगे थे।
नारजगी बढ़ती गई। इस बीच चुनाव के बारे में अभिषेक बनर्जी का प्रशांत
किशोर से सलाह लेना मानों आग में घी डालने की तरह था। पीके की टीम के
कहने पर अभिषेक बनर्जी ने संगठन में काफी बदलाव किया है जिसे सुवेंदु
अधिकारी व तमाम अन्य नेताओं ने पसंद नहीं किया। ममता बनर्जी सुवेंदु
अधिकारी की इस नाराजगी को भांप गईं और उन्हें मनाने के लिए प्रशांत किशोर
को उनके घर भेजा, लेकिन बात बनी नहीं। ममता बनर्जी ने सुवेंदु अधिकारी
को अहमियत देना तो जारी रखा लेकिन अपने भतीजे की दखलअंदाजी को भी
नजरअंदाज करती रहीं। नतीजा टीएमसी के कई वरिष्ठ नेताओं ने खुद को
अपमानित महसूस करना शुरु कर दिया और अंतत: पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल
हो गए। टीएमसी के एक नेता ने कहा कि हमें मालूम है कि भाजपा में भी
हमारी पूछ कुछ खास नहीं होगी लेकिन अभिषेक को सबक सीखाने के लिए हमें
ऐसा करना पड़ा। सवाल सेल्फ रिसपेक्ट का है।
संदीप ठाकुर
M: 9810860615
Email: [email protected]