बेहतरीन अनुवादक और ब्लागर मनोज पटेल नहीं रहे

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Amitaabh Srivastava : बेहतरीन अनुवादक, ब्लॉगर, फेसबुक मित्र मनोज पटेल का यूँ अचानक चले जाना! क्या कहें सिवाय इसके कि जीवन बहुत अनिश्चित है, समय बहुत क्रूर. पुस्तक मेले की मुलाकात याद आयी और मन भर आया. हम जैसों के लिए तो उनके अनुवाद एक नयी दुनिया की खिड़कियों का काम करते थे. उनका ब्लॉग पढ़ते-पढ़ते पढ़कर ही कई नामों से परिचय हुआ था. बहुत अफ़सोस है मन में, बड़ा मनहूस दिन रहा आज. विनम्र श्रद्धांजलि

Gopal Rathi : दुखभरी खबर… हमारे फेसबुक मित्र द्वय शायर अमर नदीम साहब और दुनिया भर की कविताओं को हिंदी में अनुवादित करने वाले युवा कवि मनोज पटेल के दुखद निधन की खबर अभी अभी फेसबुक के माध्यम से मिली l अपने अपने क्षेत्र की इन सिद्धहस्त हस्तियों का फेसबुक पर हमारा मित्र होना हमारा सौभाग्य रहा l उनसे कभी नही मिला लेकिन उनके जाने पर दुख और वियोग की अनुभूति हो रही है l दोनों मित्रों को लाल सलाम l

Anil Janvijay : दुनिया भर के कवियों की कविताओं को हिन्दी में लाने वाले युवा कवि मनोज पटेल नहीं रहे। बेहद दुख हो रहा है। दिल रो रहा है।

Mridula Shukla : असमय चले जाना एक विलक्षण मनुष्य का, आत्मीय मित्र का शुभकामना लेने की हालत में नहीं हूँ मित्रों। विदा मनोज पटेल।

Arun Dev : मनोज पटेल ने वेब पर साहित्य को अपने परिश्रम और सुरुचि से समृद्ध किया है. वह इस तरह कैसे जा सकते हैं. उन्हें तो अभी बहुत कुछ करना था. समालोचन की तरफ से विनम्र श्रद्धासुमन.

Hemant Krishna : अपने अनुज मनोज पटेल नहीं रहे। ऐसा लग रहा है जैसे सब कुछ थम गया हो। आंखें अश्रुपूरित हो गई हैं। अपूरणीय क्षति। भगवान उनकी आत्मा को शांति और परिवार को सहन शक्ति प्रदान करे।

Pallavi Trivedi : जिस ब्लॉग को पढ़कर विश्व कविता से पहचान कायम हुई और साथ ही Manoj Patel से भी। यूं उनका अचानक चले जाना स्तब्ध कर गया। अब तक यकीन न हो रहा कि मनोज पटेल अब नहीं हैं। उनके ब्लॉग के रूप में वे हमेशा रहेंगे। हम जब भी ब्लॉग पर जाएंगे,वे वहीं मिलेंगे। विदा दोस्त … बहुत याद आओगे।

Ghanshyam Bharti : साहित्य जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र और जिले की माटी के लाल मनोज पटेल का चुपके से जाना वास्तव में आत्मिक रूप से झकझोर देने वाली एक बड़ी घटना है। ऐसे में उस्ताद शायर मरहूम इरफान जलालपुरी की यह पंक्तियां बरबस ही याद आ रही हैं — “ओढ़कर मिट्टी की चादर बेनिशां हो जाएंगे, एक दिन आएगा हम भी दास्तां हो जाएंगे”

Hafeez kidwai : कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ…न मिलते है, न साथ चाय पीते हैं, न लड़ते हैं, न बहस होती है यहाँ तक बात भी तो नही होती है।फिर जब वह चले जाते हैं तो ज़िन्दगी में खालीपन सा क्यों आ जाता है। ऐसा कैसे लगता है की दिल के अंदर कोई फाँस सी लग गई हो। फेसबुक पर ऊपर नीचे ऊँगली चलाते कितने दोस्त पन्नों की तरह पलटते जाते हैं। कितनों के नाम तो कितनों की तस्वीर तो कितनों के अल्फ़ाज़ ज़बरदस्ती दिमाग में पालथी मारकर बैठ जाते हैं। जब यह उठकर जाने लगते हैं तो इनकी होशियारी तो देखिये, पूरा दिल ओ दिमाग साथ ले जाने लगते हैं। जाते जाते सूखी आँखों को लबालब भरे तालाब में बदल यह पलट कर भी नही देखते। मनोज पटेल चुपके से चले गए। सच कहें जो उनके अल्फाज़ो की चादर ओढ़ रात में सोया था, लगा कोई एक झटके में छीन ले गया। यह भी कितना अजीब है की बिला ज़रूरत वह चादर खुद बखुद उढ़ गई और खुद बखुद उड़ भी गई। मगर जब यह चादर हटी तो लगा की बचा ही क्या है अब हमारे पास। अजब दर्द के मारे हम, पता नही कहाँ से मनोज पटेल के अल्फ़ाज़ टकरा गए और हमारे इर्द गिर्द फैल गए, क्या पता की रात की एक करवट से यह लफ़्ज़ टूट जाएँगे और इनके टूटने की आवाज़ भी न सुनाई देगी। आज मनोज ने दिल को ऐसा झटका दिया है कि मेरे पास आने वाले अल्फ़ाज़ मुँह बाए खड़े हैं और कह रहें हैं कि अगर तुम ज़िंदा रहो तो चौखट पर आएं वरना कहो तो यहीं से अलविदा। पता नहीं, मैं कुछ कह नहीं सकता, जब तक मैं मनोज को अलविदा बोलकर आता हूँ तब तक मेरा इंतज़ार करना.

सौजन्य : फेसबुक

मनोज पटेल के नीचे दिए गए ब्लाग पर जाकर आप उनकी अनूदित रचनाओं को पढ़-जान सकते हैं :

‘पढ़ते-पढ़ते’ ब्लाग : मनोज पटेल



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