Satyendra PS : 1990 के दौर में भयानक धार्मिक ध्रुवीकरण और लोगों के मन में हिन्दू मुस्लिम का धार्मिक जहर भरने वाले लाल कृष्ण आडवाणी से मुझे भयानक नफरत रही है।
जब मण्डल कमीशन रिपोर्ट लागू हुई तो यह आदमी देश भर में दंगा कराने निकला था और इसके चेले थे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उस दौरान मैं भी हिन्दू हो गया था। पुलिस वालों का शुक्र है कि उन्होंने दौड़ाकर लठियाया तो दिमाग की बत्ती जली। कुछ तत्काल, कुछ वर्षों बाद।
ऐसी फोटो देखकर लगता था कि नरेंद्र मोदी अपने अपमान का बदला ले रहे हैं। हमारे एक संघी मित्र ने बताया था कि जब आडवाणी उप प्रधानमंत्री थे तो मोदी मिलने गए। मोदी को आडवाणी के ऑफिस कर्मी ऑफिस से भगा दिए और बोले कि शाम को आना, तब मुलाकात होगी। मोदी उस समय आडवाणी के आवास के कुछ दूर बने लोदी गार्डन में सुबह से शाम तक बैठे रहे और शाम को जब आए तो आडवाणी ने फिर भगा दिया।
यह कहानी सुनकर लगा कि मोदी एरोगेंट है ही, उसी का बदला ले रहे होंगे।
लेकिन भड़ास वाले Yashwant भाई ने यह गुत्थी सुलझा दी। मुझे समझ में न आता कि यह आदमी हर छह महीने पर मोदी के सामने हाथ जोड़कर क्यों खड़ा हो जाता है? मैं इस बात से सहमत हूँ कि 4 साल में इस तरह की तमाम पोज और वीडियो देकर आडवाणी ने मोदी की छवि को स्वीट प्वाइजन दे दिया है।
वरना क्या जरूरत थी मोदी के सामने पड़ने की? मोदी बेचारा भी सम्मान में बुला लेते है कार्यक्रमों में। बुड्ढा हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है और फोटो दुनिया भर में फैल जाती है।मोदिया जल भुनकर रह जाता है कि यह बुड्ढा क्या नाटक कर रहा है। मोदी के सलाहकार भी सब बेवकूफ हैं जिन्होंने अब तक यह नहीं बताया कि कभी आमने सामने पडो ही मत। और किसी मजबूरी में आडवाणी सामने पड़ जाए तो कच्च से आडवाणी के पैर पर गिर जाओ। नौतन्की में मोदी भी कम नहीं है, यह कर देंगे। लेकिन ये सब बुद्धि के भसुर हैं। प्रभु कृपा से कुर्सी मिल गई,जो संभल नहीं रही है।
बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में कार्यरत पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह की एफबी वॉल से.
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