Uday Prakash : अभी सारे चैनलों में बनारस के रोड शो की कवरेज़ देख रहा था. जैसा इतालो काल्विनो ने कहा था कि सत्ताधारी हमेशा इस भ्रम में रहते हैं कि अगर उन्होंने सूचना-संचार माध्यमों के ‘प्रसारण के अड्डे’ (ट्रांसमिटिंग पॉइंट) पर कब्ज़ा जमा लिया है और अपने मन मुताबिक़ समाचार या सूचनाएं अपने जरखरीद मीडिया कर्मचारियों से प्रसारित-प्रचारित करवा रहे हैं, तो इससे ‘प्रसारण के लक्ष्य समूहों (यानी दर्शक, श्रोता) के दिमाग को प्रभावित और नियंत्रित कर रहे हैं।
यानी सारा भरोसा मीडिया और प्रचार तंत्र पर. जब कि बार-बार प्रमाणित होता आया है कि यह ‘भरोसा’ कुछ अरसे तक भले कामयाब लगे, और यह अरसा बहुत सीमित और अनिश्चित होता है, पर बहुत जल्द ऐसी कोशिश उलटा काम करने लगती है. (काउंटरप्रोडकटिव) होती है. इसकी वजह यह कि दर्शक-श्रोता-पाठक या ‘जनता’ का दिमाग़ कोई कूड़ेदान नहीं होता। जनता सूचना का ग्राहक और उपभोक्ता होती है और जल्द ही वह सूचनाओं की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को अपने विवेक की चलनी में छानना शुरू कर देती है.
और ऐसे फैसले ज़ाहिर करती है जिसका अंदेशा सत्ताधारी हुक्मरानों और उनके द्वारा नियंत्रित मीडिया के ‘प्रसारण अड्डों’ को नहीं हो पाता। आज जब मैं कई चैनलों में बनारस में (पूर्वी उत्तरप्रदेश) की चुनावी रैलियों या रोड शो की रिपोर्टिंग देख रहा था, रिमोट से एक से दूसरे और तीसरे-चौथे चैनलों पर आते-जाते हुए तो कुछ बातें लगीं, जो मैं आप दोस्तों से कहना चाहता हूँ :
पहला यह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोड शो सिर्फ टीवी के लिए आयोजित ‘स्क्रीन शो’ था. शायद इसके लिए पहले से कोई कानूनी अनुमति नहीं ली गयी थी. यह चुनाव आयोग की नियम-संहिताओं का उल्लंघन था. यह गैर कानूनी था.
दूसरा, यह रोड शो बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से शुरू हो कर कुछ ही दूर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर तक और फिर भैरव मंदिर तक , शिव के पूजन-अर्चन तक जा कर समाप्त हो गया था. सूचना यह भी है कि इस रोड शो में बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के वी.सी. गिरीशचंद्र त्रिपाठी, जो संघ के कार्यकर्ता भी रहे हैं, भी एबीपी के छात्रों के साथ सम्मिलित रहे हैं. यह भी नियमों का उल्लंघन ही है. फिर जैसा उर्मिलेश उर्मिल जी ने सवाल उठाया है, यह चुनाव के दौरान धार्मिक-जातिवादी आस्थाओं के गैर-कानूनी इस्तेमाल का भी तथ्य बनता है.
इसके मुकाबले अखिलेश-राहुल के रोड शो ने 12 किलोमीटर तक की खासी लम्बी दूरी तय की और यह सच भी खुल कर सामने आया कि इस रैली में शामिल लोगों की संख्या कहीं अधिक थी.
मुझे जो एक सूचना बहुत मानीखेज लगती है वह यह है कि जहां प्रधानमंत्री मोदी जी का रोड शो बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के कहे जाने वाले संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय की मूर्ती के माल्यार्पण से शुरू हुआ और मंदिरों तक जा कर ख़त्म हो गया , वहीं अखिलेश -राहुल का 12 किलोमीटर का रोड शो बाबा साहब भीमराव आंबेडकर पार्क से शुरू हो कर उसी बनारस हिन्दू वि.वि. तक आकर समाप्त हुआ, जो मोदी-रोड शो का प्रस्थान बिंदु था.
इस प्रारम्भ और अंत के बिंदु का गहरा सामाजिक अर्थ है. यही सपा और भाजपा-संघ के बीच के फर्क का भी, फिलहाल, संकेत देता है.
लेकिन, सूचना यह भी है कि एक तीसरी रैली भी इसी समय आयोजित हुई , जो मीडिया के कैमरों से तो दूर रही , लेकिन उस रैली या चुनाव सभा में पांच लाख से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। और यह रैली , इन दोनों रोड शो से बहुत बड़ी थी. यह बसप की रैली थी. मायावती की चुनावी सभा, जिसमें बाबा साहब आंबेडकर के बैनर और पोस्टर चारों ओर छाए हुए थे.
मैं नहीं जानता, सैफोलोजिस्ट या टीवी -ज्योतिषी नहीं हूँ कि यह दावा करूं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की ४९ सीटों पर कौन-सी पार्टी जीतेगी या बहुमत बनायेगी, लेकिन यह ज़रूर कह सकता हूँ कि सवर्ण-हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक सत्ता के कमज़ोर होने की यह शुरुआत है. ‘मोदी-मोहभंग’ की पहली बड़ी सूचना.
वैसे अधिक खुश होने की जरूरत नहीं क्योंकि राजनीतिक हार-जीत से सामाजिक-सांस्कृतिक धरातल पर असली प्रभुत्वशाली ताकतें पराजित नहीं होतीं. वे और अधिक आक्रामक या चतुर हो कर अपनी पकड़ सत्ता पर मज़बूत करेंगी और देश के संविधान की मूल प्रतिज्ञाओं के अनुरूप समाज और राजनीति को बनाने का संघर्ष और कठिन होगा। चुनाव आयोग को निष्पक्ष हो कर जांच करनी चाहिए कि किसने रोड शो के मामले में कोड ऑफ़ कंडक्ट का उललंघन किया है. चाहे वह कोइ भी हो.
हाँ, इस बार भी जब मोदी जी ने शिव पूजन किया, इंडिया आस्ट्रेलिया के खिलाफ बंगलूर के टेस्ट मैच में सिर्फ १८९ रन बना सकी और शर्मनाक हार की आशंका में धकेल दी गयी. याद होगा दोस्तों, मैंने पिछली बार भी कहा था कि जिस रोज़ मोदी जी ने ईशा फाउंडेशन वाले ‘त्रिपुंड-विहीन त्रिपुरारी शिव’ का शिवरात्रि के दिन पूजन अभिषेक किया था, उस दिन भी उन्नीस बार लगातार अपराजित रहने वाली ‘इंडिया’ पुणे में आस्ट्रेलिया के हाथों बुरी तरह से हारी थी.
शिव जी बहुत प्रसन्न नहीं लग रहे.
हम तो यही चाहेंगे कि सियासी चुनाव में कोई भी जीते, इंडिया पराजित न हो। 🙂
(इस व्यक्तिगत टिप्पणी के लिए क्षमा दोस्तों )
जाने माने साहित्यकार उदय प्रकाश की एफबी वॉल से.