चुनाव आयोग ने अपने एक अफसर को मुअत्तिल कर दिया, क्योंकि उसने ओडिशा में प्र.मं. नरेंद्र मोदी के हेलिकाॅप्टर को जांच के लिए 15 मिनिट तक रोक लिया था। आयोग ने अपने हिसाब से ठीक किया, क्योंकि आयोग के नियम के अनुसार जो लोग एसपीजी (विशेष सुरक्षा समूह) की देख-रेख में रहते हैं, उनकी सुरक्षा जांच नहीं की जानी चाहिए। मोहम्मद मोहसिन नामक इस आईएएस अफसर ने आयोग के नियम का उल्लंघन कर दिया था।
यहां मेरा प्रश्न यह है कि चुनाव आयोग ने यह बेतुका प्रावधान रखा ही क्यों? जिन-जिन लोगों को एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है, वे कौन लोग हैं? उनमें से ज्यादातर नेता लोग हैं। इनमें से कौन दूध का धुला हुआ है? राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की बात जाने दें, बाकी जितने भी नेता हैं, सबके सब पार्टीबाज हैं। और, यह तो चुनाव का मौसम है याने करेला और नीम चढ़ा। इन दिनों हर नेता चुनाव जीतने के लिए कोई भी पैंतरा अपना सकता है। वह अपने हेलिकाप्टर और जहाज में बांटने के लिए करोड़ों रुपये, शराब की बोतलें और दुनिया भर की चीजें ले जा सकता है। उसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? जरुर होनी चाहिए और सबसे पहले होनी चाहिए।
यदि मुझे यह सुरक्षा मिली होती (कुछ वर्षों तक मुझ पर भी एक सुरक्षा थोप दी गई थी) तो मैं आगे होकर कहता कि आप कृपया मेरी जांच करें। ऐसी जांच से निर्दोष नेता की छवि में चार चांद लग जाते हैं, जैसे कि इस जांच में मोदी के लगे हैं। मोदी के हेलिकाप्टर में से कुछ नहीं निकला। मोदी को स्वयं चाहिए कि वे चुनाव आयोग से सार्वजनिक अपील करें कि वह अपने जांच संबंधी इस नियम को बदले। यही नियम लागू करते हुए जब ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के हेलिकाप्टर की जांच की गई तो वे एक शब्द भी नहीं बोले। उन्होंने चुपचाप जांच होने दी लेकिन केंद्रीय तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की जांच होने लगी तो वे भड़क उठे। उनके हेलिकाप्टर में एक सीलबंद बड़ा सूटकेस रखा हुआ था।
सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के कान खींचे तो वह इन दिनों थोड़ा मुस्तैद हो गया है लेकिन उसकी यह मुस्तैदी सबके लिए एक-जैसी होनी चाहिए, चाहे वह प्रधानमंत्री हो या चपरासी हो।
लेखक डा. वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.