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सियासत

मेरे पहले मनीऑर्डर की कहानी

यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब मैं 24 साल का एक नौजवान था। मेरे पास नेचुरोपैथी अस्पताल से पास किए कोर्स का प्रमाण पत्र, किताबों से मुंह तक भरा खाकी रंग का एक थैला, आधी भरी गुल्लक और दो आंखों में अनगिनत सपने थे। मैं जब बहुत छोटा था तब से ही सुंदर और आकर्षक बिल्कुल नहीं था। यह बात मुझे तब मालूम हुई जब एक दिन मैंने आईना देखा। यही वजह थी कि मेरा कभी कोई दोस्त नहीं बना। मेरे पापा के पास ज्यादा पैसे भी नहीं थे, इसलिए हमारे संयुक्त परिवार के कई बड़े लोगों को मुझसे कोई लगाव नहीं था। जब मैं एक अंकल के घर टीवी देखने जाता तो वे उसे फौरन बंद कर देते। कुछ लोगों को मेरा स्कूल जाना भी पसंद नहीं था। मैं एक ऐसा उपेक्षित बच्चा था जिससे बहुत कम लोग स्नेह रखते थे, इसलिए वह ज्यादातर लोगों से दूर ही रहना चाहता था। ऐसे समय में मैंने किताबों को ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त बना लिया। मेरी इन दोस्तों की संख्या आज भी बढ़ती जा रही है और मुझे उनके लिए एक बक्सा खरीदना पड़ा। मुझे छुट्टियां बिल्कुल पसंद नहीं हैं क्योंकि ये बेहद उबाऊ होती हैं और मुझे हर वक्त कोई काम करना पसंद है।

<p>यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब मैं 24 साल का एक नौजवान था। मेरे पास नेचुरोपैथी अस्पताल से पास किए कोर्स का प्रमाण पत्र, किताबों से मुंह तक भरा खाकी रंग का एक थैला, आधी भरी गुल्लक और दो आंखों में अनगिनत सपने थे। मैं जब बहुत छोटा था तब से ही सुंदर और आकर्षक बिल्कुल नहीं था। यह बात मुझे तब मालूम हुई जब एक दिन मैंने आईना देखा। यही वजह थी कि मेरा कभी कोई दोस्त नहीं बना। मेरे पापा के पास ज्यादा पैसे भी नहीं थे, इसलिए हमारे संयुक्त परिवार के कई बड़े लोगों को मुझसे कोई लगाव नहीं था। जब मैं एक अंकल के घर टीवी देखने जाता तो वे उसे फौरन बंद कर देते। कुछ लोगों को मेरा स्कूल जाना भी पसंद नहीं था। मैं एक ऐसा उपेक्षित बच्चा था जिससे बहुत कम लोग स्नेह रखते थे, इसलिए वह ज्यादातर लोगों से दूर ही रहना चाहता था। ऐसे समय में मैंने किताबों को ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त बना लिया। मेरी इन दोस्तों की संख्या आज भी बढ़ती जा रही है और मुझे उनके लिए एक बक्सा खरीदना पड़ा। मुझे छुट्टियां बिल्कुल पसंद नहीं हैं क्योंकि ये बेहद उबाऊ होती हैं और मुझे हर वक्त कोई काम करना पसंद है।</p>

यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब मैं 24 साल का एक नौजवान था। मेरे पास नेचुरोपैथी अस्पताल से पास किए कोर्स का प्रमाण पत्र, किताबों से मुंह तक भरा खाकी रंग का एक थैला, आधी भरी गुल्लक और दो आंखों में अनगिनत सपने थे। मैं जब बहुत छोटा था तब से ही सुंदर और आकर्षक बिल्कुल नहीं था। यह बात मुझे तब मालूम हुई जब एक दिन मैंने आईना देखा। यही वजह थी कि मेरा कभी कोई दोस्त नहीं बना। मेरे पापा के पास ज्यादा पैसे भी नहीं थे, इसलिए हमारे संयुक्त परिवार के कई बड़े लोगों को मुझसे कोई लगाव नहीं था। जब मैं एक अंकल के घर टीवी देखने जाता तो वे उसे फौरन बंद कर देते। कुछ लोगों को मेरा स्कूल जाना भी पसंद नहीं था। मैं एक ऐसा उपेक्षित बच्चा था जिससे बहुत कम लोग स्नेह रखते थे, इसलिए वह ज्यादातर लोगों से दूर ही रहना चाहता था। ऐसे समय में मैंने किताबों को ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त बना लिया। मेरी इन दोस्तों की संख्या आज भी बढ़ती जा रही है और मुझे उनके लिए एक बक्सा खरीदना पड़ा। मुझे छुट्टियां बिल्कुल पसंद नहीं हैं क्योंकि ये बेहद उबाऊ होती हैं और मुझे हर वक्त कोई काम करना पसंद है।

उन दिनों मैं सुबह एक दैनिक अखबार के संपादकीय विभाग में काम भी करता था, क्योंकि अब तक स्याही और कलम ही मेरे जिस्म का खून और दिल बन चुके थे। इनके बिना मैं जीने की कल्पना नहीं कर सकता। शाम का समय पूरी तरह से मेरा था। तब मैं नेचुरोपैथी पर नए प्रयोग करता या देर रात तक किताबों में डूबा रहता। कभी-कभी मैं मेरी हैंडराइटिंग को प्राचीन अंग्रेजी लिपि की तरह और सुंदर बनाने की कोशिश करता। इसके अलावा मेरे पास किसी काम के लिए समय नहीं था।

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एक शाम उपभोक्ता अधिकारों की पत्रिका कंस्यूमर वॉयस की संपादक डॉ. रूपा वाजपेयी का फोन आया। उन्होंने सलाह दी कि मुझे उनकी मशहूर पत्रिका के लिए नेचुरोपैथी पर कॉलम लिखना चाहिए। इससे लोगों को मेरे नए-नए प्रयोगों के बारे में कुछ मालूम तो होगा। यह रूपा जी का बड़प्पन है कि उन्होंने मामूली लड़के को एक पत्रिका का कॉलमिस्ट बना दिया। संभवतः इस विषय पर मैं भारत का सबसे कम उम्र का कॉलमिस्ट भी रहा हूं। मुझे याद है, मैं उनकी पत्रिका के लिए कॉलम लिखने लगा और एक बार मैंने बालों की सुरक्षा पर भी लेख भेजा था, जो उन्होंने प्रकाशित किया।

कुछ दिनों बाद हर रोज की तरह एक सुबह मैं उठा। यह रविवार की एक ठंडी सुबह थी क्योंकि पिछली रात को बहुत तेज बारिश हुई थी। मैं घर के सामने बगीचे में मेरे उस दंत मंजन का प्रयोग मुझ पर कर रहा था जो तीन दिन पहले मैंने बनाया था। मेरे पास एक टेबल पर रस्किन बॉण्ड की द रूम ऑन द रूफ रखी थी। एक कौआ, जो पिछली रात शायद पूरी तरह बारिश में भीग चुका था, उस किताब के पन्नों में झांक कर उसे समझने का असफल-सा प्रयास कर रहा था। तभी मेरे मोबाइल फोन की घंटी बजी। यह एक बिल्कुल अनजान नंबर था। मैंने फोन उठाया तो उधर से किन्हीं महिला ने बंगाली लहजे में हिंदी बोलते हुए कहा :

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– हैलो, क्या आप मि. राजीव बोलते हैं?

– जी मैम, मैं ही बोल रहा हूं।

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– मि. राजीव, मैं कोलकाता से मिसेज मुखर्जी बोलती हूं। कंस्यूमर वॉयस में केश सुरक्षा पर आपका आर्टिकल पढ़ा। खूब अच्छा है।

– धन्यवाद मिसेज मुखर्जी, बताइए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?

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– ओह, आपने आर्टिकल में इतना कुछ लिख दिया है कि उसका हिंदी हमारा समझ में नहीं आता। कुछ चीजों का नाम भी हमें मालूम नहीं। क्या आप केश धोने का कोई हर्बल साबुन जैसा चीज हमें भेज सकता है? आपको उसका पैसा मनीऑर्डर से मिल जाएगा।

– ओके मिसेज मुखर्जी, मैं दो-तीन दिन में आपको एक शैंपू जैसा पाउडर डाक से भेज दूंगा। धन्यवाद।

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उस दिन दोपहर को मैंने कोई फिल्म नहीं देखी। मैंने डिस्कवरी और एनएचके वर्ल्ड के सभी प्रोग्राम मिस कर दिए। मैं कोई किताब भी नहीं पढ़ सका क्योंकि आज मेरे पास ढेर सारा काम था। मैं दोपहर का खाना खाने के तुरंत बाद अपने काम में जुट गया। ढेर सारी सामग्री को कूटते-पीसते और छानते हुए मेरी हथेली पर छाला हो गया लेकिन मुझे इसकी कोई परवाह नहीं थी। मैं मिसेज मुखर्जी की दी हुई जिम्मेदारी में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था। आखिर वे एक ‘महान’ लेखक की पहली पाठक थीं जिन्होंने उसे फोन कर साबित कर दिया कि वह कितना महत्वपूर्ण है! काम पूरा होने के बाद मैंने शैंपू को एक लिफाफे में पैक किया और उस पर पता लिखा। मैंने पते को तीन बार पढ़ा, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरी कड़ी मेहनत से तैयार चीज गलत पते पर चली जाए।

उस रात मुझे भयानक सपने आते रहे। एक सपने में डाकिए की गलती से लिफाफा किन्हीं मिसेज बनर्जी के घर चला गया और मेरा उनसे भारी झगड़ा हो गया। दूसरे में मिसेज मुखर्जी ने लिफाफा देरी से पहुंचने पर पैसे देने से इन्कार कर दिया। मेरे लिए खुशी की बात सिर्फ इतनी थी कि यह महज एक सपना था।

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आखिरकार वह महान दिन आ ही गया। उस रोज मैं सुबह जल्दी उठा। आज मेरी दिलचस्पी अखबार में बिल्कुल नहीं थी। यह एक चमकदार और गर्म सुबह थी। मैं तैयार होकर जल्द डाकघर पहुंचना चाहता था। मैंने मेरे पसंदीदा बैग में लिफाफा रखा। मैं मेरा लकी पैन साथ ले जाना नहीं भूला।

आज बाजार भी जल्दी खुल चुका था। मंडी में बड़े तराजू पर आलू की बोरियां तोली जा रही थीं। एक ट्रक चालक बहुत तेज आवाज में गाने सुन रहा था। शायद वह एक धार्मिक भजन सुन रहा था जो किसी स्थानीय कलाकार ने पुरानी फिल्मी धुन चुराकर तैयार किया था। हमारे इलाके का डाकघर भी अब तक खुल चुका था लेकिन वहां लंबी कतार देखकर मेरा उत्साह ठंडा पड़ गया। शायद वे लोग किसी प्रतियोगी परीक्षा का फॉर्म जमा कराने आए थे। वे सभी बड़ा सरकारी अफसर बनना चाहते थे। बीच में धक्का-मुक्की से माहौल अशांत हो गया और दो भावी अफसर गुत्थमगुत्था हो गए। उन्हें बड़ी मुश्किल से अलग किया गया। थोड़ी देर बाद हमें बताया गया कि डाकघर का एक कंप्यूटर काफी पुराना हो चुका है और वह अब काम करने में असमर्थ है। इसलिए सभी लोगों को डाक जमा कराने दूसरी शाखा में चले जाना चाहिए। असुविधा के लिए बहुत खेद है।

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मैं काफी दूर पैदल चलकर दूसरी शाखा में गया। वह एक छोटा डाकघर था जहां एक बुजुर्ग अंकल बैठे थे। उन्होंने मुझे बताया कि यह उनके अखबार पढ़ने और वर्ग पहेली भरने का समय है। मुझे उनकी समस्या समझनी चाहिए। ऐसे हालात में उन्हें और परेशान नहीं करना चाहिए। मैंने उसी वक्त प्रतिज्ञा की कि अब कभी सरकारी डाक का उपयोग नहीं करूंगा। मैं तुरंत एक प्राइवेट कोरियर कंपनी के ऑफिस गया। वहां ठंडा पानी पिलाकर मेरा स्वागत किया गया। अगर उस वक्त हमारे प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री मेरे साथ होते तो वे बेहद आसानी से समझ सकते थे कि कुछ सरकारी उपक्रम घाटे में क्यों चल रहे हैं।

मैंने काउंटर पर लिफाफा जमा कराया और रसीद लेकर आ गया। अब मैं कल्पना करने लगा कि मिसेज मुखर्जी तक यह लिफाफा पहुंचने से पहले कौनसे रास्ते से होकर गुजरेगा।

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करीब एक हफ्ते बाद एक डाकिया मेरे घर आया। उसने मेरा नाम पुकारा और पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था। पूरी तरह संतुष्ट होकर उसने सौ रुपए के पांच नोट मुझे थमा दिए और तय जगह पर हस्ताक्षर करवाए।

– क्या मेरे नाम से पांच सौ आए हैं?

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– जी हां, पूरे पांच सौ। डाकिए ने जवाब दिया और चला गया। उसे दूसरी जगह भी डाक बांटनी थी।

वास्तव में पांच सौ मेरी उम्मीद से बहुत ज्यादा थे। मुझे तो चार सौ का ही इंतजार था। यह सचमुच मेरे लिए एक ऐतिहासिक दिन था। यह मेरी कड़ी मेहनत का परिणाम था, जिसकी खुशी शब्दों में बता पाना अभी मेरे लिए संभव नहीं है। आज मैं पूरी दुनिया को बता देना चाहता था कि मनीऑर्डर सिर्फ पैसे लेकर ही नहीं आते। ये भरोसा, खुशियां और प्रेरणा लेकर भी आते हैं। आज मैं दुनिया का सबसे ज्यादा धनवान लड़का था। बिल गेट्स से भी थोड़ा ज्यादा।

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उस रात मैंने सपना देखा … मेरी एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी है। मैं उसमें एक छड़ी लिए घूम रहा हूं। शायद यह जादू की छड़ी है जिससे मैं किसी भी लेखक को प्रकट कर सकता हूं। अब शेक्सपीयर, टॉलस्टॉय और प्रेमचंद जैसे अनगिनत लेखकों से मैं जब चाहे तब बात कर सकता हूं। मेरे ढेर सारे दोस्त भी हैं जिन्हें मैं किताबें दिखा रहा हूं। वह डाकिया भी अब मेरा दोस्त बन चुका है जो मेरे लिए पांच सौ रुपए लेकर आया। मैंने लाइब्रेरी के एक कोने में नेचुरोपैथी के उत्पादों की छोटी-सी दुकान लगा रखी है। मेरी टेबल के चारों ओर किताबें बिखरी हुई हैं जिन्हें मैं व्यवस्थित तरीके से अलमारी में रख रहा हूं। मैं वहां बैठे कुछ बच्चों को बता रहा हूं कि एक अच्छी कहानी कैसी होती है। मैं उन्हें अंग्रेजी की सुंदर हैंडराइटिंग के तरीके भी समझा रहा हूं। लाइब्रेरी के बाहर एक बोर्ड लगा है। उस पर कुछ नियम लिखे हैं जो मैंने बनाए हैं। उसमें सबसे ऊपर लिखा है – कृपया ब्याज व दहेज लेने वाले और बच्चों को बेरहमी से पीटने वाले प्रवेश न करें, यहां से चले जाएं। इस पूरी भीड़ में मिसेज मुखर्जी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं। शायद उनके पति को किताबों से खास लगाव नहीं है या उन्हें अनजान लोगों से मिलना पसंद नहीं है।

अगर ईश्वर मुझे सिर्फ एक वरदान दे तो मैं चाहूंगा कि वह मेरा यह सपना सच कर दे।

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कुछ दिनों बाद मुझे मिसेज मुखर्जी का एक एसएमएस मिला। उन्होंने शैंपू के लिए आभार जताया। साथ ही शिकायत भी की कि मुझे पत्र-पत्रिकाओं में लेख के साथ अच्छी फोटो भेजनी चाहिए। उनके मुताबिक मेरी पुरानी फोटो आकर्षक नहीं है। तभी से मैं एक अच्छे फोटोग्राफर की तलाश में हूं। अगर आप किसी प्रतिभाशाली फोटोग्राफर को जानते हैं तो मुझे उसका पता दे दीजिए, क्योंकि अब मैं दुनिया का सबसे धनवान लड़का जो हूं। सुंदर भी और आकर्षक भी।

राजीव शर्मा

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ganvkagurukul.blogspot.com

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