अय सखि साजन? न सखि दलाल! निबिड़ आश्चर्य हुआ, जब मैंने उत्तराखण्ड में दबोचे गए स्टिंग बाज़ के पक्ष में कुछ पत्रकारों की अपील देखी। क्या यह पत्रकार है, जो अपना कलुषित मिशन पूरा न होने पर अपने चैनल में काम कर रहे पत्रकारों के प्राण हनन की धमकी देता है? हो सकता है कईयों को मरवा भी चुका हो।
दरअसल इस नवोदित राज्य में ऐसे धंधेबाजों की बन आयी है। इन्हें कांग्रेस और भाजपा दोनो ने पनपाया है। जब मैंने देहरादून स्थित चैनलों के कई स्ट्रिंगरों को चौड़ी चकली कारों में घूमते और ब्रांडेड कपड़े पहने देखा, जिन्हें बमुश्किल 10 हज़ार रुपये दरमाहा मिलता है, तो इनके बारे में दरयाफ़्त की। मुझे पता चला कि ये अफसरों का स्टिंग कर उनसे पैसे ऐंठते हैं, और ज़मीनों के धंधे करते हैं।
पकड़ा गया स्टिंग बाज़ इनका सरगना है। उसी ने यहां यह नया सेक्टर ईज़ाद किया। मैने 12 साल तक भारत के सबसे बड़े मीडिया प्रकाशन समूह में नौकरी की। ततपश्चात स्वतंत्र वृत्ति शुरू की, तो देश का ऐसा कोई प्रतिष्ठित हिंदी अखबार नहीं, जिसके एडिट पेज पर मैं ससम्मान न छपता रहा हूँ।
अपनी पारिवारिक हैसियत की वजह से सेठ बिड़ला और राहुल गांधी जैसे महाजन मेरे घर आते जाते रहे हैं, फिर भी मेरे पास एक पुरानी मारुति कार है, जिसके घिसे टायर बदलने को मेरे पास पैसा नहीं। दूसरी ओर, जैसा कि मैंने सुना, उक्त धंधेबाज आधा दर्ज़न महंगी गाड़ियों के काफिले के साथ दनदनाता था। आखिर उसके पास ऐसा कौन सा चमत्कार है? जिस साल वह पैदा हुआ, उस साल मुझे पत्रकारिता करते 10 साल पूरे हो चुके थे।
दूसरी ओर उसके द्वारा किये गए स्टिंग भी सार्वजनिक हों। बीजेपी जब उससे हरीश रावत की पिंडली कटवा रही थी, तब वह खोजी पत्रकार था, तो आज अपराधी कैसे हो गया।
मेरी मांग है कि उसकी सारी सम्पति कुर्क कर, उसके चैनल में काम कर रहे पत्रकारों में बांट दी जाए। उसे और उस जैसे पत्रकारिता की खाल में छुपे भेड़ियों को इस राज्य से चूतड़ों पर लात मार कर दफा किया जाए।
उत्तराखंड के वरिष्ठ और चर्चित पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा की फेसबुक वॉल से।