Harsh Vardhan Tripathi : लिखा जा रहा है कि मोदी-शाह के क़रीबी अजय सिंह ने NDTV ख़रीद लिया। तो पूरा लिखिए कि सीपीएम नेता प्रकाश करात के रिश्तेदार प्रणय-राधिका रॉय को 100 करोड़ रुपए इस बिक्री से मिलेंगे। 400 करोड़ रुपये का क़र्ज़ भी अजय सिंह चुकाएँगे। मेरा मानना है कि कारोबारी बेवक़ूफ़ नहीं होता कि सिर्फ ख़रीदकर बन्द करने के लिए चैनल ले रहा होगा। हाँ, यह जरूर है कि चैनल चलाना और हवाई जहाज़ चलाना एकदम अलग बात है।
टीवी चैनल के मालिक तो जहाज़ से भी ऊपर उड़ते रहे हैं। दोनों में घाटा ही घाटा होता है फिर भी मालिक की बल्ले-बल्ले होती है। देखिए ना, सैकड़ों कर्मचारियों को निकालने के बाद डॉ राय दम्पति को 100 करोड़ कैश मिल जाएगा। 20% हिस्सेदारी बनी ही रहेगी। लेकिन, अब पूरी खबर लिखने की आदत किसी को कहाँ रही है। अपने मतलब भर का वीओ और उसी को साबित करने वाली बाइट। ज़्यादा साबित करने के लिए अपने पसन्दीदा मेहमान के साथ प्राइम टाइम। नए एनडीटीवी में भी यही होगा, बस तरीक़ा बदल जाएगा। मुझे इस बिकने में अच्छा यह दिख रहा है कि कुछ नएके पत्रकारों को नौकरी मिल जाएगी।
Alok Kumar : NDTV बिक गया। एतराज का एक और सुर बंद हो जाएगा। बाजार की ताकत बेमिसाल है। एतबार के बीच कबीरा को बाजार में आना पडा। NDTV के editorial content के नए मालिक बीजेपी के करीबी एक उद्योगपति होंगे। कभी प्रमोद महाजन के ओएसडी रहे अजय सिंह ने रॉय दंपति को मुंह मांगा कीमत देकर NDTV का 40 फीसदी शेयर खरीद लिया। प्रणय रॉय और राधिका के पास अब बस बीस फीसदी शेयर रह गए।
Vishnu Nagar : तो क्या एनडीटीवी भी बिक गया भाजपा के हाथों? लगता यही है क्योंकि इंडियन एक्सप्रेस ने यह ख़बर मुखपृष्ठ पर छापी है तो यह अखबार ऐसा नहीं है कि अफ़वाह को ख़बर बना दे! वैसे यह ख़बर अफ़वाह साबित हो जाए तो क्या बात है! तो भाजपा ने अपने खासमखास अजय सिंह -जो कि स्पाइसजेट के मालिक हैं -के ज़रिये खेल खेल दिया है ताकि मीडियावाले हल्ला करने की स्थिति में न रहें! भाजपा की दृष्टि से यह स्मार्ट मूव है चतुराईभरा खेल है। मगर क्या सारे चैनलों पर क़ब्ज़ा करना सचमुच स्मार्टनेस है? दूरगामी दृष्टि से सोचें-जिससे राजनीतिक दल सोच नहीं सकते-यह भाजपा के लिए घातक है। अगर हरेक का गला दबा दोगे, विरोध की सभी आवाज़ों को हर जगह से दबा दोगे तो अस्थायी जीत तो मिल जाएगी मगर पतन का रास्ता भी बहुत जल्दी खुल जाएगा। लेकिन हम-आप क्या कर सकते हैं? पूँजी और सत्ता के सामने हमारी एक कमज़ोर और बहुधा अकेली सी आवाज़ है, वह भी कब तक उठा सकेंगे, मालूम नहीं। लेकिन लोगों मानो या न मानो-चाहे मोदीभक्ति में आँखें मूँदे रहो- बहुत बुरे दिन आ चुके हैं सभी के लिए। उसके बाद जब सचमुच के (मोदीछाप नहीं) अच्छे दिन आएँगे तब तक काफ़ी बर्बादी हो चुकेगी। तो क्या एनडीटीवी के बढ़िया पेशेवर पत्रकारों से अलविदा कहने के दिन आ गये? हिंदी-अंग्रेज़ी दोनों चैनलों के सारे बेहतरीन एंकर और संवाददाता क्या अब विदा! रवीश कुमार क्या विदा, सचमुच विदा?
Dilip Khan : NDTV ख़रीदने की ख़बरों के बीच देखिए कि SpiceJet वाले अजय सिंह को टाइमिंग की कितनी ज़्यादा समझदारी है। 1. पहली NDA सरकार में वो प्रमोद महाजन के साथ जुड़े। उस वक़्त प्रमोद महाजन का क्या रुतबा था, सब जानते हैं। राजनीतिक गलियारों में पैठ बनाई। परिवहन पर काम किया। मार्केट समझ लिया। 2. 2004 में SK मोदी के ModiLuft को ख़रीदा। नया नाम दिया- स्पाइसजेट। यूपीए-1 तक पूरा चलाया। घाटा हुआ। 3. फिर अगली बार 2009 में भी UPA की सरकार आ गई। 2010 में कलानिधि मारन (मुरासोली मारन का बेटा, दयानिधि मारन का भाई और करुणानिधि की बहन का पोता) के हाथों SpiceJet को बेच दिया। 4. कलानिधि मारन ने स्पाइसजेट को खूब विस्तार दिया। 2011-12 में जब घाटा हुआ तो मारन ने इसमें और पैसे झोंक दिए। स्पाइसजेट चल निकला। DMK सरकार में हिस्सेदार थी। परिवार के लोगों का रसूख था। स्पाइसजेट का विस्तार तो खूब हुआ, लेकिन 2013 के बाद मुनाफ़ा गिरने लगा। 5. इस बीच हवा भांपकर अजय सिंह फिर से बीजेपी के साथ हो चले। नरेन्द्र मोदी के चुनावी अभियान से जुड़ गए। मेहनत की। स्लोगन डिपार्टमेंट का सारा पैसा अजय सिंह ने पे किया। रिजल्ट आया। बीजेपी जीत गई। मोदी प्रधानमंत्री बन गए। 6. दिसंबर 2014 में जब लगातार पांच तिमाही SpiceJet को घाटा हुआ तो कलानिधि मारन और अजय सिंह के बीच फिर डील हुई। अब मोदी जी की सरकार थी। कमान अजय सिंह ही बढ़िया संभाल सकते थे। 7. जनवरी 2015 में अजय सिंह ने कलानिधि मारन से सारा शेयर ख़रीद लिया। SpiceJet तब से बम-बम कर रहा है। 8. अभी मोदी जी जब अमेरिका गए थे, तो अजय सिंह की कंपनी SpiceJet के लिए 100+ बोइंग विमान ख़रीदने का डोनल्ड ट्रंप से करार किया। एस के मोदी से अगर ModiLuft अजय सिंह नहीं ख़रीदे होते तो नरेन्द्र मोदी कैसे अमेरिका से SpiceJet की डील कर पाते!
Rakesh Kayasth : पूरी ख़बर आने पर ही असली बात ठीक से समझ में आएगी। लेकिन फिलहाल यही लग रहा है एनडीटीवी के मालिक डॉक्टर प्रणय रॉय अब उसी तरह पवित्र हो गये हैं जैसे नीतीश कुमार। पवित्र होने के लिए गंगा नहाना ज़रूरी नहीं है, वैसे भी क्योटो बहुत दूर है। अंबानी, अडानी या अजय सिंह जैसा कोई व्यक्ति अपना थोड़ा सा `पुण्य’ छिड़क दे, यही काफी है। सौ करोड़ रुपये लेकर डॉक्टर राय पूरी दुनिया में जहां चाहे वहां सेटेल हो सकते हैं। अपना पसंदीदा संगीत सुन सकते हैं, दुनिया के मशहूर विश्वविद्यालयों में लेक्चर दे सकते हैं या तीसरी दुनिया में मीडिया की स्थिति पर कोई चर्चित किताब लिख सकते हैं। वैसे 100 करोड़ में कोई छोटा जनपक्षधर मीडिया हाउस भी खड़ा हो सकता है। लेकिन बहुत झंझट का काम है। इतना सब देखने के बाद यकीनन डॉक्टर रॉय का मोहभंग हो गया होगा। क्या रखा है, इन पचड़ों में। यहां-वहां तैर रही आधी ख़बरें आजकल गलत भी साबित होती हैं। देखते हैं आगे क्या होता है।
Rajendra Tiwari : एनडीटीवी को लेकर एक बिजनेस डील हुई है। इसको लेकर हाय-तौबा क्यों? क्या इस डील में कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है जो कानूनन वैध नहीं है। अपने यहां ऐसा कानून तो है नहीं कि दूसरे क्षेत्रों में बिजनेस इंटरेस्ट वाले मीडिया में न आ सकें। भाई, अगर ऐसा लग रहा है कि भाजपा समर्थक मीडिया पर काबिज हो रहे हैं तो भाजपा विरोधियों को किसी ने रोका है क्या? उनने रिपब्लिक शुरू किया तो आप डेमोक्रैटिक चैनल शुरू करो। वो एनडीटीवी पर काबिज हो रहे तो तुम किसी और के शेयर खरीदो….किसने रोका
Nadim S. Akhter : प्रणव रॉय, रजत शर्मा, राजीव शुक्ला और सुभाष चंद्रा ने शून्य से शिखर तक जाकर जिस तरह मीडिया अंपायर बनाया और उसे चला रहे हैं, उससे आप प्रेरणा ले सकते हैं। बाकी प्रणब रॉय को SPICE JET से डील में आम के आम और गुठली के भी दाम मिल गए हैं। नाम बना रहेगा और आर्थिक ज़िम्मेदारियों से भी छुटकारा मिला। कम से कम CNN IBN वाले राघव बहल और राजदीप सरदेसाई सा हाल तो नहीं होगा! और क्या चाहिए? बच्चे की जान लेंगे क्या? एक पुराने वरिष्ठ ने बताया था कि अगर दूरदर्शन ना होता तो ना तो NDTV होता और ना ही INDIA TV। ‘आज तक’ चैनल को भी उसमें कुछ हद तक जोड़ सकते हैं। सो नैतिकता का ज्ञान कृपया ना बघारें। बाजार में उतरेंगे तो इसी के नियम से चलना पड़ेगा। अब SNAPDEAL को अमेज़न खरीदे या फ्लिपकार्ट, क्या फ़र्क़ पड़ता है? हम दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है, जिधर चल देंगे रास्ता बन जायेगा। पत्रकार भी ऐसा ही होता है। मर्यादा में रहे तो सींचकर बस्तियां बसा दे और किनारा तोड़े तो तबाही ला दे।
सौजन्य : फेसबुक
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