राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लडने, स्मृति ईरानी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए ललकारे जाने के बीच उनका रायबरेली से ताल ठोंकने पर वरिष्ठ पत्रकार का विश्लेषण…
अमरेन्द्र राय-
अमेठी में तीन मई 2024 को जो भी हुआ वह किसी “थ्रिलर फिल्म” से कम नहीं था। इसने विदेशी लेखक “ओ हेनरी” की कहानियों की याद दिला दी जिनका अंत आप के सोचे गये अंत से हमेशा अलग होता है। इसने महाभारत में “जयद्रथ वध” की भी याद ताजा करा दी।
अमेठी का चुनाव 2024 का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव था। यहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गये थे। यह उनकी परंपरागत सीट थी। 2004 से वे खुद यहां से लगातार चुने जा रहे थे। लेकिन इसके बाद भारत की सभी नदियों से बहुत सारा पानी बह गया है। राहुल गांधी भी 2019 वाले “पप्पू” नहीं रह गये हैं। इस दौरान उन्होंने पूरे देश को दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम नाप कर अपना कद काफी बढ़ा लिया है। उन्होंने अपनी पहली भारत यात्रा में ही साबित कर दिया कि वे “पप्पू” नहीं बल्कि देश के किसी भी नेता से ज्यादा पढ़े-लिखे और समझदार इंसान हैं। जिन लोगों ने उन्हें “पप्पू” बनाने का अभियान चलाया वो तो उनके पसंगे के बराबर भी नहीं हैं। उनकी एक अच्छी छवि उभरकर आम लोगों के बीच आई है और उनकी लोकप्रियता भी काफी बढ़ गई है। पूरा देश अब उनकी बातें सुन रहा है।
अमेठी में इस दौरान जो सर्वे हुए उसमें भी यह बात बार-बार उभर कर आई कि अगर राहुल गांधी वहां से चुनाव लड़ें तो इस बार आसानी से स्मृति ईरानी को हरा देंगे। बावजूद इसके जब वे वायनाड से परचा भरे और चुनाव लड़े तो बीजेपी प्रचार करने लगी कि वे अभी भी स्मृति ईरानी से डरे हुए हैं और अमेठी से चुनाव लड़ने में घबड़ा रहे हैं। इसका असर भी उत्तर भारत के लोगों के बीच हो रहा था। राहुल गांधी के प्रशंसक भी कह रहे थे कि अगर राहुल गांधी ने अमेठी से चुनाव नहीं लड़ा तो पूरे उत्तर भारत में इसका गलत संदेश जायेगा।
बावजूद इसके अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हो रही थी। तीन मई नामांकन की आखिरी तारीख थी। दो मई की रात तक कोई घोषणा नहीं हुई। अलबत्ता अमेठी में यह चर्चा चल पड़ी की राहुल यहां से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन सुबह होते ही पता चला कि राहुल अमेठी से नहीं बल्कि रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे। अमेठी से उनके परिवार से लंबे समय से जुड़े किशोरी लाल शर्मा लड़ेंगे।
यह राजनीति की शतरंजी चाल है। ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। शतरंज में हाथी सीधा चलता है, ऊंट तिरछा, रानी किसी भी तरफ, बादशाह एक कदम लेकिन घोड़ा ढाई चाल चलता है। राहुल गांधी ने घोड़े वाली चाल का इस्तेमाल किया। वे अमेठी की बजाय बगल वाली सीट रायबरेली पर आ गये। इससे अमेठी पर स्मृति ईरानी समेत पूरी भाजपा की तैयारी धरी की धरी रह गई। बीजेपी की राहुल गांधी को अमेठी में घेरने और उन्हें वहीं फंसाकर रखने की जो योजना थी वह फुस्स हो गई। ऊपर से अगर किशोरी लाल ने स्मृति ईरानी को हरा दिया तो “महारानी” कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगी। कहा जायेगा कि जिस सेनापति को वे ललकार रही थीं उसके छोटे से प्यादे ने उन्हें मात दे दी। राहुल गांधी की इस चाल ने महाभारत के “जयद्रथ वध” की याद दिला दी। अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु के बाद अर्जुन ने कसम ली थी कि अगले दिन का सूरज डूबने से पहले वे जयद्रथ का वध कर देंगे।
अगले दिन वे जब रथ लेकर निकले तो बीच में भीष्म, द्रोणाचार्य जैसे योद्धा अर्जुन का रास्ता रोककर युद्ध के लिए ललकारने लगे तब कृष्ण ने अर्जुन से कहा इनसे युद्ध करने में समय बीत जाएगा इसलिए इन्हें छोड़कर लक्ष्य ( जयद्रथ ) की ओर बढ़ो। अर्जुन ने वैसा ही किया। यहां राहुल ने भी वही किया। अमेठी को छोड़कर अपने बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ चले हैं।
राहुल गांधी एक लंबे समय से अपने भाषणों में कह रहे थे कि मैं मोदी जी से नहीं डरता। अब मोदी जी समेत पूरी बीजेपी कह रही है कि राहुल डरो मत, भागो मत। राहुल गांधी ने बड़े लक्ष्य के लिए ढाई चाल जरूर चल दी है लेकिन इससे बीजेपी को लोगों को यह बताने का मौका तो मिल ही गया है कि राहुल स्मृति ईरानी से डर गये हैं। इसका थोड़ा असर तो बाकी के चुनावों पर पड़ ही सकता है। बाकी बातें चार जून को जब नतीजे आयेंगे तब पता चलेंगी कि उन्होंने अपनी घोड़ा पछाड़ चाल से बीजेपी को पछाड़ दिया है या यह उनका गलत फैसला साबित हुआ है।