मनीष सिंह-
पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड !!!
भारतीय राजनैतिक विमर्श में कांग्रेस की विधवा, बार बाला, इटालियन डांसर, भूरी काकी, वैश्या, चुड़ैल, कुतिया, दीदी ओ दीदी, ताड़का जैसे स्वर्णिम शब्दो का चलन तो बाद में आया। इसका विराट उद्घाटन “पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड” जुमले के साथ हुआ था।
उस वक्त कोचीन की आईपीएल टीम द्वारा सुनंदा पुष्कर को सर्विसेज के बदले, शेयर दिए गए थे। कारपोरेट सेक्टर में एम्प्लॉयी स्टॉक ऑप्शन या स्वेट इक्विटी कॉमन बात है।
सुनंदा डिजाइनर और सेल्स कंसल्टेंट थी, और भारत के बाहर इस तरह के वर्क्स की पुरानी प्रोफेशनल थी। लेकिन इस वक्त तक केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के साथ देखी जाने लगी थी।
तो सावर्जनिक मंच से शेयरो का मूल्य पचास करोड़ बताकर, हिन्दू हृदय सम्राट मोदी जी ने सन्देश दिया कि यह पैसा अप्रत्यक्ष रूप से थरूर को दिया गया है।
बहरहाल थरूर और सुनंदा का विवाह हो गया, चला नही। डिप्रेशन की दवा और नींद की गोलियों के कथित ओवरडोज से सुनंदा की मृत्यु हो गयी। मृत्यु से कुछ समय पूर्व उनका एक पाकिस्तानी पत्रकार से ट्विटर पर विवाद हुआ, जो थरूर के कथित अफेयर की वजह से था।
मृत्यु के कुछ दिन बाद ही सरकार बदल गयी। स्थिति बदल चुकी थी। उसे पचास करोड़ में खरीदी जा सकने वाली महंगी कॉलगर्ल करार देने वाले, अब अचानक से बेचारी को न्याय दिलाने को बेकरार हो गए। आईटी सेल और मीडिया ने खूब मीम उछाले, बहसें की।
यूं तो सुनंदा की मौत के वक्त, दुनिया ने थरूर को एआईसीसी सेशन में देखा। लेकिन सरकार बदलते ही थरूर पर सवाल तेज हो गए थे। पूछताछ के लिए बार बार बुलाया गया, बार बार खबरे बनी। फिर एक बार मामला ठंडा हो गया।
लेकिन मृत्यु के तीन साल बाद एक दिन, एक FIR दर्ज हुई। इसमें थरूर को आत्महत्या के लिए उकसाने और क्रूरता का चार्ज लगाया गया।
अब मीडिया चैनलों ने दिन रात इस मामले में तमाम नए नए विवेचना और डिबेट्स पेश की। एक्सपर्ट्स आये, और फैसला टीवी पर हो गया। ये सुसाइड नही था, हत्या थी। और थरूर , सुनंदा की बाकायदा हत्या के दोषी साबित हो गए।
“थरूर- अ मर्डरर” यह फैसला चीफ जस्टिस अर्नब गोस्वामी ने अपने चैनल रिपब्लिक के स्टूडियो से देश को सुना दिया। थरूर ने लिखा – “Exasperating farrago of distortions, mis-representations & outright lies being broadcast by an unprincipled showman masquerading as a journalist”
इस ट्वीट का मतलब आप गूगल कीजिए। पर इस FIR और शोरगुल का असल मतलब था- थरूर का पोलिटीकल करियर खत्म हो जाना।
कांग्रेस का सबसे जहीन तरीन चेहरा, जो स्टार कैम्पेनर हो सकता है, प्रवक्ता हो सकता है, पार्लियामेंट्री पार्टी का लीडर हो सकता है… जो सत्ता के नशे में जमात को एक जुमला उछाल कर डिक्शनरी में उलझा सकता था, जो सरकार को मजबूत चुनौती हो सकता था.. उसकी सारी संभावनाओं को बांध दिया गया।
यह कांग्रेस का लॉस था, या नही.. वह कांग्रेस जाने। मेरी समझ ये एक नेशनल लॉस है। एक अत्यंत सफल कॅरियर डिप्लोमेट, अपने जीवन के संध्याकाल में नेशनल सर्विस के लिए उपलब्ध हो पाया। जिसके पास शायद 15 बरस थे।उसका आधा समय बर्बाद कर दिया गया।
थरूर जैसी पर्सनालिटीज हमारे पॉलिटिकल स्पेस में नही हैं। वो राजनीति में कमाने खाने की चिंता से नही आया, जो एक इंटरनेशनली कनेक्टेड, रिस्पेक्टेड प्रोफेशनल है, जिसके जोड़ का बन्दा, इस पार्लियामेंट में एक नही है, उसके करियर नाश हो गया।
और फिर पिछले हफ्ते कोर्ट ने एफआईआर को खारिज कर दिया। फैसला आ गया- थरूर पर लगाये गए सारे इल्जाम बेसिरपैर के हैं। बाइज्जत बरी किया जाता है।
यह खबर अखबारों के छठवें पन्ने के आधे कॉलम में दब गई।
BCCI, सुप्रीम कोर्ट में उसके ऐफिडेविट के अनुसार एक निजी फर्म है। उसकी एक सब्सिडरी निजी कम्पनी IPL है। IPL की एक निजी ठेकेदार कम्पनी, टीम कोचीन है। टीम कोचीन के निजी मैनेजमेंट ने हायर किये एक निजी प्रोफेशनल को पेमेंट किया।
ब्यूटी देखिये, बस एक जुमला उछालकर इसे भारत सरकार के भ्रष्टाचार का सिंबल बना दिया गया- “50 करोड़ की गर्लफ्रेंड ..” और थरूर, मनमोहन सरकार, सब ट्रेप।
फिर राहुल गांधी को “शाहजादा” कहकर खिल्ली उड़ाई। आप ठठाकर हंसे। लेकिन क्या उनकी धृष्टता और अपने साथ हुआ मजाक आप समझ सके, उसी मोदी ने सरकार में आकर अपने “शाह-जादे” को बीसीसीआई बिठा दिया।
कभी बड़े विपक्षी नेताओं के विरुद्ध मजबूत उम्मीदवार न उतारने का चलन, नेहरू ने शुरू किया था। आज प्रधानसेवक और उनके भक्त, खुद की पार्टी और विपक्ष के मजबूत नेताओ को चरित्र हत्या से मारते हैं। वो नेहरू की तमाम महिलाओं के साथ झूठी सच्ची तस्वीरें भेजते हैं। वे आपकी मेधा पर नही, आपके इंटलेक्ट पर नही। आपकी पोर्न कामनाओं, आपकी ठरकी नर्व पर उंगली रखते हैं।
भारतीय राजनैतिक विमर्श में कांग्रेस की विधवा, बार बाला, इटालियन डांसर, भूरी काकी, वैश्या, चुड़ैल, कुतिया, दीदी ओ दीदी, ताड़का, प्रेस्टीट्यूट जैसे स्वर्णिम शब्दो का चलन जारी है।
“सुनंदा की हत्या” में थरूर तो बेदाग बरी हुए। लेकिन उनके “चरित्र की हत्या” से हम, आप, हमारा कॉन्शस और हमारा प्रधानसेवक कभी बरी न हो सकेगा। इसलिए कि वो शब्द, हमारी राजनीतिक संस्कृति के गलीज नाले में कूदने का आगाज थे..
“पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड”