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एसएमबीसी के हाथों पराधीन हुआ स्वराज एक्सप्रेस चैनल

भोपाल : स्वराज एक्सप्रेस के कर्मचारियों के दिन फिरते नहीं दिख रहे हैं। कर्मचारियों को दो महीने से वेतन नहीं मिला है। अब तीसरा महीना भी आधा बीत चला है। खबर थी कि स्वराज एक्सप्रेस  नोएडा के मृतप्राय चैनल एसएमबीसी के लाइसेंस से चलेगा। लेकिन मामला कानूनी दावपेंचों और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दांव पेंचों में फंस गया है। लाइसेंसी नियमों की अनदेखी का आरोप झेल रहे एसएमबीसी को पहले हीं मंत्रालय ने कारण बताओ नोटिस जारी कर रखा है।

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भोपाल : स्वराज एक्सप्रेस के कर्मचारियों के दिन फिरते नहीं दिख रहे हैं। कर्मचारियों को दो महीने से वेतन नहीं मिला है। अब तीसरा महीना भी आधा बीत चला है। खबर थी कि स्वराज एक्सप्रेस  नोएडा के मृतप्राय चैनल एसएमबीसी के लाइसेंस से चलेगा। लेकिन मामला कानूनी दावपेंचों और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दांव पेंचों में फंस गया है। लाइसेंसी नियमों की अनदेखी का आरोप झेल रहे एसएमबीसी को पहले हीं मंत्रालय ने कारण बताओ नोटिस जारी कर रखा है।

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स्वराज एक्सप्रेस के कर्ताधर्ता श्रीराम तिवारी खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनकी अपनी टीम में भी विवाद शुरू हो गया है। स्वराज एक्सप्रेस और एसएमबीसी के बीच समझौता कराने में न्यूज एक्सप्रेस के एमपी-सीजी चैनल के हेड रहे एसपी त्रिपाठी ने अपना दिमाग लगाया था। उन्होंने श्रीराम तिवारी को फांस कर एसएमबीसी में मोटी रकम लगवा दी है। दरअसल, इससे पहले नवंबर 2014 में लांच किए गए न्यूज एक्सप्रेस एमपी-छत्तीसगढ़ टीवी चैनल बड़े जोर-शोर से भोपाल और रायपुर में लांच किया था, मगर आठ माह के भीतर जब यह चैनल ठीक तरह से स्थापित भी नहीं हो पाया था कि साईं प्रसाद मीडिया के मालिकों ने चैनल की फंडिंग रोक दी और इसे मरने के लिए छोड़ दिया।

यही हाल नोएडा के नेशनल चैनल के साथ किया गया। एमपी-सीजी चैनल के हेड एसपी त्रिपाठी ने अपना दिमाग लगाकर न्यूज एक्सप्रेस एमपी सीजी चैनल को जिलाए रखने की रणनीति बनाई। कुछ लोग इसे उनका चैनल पर कब्जा जमाने का खेल भी कहते हैं। बीते 15 अगस्त को न्यूज एक्सप्रेस का नाम बदलकर इसका नाम स्वराज एक्सप्रेस कर दिया गया। बताया जाता है कि कंपनी की माली हालत कुछ महीनों से डगमगा गई थी। इस स्थिति को देखते हुए चैनल हेड ने मालिकों को सलाह दी कि इसका नाम बदल दिया जाए तो चैनल चलता रहेगा. हेड को मालिकों ने नाम बदलने की मंजूरी दे दी. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मालिकों को इस बात की भनक नहीं थी कि चैनल हेड ने अपने नाम पर पहले से ही स्वराज एक्सप्रेस नाम का एक पंजीयन करा लिया था.

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न्यूज एक्सप्रेस का लोगो बदलकर अब स्वराज एक्सप्रेस हो गया है. कहा जा रहा है कि इसका एकाउंट भी त्रिपाठी ने खुलवा लिया है. एसपी त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कार्यरत स्टाफ से कहा है कि अब वे साईं प्रसाद ग्रुप के नहीं, उनके अधीन काम करेंगे..काम शुरू भी हुआ लेकिन इस बीच साईं प्रसाद मीडिया के मालिकों पर सरकार का शिकंजा कसा तो भोपाल ऑफिस बंद होने के कगार पर आ गया। आनन फानन में एसपी त्रिपाठी ने अपने फाइनेंसर श्रीराम तिवारी की मुलाकात एसएमबीसी इनसाइट के मालिक डॉ. प्रकाश शर्मा  से करा दी। कर्ज के बोझ तले दबे शर्मा ने आनन फानन में श्रीराम तिनारी के हवाले चैनल कर दिया।

श्रीराम तिवारी को लगा कि अब वो स्वराज एक्सप्रेस एसएमबीसी इनसाइट के लाइसेंस से चला लेंगे। लेकिन जब वो नोएडा पहुंचे तो मालूम चला कि प्रकाश शर्मा ने पहले ही यह चैनल एनबीएस को लीज में दे रखा है, जो कानूनी रूप से गलत है। एनबीएस वाले एएसएमबीसी छोड़ कर जाने को तैयार नहीं है। वो 70 लाख के मुआवजे की मांग कर रहे हैं। अब श्रीराम तिवारी अपने स्वराज एक्सप्रेस को एनबीएस और प्रकाश शर्मा के हाथों पराधीन मान बैठे हैं। वो सभी से गुहार लगा रहे हैं कि मिल बैठकर कोई रास्ता निकाल लिया जाये लेकिन बात बनती नहीं दिख रही। उधर एसएमबीसी इनसाइट के पूर्व चैनल हेड इस पूरे मामले को लगातार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय समेत ट्राई के सामने उठा रहे हैं। मंत्रालय पर दबाव है कि एसएमबीसी का लाइसेंस रद्द किया जाये। अगर ऐसा होता है तो भारतीय टीवी चैनल के इतिहास में बड़ी घटना होगी। इससे उन चैनलों पर भी संकट आ सकता है जो दसरे के लाइसेंस पर अपनी दुकान चला रहे हैं।

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बहरहाल, भोपाल में बैठे स्वराज एक्सप्रेस के कर्मियों को समझ नहीं आ रहा कि वो किसके स्टाफ हैं और उनका भविष्य क्या है। श्रीराम तिवारी पिछले तीन महीने से टेलीपोर्ट और बिल्डिंग का किराया दे रहे हैं लेकिन दफ्तर में एनबीएस के लोग अपनी दुकान चला रहे हैं। वैसे, खबर है कि श्रीराम तिवारी जी भी लखनऊ के किसी राजीव चौहान के सहारे किसी फाइनेंसर को फांसने के जुगाड़ में हैं। राजीव चौहान यूपी की राजनीतिक गलियारे में लाइजनर के रूप में जाने जाते हैं। उनकी कोशिश है कि यूपी चुनाव में चैनल की आड़ में दो चार करोड़ रुपये बना लिये जायें। लेकिन चैनल का एबीसीडी ना जानने वाले राजीव चौहान ने अब तक श्रीराम तिवारी को बरगलाने का ही काम किया है। वैसे उनके बारे में यह चर्चा भी है एनबीएस ने सुनोजित तरीके से उन्हें श्रीराम तिवारी ग्रुप के बीच प्लांट किया है ताकि दूसरे ग्रुप की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।

एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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