भोपाल। इंदौर के नामचीन पत्रकार एवं इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल की गिरफ़्तारी के बाद से पत्रकारिता जगत में जिस प्रकार से सन्नाटा पसरा हुआ है, उसने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है। उनमे से एक मैं भी हूं। प्रवीण खारीवाल की गिरफ़्तारी की खबर सुनने के बाद से मन बहुत विचलित है, यही कारण है कि आज सारी रात नहीं सो सका, दिमाग सटका हुआ है, मन में तरह – तरह के विचार आ रहे थे।
इसी बीच हाल का एक दृश्य सामने आगया – जब राष्ट द्रोह के आरोप में जेल गए जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया जब ज़मानत पर छूट कर बाहर आया तो उसके साथी छात्रों ने उसका ज़ोरदार स्वागत किया। दृश्य – आज सवेरे जब में आफिस आरहा था तो मैंने देखा कुछ कुत्ते नगर निगम के वाहन के पीछा करते हुए भोंक रहे थे। मुझे समझते देर नहीं लगी की ज़रूर इस वाहन ने या तो इनको पड़ने का कभी प्रयास किया होगा अथवा यह या इस जैसा कोई वाहन इनके किसी साथी कुत्ते को कभी पकड़कर ले गया होगा। अधिक विस्तार से प्रकाश डालूंगा तो हमारी बिरादरी के लोग बुरा मान जायेंगे।
खैर, प्रवीण खारीवाल पर आरोप है कि उन्होंने धोखाधड़ी और हत्या के आरोपी को संरक्षण दिया था एवं आरोपी को केस से बाहर निकलने के नाम पर आरोपी की पत्नी से १२ लाख रुपए लिए थे। यह बात पुलिस ने प्रेस को बताई है ? पुलिस ने प्रेस को यह भी बताया कि खारीवाल ने अपना अपराध स्वीकार भी किया है। मैं समझता हूं प्रदेश में इस प्रकार की घटनाएं आए दिन होती होंगी, लेकिन प्रवीण खारीवाल के प्रकरण में पुलिस ने जो तत्परता दिखाई है और जिस प्रकार से उसे प्रचारित किया गया है, उसमे षड्यंत्र की बू आ रही है। इस षड्यंत्र में जनसम्पर्क विभाग के शामिल होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि इस समय जनसम्पर्क विभाग की कमान जिस व्यक्ति के हाथ में है वह षड्यंत्रों में अधिक विशवास करता है। क़द में भले ही छोटा है लेकिन मक्कारों का बाप है।
प्रवीण खारीवाल प्रकरण में पुलिस ने आनन फानन में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर क्या कहा पत्रकारों से, देखें वीडियो
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हम ये दावा नहीं कर रहे कि प्रवीण खारीवाल निर्दोष हैं, लेकिन क्या हम सरकार से इस मामले की सीबीआई से निष्पक्ष जांच करने की मांग भी नहीं कर सकते? इंदौर के बारे में कहा जाता है कि वहां पत्रकारिता आज भी ज़िंदा है, पिछले दिनों विधान सभा के प्रेस कक्ष में डॉ. नवीन जोशी से पत्रकारिता के गिरते स्तर पर बात हो रही थी, तब भी इंदौर का नाम आया था इस पर मैंने कहा था कि इंदौर में पत्रकारिता आज भी ज़िंदा है, भोपाल से निकलने वाले अख़बारों के तो हम केवल पन्ने पलटते हैं।
सिंहस्थ सर पर है और वहां सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है यह बात सब जानते हैं लेकिन कोई बोल नहीं रहा है, क्योकि पूरा मीडिया सरकार से मेनैज है। इंदौर के मीडिया में ही सरकार को आईना दिखाने की कुव्वत है। शायद इसी डर से प्रवीण खारीवाल नाम के शेर को मारकर जंगल पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की जारही है? अगर ऐसा है तो हमें इस फिल्म का पोस्टर बदलना पड़ेगा। नंगी फिल्मे देखने के आदि हो चुके सरकारी दर्शकों को साहित्य का दृश्य हटाकर एक्शन वाला पोस्टर बनाना पड़ेगा तभी यह फिल्म चलेगी।
लेखक अरशद अली खान भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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