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सुख-दुख

अभिषेक मानव जैसे मीडिया के प्रोफेशनल बेगर्स से आपका भी पाला पड़ा है क्या!

Yashwant Singh : एक रोज एक फोन आता है. खुद को अभिषेक मानव नामक पत्रकार बता रहा एक शख्स पहले तो मेरी और फिर भड़ास4मीडिया डॉट कॉम की तारीफों के पुल बांधता है. मैं सर सर कहते हुए उन्हें सुनता रहा और थैंक्यू थैंक्यू बोल उनकी हौसलाअफजाई करता रहा. तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता. आखिर में वे बोले कि बड़ा मुश्किल में हूं. अभी के अभी चार हजार रुपये चाहिए, आपको अगले बीस दिन बाद जरूर से जरूर लौटा दूंगा. मैंने पूछा इतनी अर्जेंसी क्यों है और आपकी लोकेशन क्या है. वे बोले- दूध वाला खड़ा है, कई महीने से उधार है, बिना लिए जाने को तैयार नहीं है. कोई रास्ता नजर नहीं आया तो आपको फोन किया. उन्होंने अपनी लोकेशन के लिए लक्ष्मीनगर दिल्ली का नाम लिया.

<p>Yashwant Singh : एक रोज एक फोन आता है. खुद को अभिषेक मानव नामक पत्रकार बता रहा एक शख्स पहले तो मेरी और फिर भड़ास4मीडिया डॉट कॉम की तारीफों के पुल बांधता है. मैं सर सर कहते हुए उन्हें सुनता रहा और थैंक्यू थैंक्यू बोल उनकी हौसलाअफजाई करता रहा. तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता. आखिर में वे बोले कि बड़ा मुश्किल में हूं. अभी के अभी चार हजार रुपये चाहिए, आपको अगले बीस दिन बाद जरूर से जरूर लौटा दूंगा. मैंने पूछा इतनी अर्जेंसी क्यों है और आपकी लोकेशन क्या है. वे बोले- दूध वाला खड़ा है, कई महीने से उधार है, बिना लिए जाने को तैयार नहीं है. कोई रास्ता नजर नहीं आया तो आपको फोन किया. उन्होंने अपनी लोकेशन के लिए लक्ष्मीनगर दिल्ली का नाम लिया.</p>

Yashwant Singh : एक रोज एक फोन आता है. खुद को अभिषेक मानव नामक पत्रकार बता रहा एक शख्स पहले तो मेरी और फिर भड़ास4मीडिया डॉट कॉम की तारीफों के पुल बांधता है. मैं सर सर कहते हुए उन्हें सुनता रहा और थैंक्यू थैंक्यू बोल उनकी हौसलाअफजाई करता रहा. तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता. आखिर में वे बोले कि बड़ा मुश्किल में हूं. अभी के अभी चार हजार रुपये चाहिए, आपको अगले बीस दिन बाद जरूर से जरूर लौटा दूंगा. मैंने पूछा इतनी अर्जेंसी क्यों है और आपकी लोकेशन क्या है. वे बोले- दूध वाला खड़ा है, कई महीने से उधार है, बिना लिए जाने को तैयार नहीं है. कोई रास्ता नजर नहीं आया तो आपको फोन किया. उन्होंने अपनी लोकेशन के लिए लक्ष्मीनगर दिल्ली का नाम लिया.

मैंने अपने उसी इलाके के एक मित्र को फोन किया और उनसे अपने नाम पर उधार अभिषेक मानव जी को दिलवा दिया. मैं उस वक्त दिल्ली से बाहर था. ऐसे फोन आते रहने मेरे लिए रुटीन है क्योंकि मीडिया के बहुत-से साथी छंटनी, बेरोजगारी अन्यान्य मुश्किलों की वजह से पैसे के लिए कई बार परेशान हो जाते हैं. जिन भी परेशान हाल मीडिया के साथी का फोन आता है तो भरसक कोशिश करता हूं कि मदद कर दूं या करा दूं, यह जानते हुए की मेरी खुद की औकात उधार बांटने या समाजसेवा करने की नहीं है लेकिन स्वभाव ऐसा है कि अगर पास में मुद्रा है तो उसे किसी भी भांति खर्चने में संकोच नहीं करता.

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अभिषेक मानव जी ने बीस दिन बाद कोई फोन नहीं किया लेकिन जिन मित्र से दिलवाया था, उनके फोन आने लगे. डेढ़ महीने बाद दिल्ली पहुंचा तो उन मित्र को खुद से पैसे दे दिए और अभिषेक मानव जी को फोन लगाया तो पिछली बार की तरह फिर वे नया डेट दिए. मई की बात है और अब अक्टूबर लास्ट की तरफ हम लोग हैं. आखिर बार कुछ दिन पहले कई बार फोन किया तो उनने फोन नहीं उठाया. मैं समझ गया. मेरे चार हजार रुपये गए. उन्हें मैसेज किया तो उनका जवाब कुछ इस अंदाज में आने लगा कि जैसे रुपये उन्होंने नहीं, उनसे मैंने उधार लिए हों.

अभिषेक मानव खुद को शाह टाइम्स दिल्ली में कार्यरत बताते हैं. वे दिल्ली में जहां रहते हैं वहां का पता भी नहीं देते और न ही फोन करने पर फोन उठाते हैं. एक बार वह भड़ास के कार्यक्रम में मिल गए थे और खुद ही अपना परिचय बताया तो मैंने उनसे उधार वाले पैसे लौटाने के लिए बिलकुल नहीं कहा बल्कि उन्हें गले लगाया था. लेकिन अब वह फिर से पुनर्मूषकोभव: वाली स्थिति में आ गए हैं. वो अगर यही साफ साफ कह दें कि भइया लौटा न पाउंगा, भूल जाइए तो मैं भूल जाता. पर वे झूठ पर झूठ बोले जाते हैं ताकि अगला बंदा खुद झुंझला कर फोन करना बंद कर देगा और खुद ही मान लेगा कि पैसे डूब गए.

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चलो आज मैंने यह पोस्ट लिखकर मान लिया कि मेरे पैसे डूब गए. मेरे तो पैसे वैसे ही यहां वहां जहां तहां डूबते रहते हैं. एक ये चार हजार और सही. 

यह पोस्ट सिर्फ इसलिए नहीं लिख रहा कि मेरे चार हजार डूब गए. इसलिए भी लिख रहा कि ऐसे अभिषेक मानवों के कारण मीडिया के जेनुइन मदद चाहने वाले साथियों को भी मदद देने से पहले कई सवाल मन में पैदा हो जाते हैं. मैं तो यही सोच कर खुश हूं कि अभिषेक मानव जी चार हजार न लौटाएंगे तो कम से कम आगे से मुझसे तो नहीं मांगेंगे. क्योंकि अगर वे चार हजार लौटा देते तो उनकी मांगने की क्रेडिट मेरे दिमाग में चालीस हजार रुपये तक बढ़ जाती और अगली बार वे जब मांगते तो यह सोचकर उन्हें तुरंत देता कि इनका लौटाने का रिकार्ड अच्छा है. चिंता सिर्फ इतनी भर है कि कुछ लोग माहौल ऐसा कर देते हैं जिससे जेनुइन लोग एक तो मदद मांगने में हिचकते हैं कि कहीं उन्हें ऐसा वैसा न समझ लिया जाए और मांगते भी हैं तो देने वाला सोचता है कि पता नहीं यह जेनुइन है या प्रोफेशनल बेगर है.

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जी हां. मीडिया में बहुत-से प्रोफेशनल बेगर साथी हैं. वे सिर्फ मांगना जानते हैं, लौटाना नहीं. यहां तक कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक भी होने लगती है तो वे अपने मन से नहीं लौटाते, छोटी छोटी रकम देकर उधार भरपाई करना नहीं चाहते. वे दूसरे से यानि उधार देने वाले से उम्मीद करते हैं कि वह अपना पैसा डूब जाने की तसल्ली कर ले और न फोन करे न पैसे वापिस मांगें. वे नित नए नए क्लाइंट ढूंढते हैं जो पैसे दे सकने का सामर्थ्य रखते हों. अभिषेक मानवों जैसों से आपका भी पाला पड़ा हो तो आप लोग जरूर अपना अनुभव शेयर करिए, शायद इस भड़ास निकालने से ही मन को संतोष मिल जाए. 🙂

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से. संपर्क : [email protected]

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