रांची दूरदर्शन केन्द्र द्वारा आयोजित दो दिवसीय राधाकृष्ण महोत्सव का दरभंगा हाउस स्थित विचार मंच सभागार में समापन हो गया। तीसरे और अंतिम सत्र में वक्ताओं ने राधाकृष्ण की पत्रकारिता एवं सम्पादन पर विचार रखे और उनसे जुड़े संस्मरण भी सुनाए। वक्ताओं ने कहा कि राधाकृष्ण साहित्यकार, उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक प्रखर और संवेदनशील पत्रकार भी थे। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने हिन्दी और झरखंड की अन्य भाषाओं में लेखक तैयार किये। आदिवासियत की चेतना को जगाया।
डा. बालेन्दु शेखर तिवारी ने कहा कि राधाकृष्ण ने जीवनभर संघर्ष किया, लेकिन पत्रकारिता के दीये को बुझने नहीं दिया। डा. भुवनेश्वर अनुज ने कहा कि रधाकृष्ण की प्रेरणा से यहां हिन्दी पत्रकार संघ की स्थापना हुई थी। किसी भाषा से उनका द्वेष नहीं था, लेकिन वह चाहते थे कि हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की जानकारी किसी को हो। वह महावीर पत्रिका, वाटिका, माया, संदेश झारखंड पत्रिका सहित कई पत्रिकाओं से जुड़े रहे।
सहनी उपेन्द्र पाल नहन ने कहा कि राधाकृष्ण झारखंड की हर लोक भाषा में लेखक बनाने का कारखाना थे। डा. शिवशंकर मिश्र ने कहा कि विशिष्ट रचनाकारों में राधाकृष्ण का स्थान है। जरूरत है कि उनके साहित्य का संकलन पर उसे फिर से प्रकाशित कराया जाये। इस कार्य के लिए एक कमेटी भी बनायी जानी चाहिए। ग्रेस कुजूर ने कहा कि राधाकृष्ण अपने समय से आगे की सोचते थे। उनकी कल्पनाशीलता अद्भुत थी। राधाकृष्ण दूरदर्शी थे। उनके विचार उनकी लेखनी में दिखती थी। केदारनाथ पांडेय ने कहा कि राधाकृष्ण की लेखनी निर्भीक और बेबाक थी। उनकी रचना को जमीन पर उतारने की जरूरत है।
महादेव टोप्पो ने कहा कि राधाकृष्ण जमीन से जुड़े साहित्यकार थे और उनमें अद्भुत लेखकीय क्षमता थी। उन्होंने कहा कि सीसीएल जैसी कम्पनियों को अपने सीएसआर का उपयोग भाषा, कला व संस्कृति के विकास के लिए भी करना चाहिए। राधाकृष्ण के पुत्र सुधीरलाल ने अपने पिता के जीवन से जुड़े कई संस्मरण सुनाये। उन्होंने कहा कि पिताजी की साहित्यिक यात्रा जैनेन्द्र के साथ शुरू हुई थी, लेकिन जैनेन्द्र की धारा अलग थी। राधाकृष्ण में 1924 से पहले रचनाकार बनने की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी और 28 वर्ष की उम्र में वह रचनाकार बन चुके थे। अंतिम समय तक वह लिखते-पढ़ते रहे। बाल साहित्य पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएं प्रकाशित होती थीं। लेखन की हर विधा में उनकी पकड़ थी।
डा. कमल बोस ने कहा कि राधाकृष्ण की रचनाएं एक बार फिर विश्वविद्यालय के सिलेबस में शामिल होनी चाहिए। साहित्य की उपयोगिता सिर्फ सिलेबस में नहीं सब जगह है, लेकिन इसकी पठनीयता कम हो गयी है। उन्होंने कहा कि राधाकृष्ण के लेखकीय व्यक्तित्व को पत्रकार व साहित्यकार के रूप में अलग-अलग नहीं बांटा जा सकता है।
लाल रणविजयनाथ शाहदेव ने कहा कि राधाकृष्ण की रचनाओं में विविधता थी। वह सिर्फ झारखंड नहीं देश की विभूति थे। वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि झारखंड में हिन्दी व अन्य भाषाओं के साहित्यकारों को उचित सम्मान और युवा साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि आमतौर पर साहित्यकारों का सम्मान हमारे देश में नहीं होता। इससे पहले स्वागत भाषण रांची दूरदर्शन केन्द्र के उपमहानिदेशक डा. शैलेश पंडित ने किया। संचालन डा. मिथिलेश और धन्यवाद ज्ञापन रांची दूरदर्शन केन्द्र के उपनिदेशक (कार्य.) प्रमोद कुमार झा ने किया।