रिवर फ्रंट की शुरुआत के पहले चरण में वित्तीय मंजूरी की शुरुआत जिसने की वे थे प्रमुख सचिव वित्त राहुल भटनागर, जब परियोजना में दो गुने से ज्यादा रुपये की धनराशि देने की फाइल चली तो वित्तीय स्वीकृति देने वाले अधिकारी थे प्रमुख सचिव वित्त राहुल भटनागर, पिछले नौ महीनों से रिवर फ्रंट की मॉनीटरिंग करने वाले चीफ सेक्रेटरी हैं राहुल भटनागर, मजे की बात ये कि अब जब रिवर फ्रंट के घोटालों की बात हो रही है तो भी घोटालेबाजों के सबसे बड़े अफसर हैं राहुल भटनागर, सरकार के इस फैसले पर लोग उठा रहे सवाल कि जो सबसे बड़ा दोषी, वह कैसे रह सकता है चीफ सेक्रेटरी के पद पर और कैसे करवा सकता है निष्पक्ष जांच…
दागी आईएएस अधिकारी राहुल भटनागर
लखनऊ। यूपी में नई सरकार बनने के बाद अगर किसी योजना को लेकर सबसे ज्यादा हल्ला मचा तो वह रिवर फ्रंट योजना ही थी। इस पूरी योजना को ही घोटाले का नाम दे दिया गया। सीएम ने भी रिवर फ्रंट का दौरा किया और एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच समिति बना दी, मगर मजे की बात ये रही कि इस पूरी योजना में वित्तीय मंजूरी देने में जिस अफसर की सबसे बड़ी भूमिका थी और चुनाव से पहले भाजपा जिसे हटाने के लिए निर्वाचन आयोग तक पहुंची थी वही अफसर राहुल भटनागर चीफ सेक्रेटरी के रूप में इस योजना की कमियां सीएम को बता रहे हैं जबकि इस योजना के लिए बनी मॉनीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष के नाते पिछले नौ महीनों से वही इसके अध्यक्ष थे और सरकार बनने से पहले तक वह हर महीने रिवर फ्रंट का गुणगान कर रहे थे।
4पीएम को वह सभी दस्तावेज मिले हैं जो ये साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि इस योजना में अगर प्रमुख सचिव वित्त के नाते राहुल भटनागर ने आपत्ति लगाई होती तो इस योजना में एक पैसे का भी गोलमाल नहीं हो सकता था। हम आपको अगले कुछ दिनों में सिलसिलेवार बताएंगे कि किस तरह राहुल भटनागर ने साजिश रची कि इस घोटाले का ठीकरा पूर्व चीफ सेक्रेटरी आलोक रंजन और दीपक सिंघल पर फोड़ा जाए और वह साफ बच निकले।
भारत में गुजरात तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लंदन, पेरिस, मलेशिया, जापान की तर्ज पर प्रदेश की जनता को गोमती रिवरफ्रंट देने का सपना तो पूरा नहीं हो सका, लेकिन इससे जुड़े अफसर जरूर मालामाल हो गए। इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि सरकार बदलने के बावजूद रिवरफ्रंट घोटाले की जांच के नाम पर खानापूर्ति हो रही है और घोटाले के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार अफसर को क्लीन चिट देने की तैयारी है। डेढ़ हजार करोड़ रुपये ठिकाने लगने के बावजूद सरकार यह मामला सीबीआई को देने से क्यों कतरा रही है, कहीं इसके पीछे की वजह यह तो नहीं है कि यदि सीबीआई ने जांच की तो मौजूदा मुख्य सचिव राहुल भटनागर की गर्दन फंस जाएगी क्योंकि प्रमुख सचिव वित्त रहते हुए प्रोजेक्ट को वित्तीय स्वीकृतियां देने के लिए और मुख्य सचिव रहते हुए प्रोजेक्ट की हाईलेबल मॉनीटरिंग के लिए राहुल भटनागर पूरी तरह जिम्मेदार हैं।
वर्ष 2014 में 5 नवंबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रिवरफ्रंट परियोजना बनाकर कार्य प्रारंभ करने का आदेश दिया था। सिंचाई विभाग ने पांच फरवरी 2015 को प्रथम चरण में डायाफ्राम वाल, ड्रैजिंग, साइट विकास, पुलों का सौंदर्यीकरण आदि का प्रावधान करते हुए 747.49 करोड़ की परियोजना शासन को दी। चूंकि परियोजना 25 करोड़ से अधिक की थी, इसलिए शासनादेश के अनुसार परियोजना के व्यय के प्रस्ताव का मूल्यांकन और परीक्षण व्यय वित्त समिति से कराने के लिए पत्रावली प्रायोजना रचना एवं मूल्यांकन प्रभाग को संदर्भित की गई। व्यय वित्त समिति की अध्यक्षता प्रमुख सचिव वित्त करते हैं। 16 फरवरी 2015 तत्कालीन प्रमुख सचिव राहुल भटनागर की अध्यक्षता में हुई व्यय वित्त समिति की बैठक में 656.58 करोड़ के व्यय का प्रस्ताव अनुमोदित हुआ। 17 मार्च को इस पर कैबिनेट ने भी मुहर लगा दी। 25 मार्च 2015 को परियोजना की हाईलेबल मॉनीटरिंग के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में टास्क फोर्स गठित की गई।
रिवर फ्रंट परियोजना की लागत बढऩे पर 1990.24 करोड़ का पुनरीक्षित प्रस्ताव व्यय वित्त समिति के समक्ष रखा गया। राहुल भटनागर की अध्यक्षता में 1513.51 करोड़ की राशि अनुमोदित गई। स्पष्ट है कि परियोजना को वित्तीय अनुमोदन राहुल भटनागर ने प्रमुख सचिव वित्त रहते किया। जाहिर है यह सारी कार्यवाही राहुल भटनागर की स्वीकृति से हुई। ऐसे में उन्हें चीफ सेक्रेटरी पद पर बनाए रखने से सवाल उठ रहे हैं।
लखनऊ के चर्चित सांध्य दैनिक 4पीएम के संपादक संजय शर्मा की रिपोर्ट.
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