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सियासत

“सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम-लट्ठा”

“सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम-लट्ठा” ये बात जाहिर होती है पत्रकारिता बचाने के नाम पर लड़ाई करने वालों के सोशल मीडिया स्वांग से| अभी हाल का ही मामला ले लीजिये एक भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह हैं ने आईबीएन 7 के पंकज श्रीवास्तव मामले में जिस बचपने का परिचय दिया है उससे तो यही लगता है कि चैनलों और दूसरे मीडिया संस्थानों के भीतर की खबरों को भड़ास पर दिखा के यशवंत मीडिया के नामचीन मठाधीशों में शामिल तो हो गए लेकिन भड़ास से सिर्फ उनके व्यक्तिगत संबंधों और संपर्कों के सिवा और कुछ नहीं निकला| लेकिन अगर ये अनुमान लगाया जाए कि इससे देश दुनिया समाज और खुद पत्रकारिता पर फर्क क्या पड़ा तो नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही नज़र आता है|

<p>"सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम-लट्ठा" ये बात जाहिर होती है पत्रकारिता बचाने के नाम पर लड़ाई करने वालों के सोशल मीडिया स्वांग से| अभी हाल का ही मामला ले लीजिये एक भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह हैं ने आईबीएन 7 के पंकज श्रीवास्तव मामले में जिस बचपने का परिचय दिया है उससे तो यही लगता है कि चैनलों और दूसरे मीडिया संस्थानों के भीतर की खबरों को भड़ास पर दिखा के यशवंत मीडिया के नामचीन मठाधीशों में शामिल तो हो गए लेकिन भड़ास से सिर्फ उनके व्यक्तिगत संबंधों और संपर्कों के सिवा और कुछ नहीं निकला| लेकिन अगर ये अनुमान लगाया जाए कि इससे देश दुनिया समाज और खुद पत्रकारिता पर फर्क क्या पड़ा तो नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही नज़र आता है|</p>

“सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम-लट्ठा” ये बात जाहिर होती है पत्रकारिता बचाने के नाम पर लड़ाई करने वालों के सोशल मीडिया स्वांग से| अभी हाल का ही मामला ले लीजिये एक भड़ास4मीडिया के यशवंत सिंह हैं ने आईबीएन 7 के पंकज श्रीवास्तव मामले में जिस बचपने का परिचय दिया है उससे तो यही लगता है कि चैनलों और दूसरे मीडिया संस्थानों के भीतर की खबरों को भड़ास पर दिखा के यशवंत मीडिया के नामचीन मठाधीशों में शामिल तो हो गए लेकिन भड़ास से सिर्फ उनके व्यक्तिगत संबंधों और संपर्कों के सिवा और कुछ नहीं निकला| लेकिन अगर ये अनुमान लगाया जाए कि इससे देश दुनिया समाज और खुद पत्रकारिता पर फर्क क्या पड़ा तो नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही नज़र आता है|

भड़ास के जानकार कहते हैं वेबसाइट पर मीडिया घरानों को धमका के फजीहत करने का काम होता है| कार्पोरेटी शह-मात के खेल में यशवंत पुराने महारथी हैं| लगभग तीन साल पहले लखनऊ दैनिक जागरण के राजू मिश्र से मिला तो उन्होंने बताया कि यशवंत ने दारू पी के अख़बार के मैनेजमेंट से झगडा कर लिया था| यशवंत अपना वेतन लेकर निकले और मीडिया में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए लिखना शुरू कर दिया| मेरे लिए भड़ास का पहला परिचय यही था जिसके बाद मुझे लगा कि कुछ भी हो यशवंत में कुछ तो करेंट है ही| इसीलिए यशवंत की कहानी बता के जब राजू भाई ने पूछा था कि पत्रकारिता करना चाहते हो क्या? तब मेरा सवाल यही था की पत्रकारिता के नाम पर नैतिक मूल्यों और सामाजिक सरोकारों की अनदेखी करके जैसा कारपोरेटीकरण हो रहा है उससे मीडिया और समाज की खैरख्वाही कैसे कर पायेगा?

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इस मुलाकात के बाद गुजरे इतने सालों में मीडिया के बहुत से फोरमों में उठना-बैठना हुआ| पत्रकारों के फोरमों का जो हाल है उसको कुछ यूँ समझना बेहतर होगा कि चिराग के तले ही नहीं बल्ब, ट्यूब लाईट सीएफएल तले भी अँधेरा होता ही है| ज्यादातर मामलों में हुई आपसी कहा सुनी का कोई खास मतलब नहीं बनता| व्यवस्था और बड़के घाघ भले ही कहीं प्रभावित न हों लेकिन छूंछे मूल्यों के नाम पर आपसी संबंधों की अर्थी जरुर निकल जाती है| कोई भ्रष्टाचार से ही भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का फलसफा लेकर बहस में उलझा हुआ नज़र आता है| कहीं पत्रकारों का अहं यानि ईगो देश-दुनिया पर बोझ जैसा जान पड़ने लगता है तो कहीं नासमझी ही अंतिम सत्य लगता है|

बहुत ज्यादा तो कुछ नहीं पर कुल मिला के यही जान पाया हूँ कि सिद्धांतों, वाद-विवादों और बहसों के बीच अगर कमी है तो आपसदारी की| सोशल मीडिया में व्यक्तिगत विवादों को भी लोग चटकारे ले-ले कर पढ़ते हैं| पंकज- मनीषा श्रीवास्तव और यशवंत सिंह के मामले में सिर्फ यही सलाह है कि कहीं आमने सामने बैठ के आपसी समझदारी से मसले को निपटा लीजिये| बेहतर तो यही रहेगा कि व्यक्तिगत मामलों को सिद्धांतों का मुलम्मा चढ़ा के देश दुनिया बचाने का स्वांग न किया जाय| अगर “सिद्धांतों से संतुष्टि” है तो “एकता में शक्ति” फैसला आपको करना है| मेरा सुझाव तो यही है कि एक बनो-नेक बनो तभी लोग साथ देंगे|

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| ऐसे मसलों में बाबा नागार्जुन की ये कविता जीवंत नज़र आती है ….

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूँखार,
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गए चार|

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चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन,
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन|

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो,
अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो|

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दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक,
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक|

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा,
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा|

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Rakesh Mishra

9313401818, 9044134164
सत्यमेव जयते
http://punarnavbharat.wordpress.com/

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