Akhilesh Pratap Singh : कला केंद्र को राम बहादुर राय के हवाले किए जाने के बात सुन रहा हूं कि वह बहुत भले आदमी हैं…. पत्रकारिता में तो हीरा कह लीजिए उन्हें…. उनकी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता…. आप तो यह समझ लीजिए कि आरएसएस में वह सोशलिस्ट हैं… मने कह लीजिए कि संघ में होकर भी वह… मने समझिए कि वहां होकर भी… मने….. पहले भी सुनता था, पर अब समूह गान के रूप में सुन रहा हूं…….चंपू ब्रिगेड से सिर्फ एक सवाल है मेरा… अगर आपकी बताई हर बात के बावजूद किसी को संघ के विचारों का ही समर्थन करना है तो ऐसी कथित विद्वत्ता, ऐसी कथित ईमानदारी अंतत: समाज के लिए फायदेमंद है या आपके निजी हितों के लिए?
Sanjaya Kumar Singh : अगर आप यह कहना चाहते हैं कि संघ को उनकी योग्यता और ईमानदारी का लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए तो इससे असहमत नहीं हुआ जा सकता है। पर मेरा अब भी मानना है कि आज की स्थिति में उनका इस पद को स्वीकार करना अपना कद घटाना है। यह उनका निजी निर्णय है पर मैं उनसे सहमत नहीं हूं।
Deepu Naseer : वे कैसे पत्रकार हैं, इसे परे रखिये लेकिन रजत शर्मा से बहुत वरिष्ठ हैं। पिछले साल साहेब ने जूनियर शर्मा जी को पदम भूषण से नवाजा था लेकिन वरिष्ठ राय साहब को सिर्फ पदमश्री से निपटा दिया गया।
Sanjaya Kumar Singh : इसीलिए मैंने कहा कि उन्हें यह पद स्वीकार नहीं करना चाहिए था। रजत शर्मा को जो ईनाम मिला वह उनसे हो सकने वाले लाभ की तुलना में है और इस लिहाज से देखें तो यह “ईनाम” भी, जो राय साब को छोटा करता है।
Akhilesh Pratap Singh : यह तो संघी खेमे के अंदर की खींचतान है…. रजत शर्मा भारी पड़ गए तब..
Sanjaya Kumar Singh : पद्म पुरस्कार तो इन्हें भी मिला था। मुद्दा वो नहीं है।
Akhilesh Pratap Singh : कद का ही सवाल है तो सर चाहे जितना बड़ा कद हो, अगर संघ के हितों का पोषक है तो उस कद की जय जय का क्या मतलब निकाला जाए…. उनकी योग्यता और ईमानदारी संघियों और संघियों को ढोने वाले कुछ सोशलिस्टों के ही काम की है सर…. वरिष्ठ पत्रकार हैं… बड़ी जिम्मेदारियां संभाली हैं… लेकिन हैं तो संघी हितों के पोषक ही…. मैं पत्रकार बिरादरी में उनके समर्थकों के वृंदगान पर सवाल उठा रहा हूं जो खुद को समाजवादी और प्रगतिशील भी बताते हैं…
Sanjaya Kumar Singh : मैं इसे ऐसे देखता हूं कि एक अखबार में, जहां धुर वामपंथी से लेकर धुरदक्षिणपंथी और किसिम किसिम के मध्यमार्गी थे वहां उनका दक्षिणपंथी (या संघी होना) कोई नुकसानदेह नहीं रहा। बाद में उनके संपादन में निकलने वाली पत्रिकाओं को मैंने फॉलो नहीं किया क्योंकि मेरा मानना है कि हिन्दी पत्रकार की जरूरत है कि वह रिटायरमेंट की उम्र निकलने के बाद भी नौकरी करे और ऐसी नौकरी मजबूरी ही है। इन सबके बावजूद, अभी तक जो सम्मान उन्होंने पाया था, उसके मुकाबले यह पद बहुत छोटा है। लाभ छोटे बड़े वो पहले भी बहुत ले सकते थे। निजी तौर पर मैं जो कुछ जानता हूं, उसके आधार पर कह रहा हूं।
Indra Mani Upadhyay : यह उसी तरह घटिया काम है जैसे तमाम संस्थानों के पद वामपंथी लोगों को दिए गए थे। राम बहादुर राय को पद देना उतना ही गलत है जितना अनंत मूर्ती को ftti के प्रमुख का पद देना। या तो दोनों सही हैं या दोनों गलत। यह सारे पद सिर्फ तुष्टिकरण हेतु होते हैं। बाकी महान ‘कलाविद्’ इंदिरा जी के नाम पर यह संसथान बना है। उनकी कला क्षेत्र में उपलब्धियों को तो जानते होंगे न?
Akhilesh Pratap Singh : मुझे पता है…अनंतमूर्ति होने और राम बहादुर राय होने का मतलब….. सामान्यीकरण की कला से यह फर्क नहीं दिखेगा… और राम बहादुर राय को यह पद दिए जाने पर मुझे कोई शिकायत नहीं है…. राय साहब की सामूहिक वंदना पर मेरे कुछ सवाल हैं….
Satyendra Ps राय साहब को यूजीसी का चेयरमैन या डी यू का वीसी बनाया जाना चाहिए था। संघी बहुत नीच हैं। घटिया लोगों को प्रश्रय देते हैं काबिल लोगों के साथ मुगलसराय कर देते हैं।
सौजन्य : फेसबुक
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