सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया को लेकर जो फैसला दिया है, उसके बाद हर जिले के डीएलसी आफिस यानी सहायक श्रम आयुक्त कार्यालय के हर कर्मचारियों का रवैया बदला है। इन कर्मचारियों का रुख इसलिए बदला है कि 19 जून 2017 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के आये फैसले में यह स्पष्ट लिखा है कि मजीठिया वेतन आयोग के मामले में सरकारी अधिकारी या कर्मचारी के क्या दायित्व होंगे। यही वजह है कि मजीठिया का मामला 19 जून के बाद जहां भी शुरू हुआ है, मालिकान की तरफदारी करने वाले सभी सरकारी अधिकारी का रवैया बदला है।
पहले इनकी बातों से, इनके काम करने के तरीकों से, इनके हाव भाव से स्पष्ट होता था जैसे ये अख़बार मालिकानों की नौकरी करते हों। वर्कर की मदद के लिए बनाये गए ये अफसर सही में मालिकानों के लिए काम करने में जुटे होते थे, लेकिन मजीठिया मामले के आये आदेश के बाद इनका मिजाज और काम करने का अंदाज़ बदला है। हालांकि माना यह भी जाता है कि ये किसी न किसी तरह अब भी मालिकान के लिए काम करेंगे। इसलिए अब वर्करों को भी इनसे सतर्क रहना होगा। इन पर नज़र भी रखनी होगी, इनकी कार्य करने के तरीके को समझना होगा और वर्कर को आगे बढ़ने के लिए तैयार रहना होगा, मसलन हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इनकी शिकायत करने के लिए।
माननीय सुप्रीम कोर्ट से आये आदेश का डर सरकारी अफसर के मन में हुआ है। यही वजह है कि इन दिनों जहाँ भी मजीठिया का केस चल रहा है, अफसर इस काम को करने में देर नहीं लगा रहे हैं। पिछले दिनों राजस्थान पत्रिका का मामला वर्करों के लिए खुश करने वाला था। वहां जीतेन्द्र जाट के मामले में लेबर कोर्ट ने पत्रिका प्रबंधन से नौकरी पर रखने के लिए कहा। अभी कानपुर में दैनिक जागरण के वर्कर का मामला भी ऐसा ही सुना गया। कोर्ट ने जागरण की एक नहीं सुनी और लगातार सुनवाई करने की बात की। दो दिन सुनवाई हुई, जिसके बाद जागरण ने कोर्ट के आगे गिड़गिड़ाया कि सर एक तारीख आप अपनी मर्ज़ी से दे दें, तब कोर्ट ने एक सप्ताह की मोहलत दी। जागरण ने पिछले दिनों पंजाब के जालन्धर में भी सरकारी बाबू के आगे हाथ जोड़े और वर्कर के वकील से मिलकर और उन्हें लोभ देकर मामले को निपटाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी।
कुल मिलाकर वर्कर के पक्ष में हवा चली है और इसका श्रेय जाता है माननीय सुप्रीम कोर्ट को, जिनके फैसले ने मालिकानों की हर चाल को जकड़ रखा है। मालिकान तन से हारे अभी भले ही नहीं दिख रहे हैं, पर वे जल्दी ही तन और मन दोनों से हारे नज़र आएंगे। वर्करों का धन उन्हें देना ही पड़ेगा। संभव है, अख़बार मालिकानों के खिलाफ मजीठिया के केस जहां भी चल रहे होंगे, कमोवेश सभी सरकारी अफसर की नीयत अब बदली सी होगी और ये मालिकान के प्यादे सरकारी दफ्तर से पालतू की तरह भगाए जा रहे होंगे। बाबजूद हमें उस कहावत को नहीं भूलना चाहिए कि कुत्ते की दुम को सालोंसाल चोंगे में यानी पाइप में डाल कर छोड़ दो, वह तब भी सीधी नहीं होगी। सरकारी अफसर थोड़े बदल भी जाएँ, मालिकान के ये प्यादे कभी भरोसे के लायक नहीं हो सकते।
मजीठिया क्रन्तिकारी और पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से.