Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

रवीश कुमार‬ निष्पक्षता का चोला पहने अपना comfort zone सुनिश्चित कर लेते हैं

Shikha : कथित रूप से “गैर राजनैतिक” चोला पहने लोग सबसे शातिर होते हैंl किसी की राजनीति साफ़ हो तो भले ही वह कितना भी बड़ा विरोधी क्यों न हो उससे उतनी समस्या नहीं होती क्योंकि उसके प्रति साफ़ नजरिया बनाया जा सकता हैl पर निष्पक्षता का चोला पहने लोग अपना comfort zone सुनिश्चित कर लेते हैं ताकि घटनाक्रमों से दूर रहकर निष्क्रियता का बहाना ढूंढ सकेंl ‎रवीश कुमार‬ ऐसे ही पत्रकार हैंl इनके “निष्पक्ष” चश्मे से abvp के गुंडों द्वारा सिद्धार्थ वरदराजन के साथ की गई बदमाशी और jnu में रामदेव के आने का छात्रों द्वारा किया गया विरोध, दोनों एक समान घटनाएं हैं और उसी “निष्पक्ष” नम्बर वाले चश्मे से रविश बड़ी चतुराई से बिना कारणों और तथ्यों की पड़ताल किए दोनों घटनाओं को “बराबर निंदनीय” बताकर निकल लेते हैंl

<p>Shikha : कथित रूप से "गैर राजनैतिक" चोला पहने लोग सबसे शातिर होते हैंl किसी की राजनीति साफ़ हो तो भले ही वह कितना भी बड़ा विरोधी क्यों न हो उससे उतनी समस्या नहीं होती क्योंकि उसके प्रति साफ़ नजरिया बनाया जा सकता हैl पर निष्पक्षता का चोला पहने लोग अपना comfort zone सुनिश्चित कर लेते हैं ताकि घटनाक्रमों से दूर रहकर निष्क्रियता का बहाना ढूंढ सकेंl ‎रवीश कुमार‬ ऐसे ही पत्रकार हैंl इनके "निष्पक्ष" चश्मे से abvp के गुंडों द्वारा सिद्धार्थ वरदराजन के साथ की गई बदमाशी और jnu में रामदेव के आने का छात्रों द्वारा किया गया विरोध, दोनों एक समान घटनाएं हैं और उसी "निष्पक्ष" नम्बर वाले चश्मे से रविश बड़ी चतुराई से बिना कारणों और तथ्यों की पड़ताल किए दोनों घटनाओं को "बराबर निंदनीय" बताकर निकल लेते हैंl</p>

Shikha : कथित रूप से “गैर राजनैतिक” चोला पहने लोग सबसे शातिर होते हैंl किसी की राजनीति साफ़ हो तो भले ही वह कितना भी बड़ा विरोधी क्यों न हो उससे उतनी समस्या नहीं होती क्योंकि उसके प्रति साफ़ नजरिया बनाया जा सकता हैl पर निष्पक्षता का चोला पहने लोग अपना comfort zone सुनिश्चित कर लेते हैं ताकि घटनाक्रमों से दूर रहकर निष्क्रियता का बहाना ढूंढ सकेंl ‎रवीश कुमार‬ ऐसे ही पत्रकार हैंl इनके “निष्पक्ष” चश्मे से abvp के गुंडों द्वारा सिद्धार्थ वरदराजन के साथ की गई बदमाशी और jnu में रामदेव के आने का छात्रों द्वारा किया गया विरोध, दोनों एक समान घटनाएं हैं और उसी “निष्पक्ष” नम्बर वाले चश्मे से रविश बड़ी चतुराई से बिना कारणों और तथ्यों की पड़ताल किए दोनों घटनाओं को “बराबर निंदनीय” बताकर निकल लेते हैंl

ये “निष्पक्षता” भी बड़ी मजेदार चीज़ है, अपने सामजिक उत्तरदायित्वों से मुंह मोड़कर निष्क्रिय पड़े रहते हुए कमेंटरी करने की सुविधा यही निष्पक्षता देती हैl वरना माइक पर किसी कार्यक्रम में रवीश द्वारा ये दुखड़ा रोना कि दुनिया भ्रष्ट है, कॉर्पोरेट पत्रकारिता भ्रष्ट है, और इस व्यवस्था को एक “लाइलाज” मर्ज़ बताकर मजबूरी और निष्क्रियता भरी “इमानदारी” का चोला पहनना भी पत्रकारों के लिए एक विकल्प हो सकता है तो दूसरी ओर अपना पक्ष तय करना और उस पक्ष के प्रति अपनी जिम्मेदारी तय करके गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों की तरह कलम को जनता का हथियार बनाना भी एक विकल्प हो सकता हैl बाकी तीसरा विकल्प भी है, सुधीर चौधरी, दीपक चौरसिया, रजत शर्मा की तरह सत्ता की हार्डकोर दलाली करने वाला या फिर बरखा, अर्नब, राजदीप जैसे लिबरल जीव जंतुओं की तरह सॉफ्ट कोर दलाली का भी रास्ता है पर उनके लिए यह पोस्ट नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भाकपा माले लिबरेशन से जुड़ीं कामरेड शिखा के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. jk

    January 25, 2016 at 6:24 am

    मेन स्ट्रीम पत्रकारिता में ऐसा नहीं करेंगे तो भगा नहीं दिए जाएंगे। जो दूसरा आएगा वह तो तय सी बात है घटिया ही होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement