Rakesh Srivastava : रवीश कुमार ने सावजी भाई ढोलकिया से पूछा कि आपने कहीं मार्क्स को तो नहीं पढ़ा है जो मजदूरों के प्रति संवेदनशील हैं, तो ढोलकिया ने कहा कि मैंने चौथी तक पढ़ाई की है और रोज़ ही बस जिंदगी की किताब पढ़ता हूं .. और, ऐसा कहते हुए ढोलकिया किसी विचारधारात्मक डिफेंस में नहीं थे .. वह बहुत सहज और प्राकृत थे और इस इंटरव्यू में उनके एक- एक शब्द में ईमानदारी और प्रामाणिकता की ध्वनि थी .. रवीश कुमार भी बहुत जल्द बने- बनाए फ्रेमवर्क से बाहर निकलकर सहज हो लिए ..
हरि कृष्णा एक्सपोर्ट के ढोलकिया ने अपने जिन 1200 कर्मचारियों को दीवाली के उपहार में कारें, जेवर और फ्लैट दिए हैं उनके चयन का अपना एक वस्तुनिष्ठ आधार बनाया है .. एक अदना कर्मचारी से 6000 करोड़ के व्यवसाय की यात्रा में उन्होंने मजदूरों की कीमत समझी है और सोशल बिजनेस की अपनी संवेदना को अमेरिका से पढ़कर आए अपने भतीजे की सहायता से अधिक फॉर्मुलेट करते हैं .. 28 सदस्यों वाले संयुक्त परिवार में ढोलकिया मुखिया हैं पर उनका रूझान एकतरफा पितृसत्तात्मक नहीं है और कह गए कि श्रमिकों के श्रम में उनकी पत्नियों की भूमिका को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते .. सभी सरकारी सहायता लेते हैं सरकार को टैक्स देते हैं पर सरकारी बैसाखी आवश्यक नहीं मानते ..
भारतीय सामाजिक जीवन में ऐसे नायक मिलते हैं जिन्होंने अपने जीवन अनुभवों की पृष्ठभूमि में परंपरा और आधुनिकता की गजब की फाइन ट्यूनिंग बनाई होती है .. जिनकी विश्व दृष्टि परंपरा और नएपन दोनों से कतिपय तत्वों को लेकर बनी होती है पर जो पूरी तरह इंसानियत की जमीन पर टिकी होती है. ऐसी समृद्धि खूबसूरत है जिसमें आत्मा का विकास और भौतिक उपलब्धियां समानुपातिक है.
राकेश श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.
एच.आनंद शर्मा,शिमला
October 22, 2014 at 1:56 pm
मैंने पूरा इंटरव्यू देखा है। यह उन दक्षिणपंथी अर्थशास्त्रियों के मुंह पर करारा तमाचा है जो यह प्रचारित करते रहते हैं कि उद्योगपति यदि अपने कर्मचारियों को श्रम कानूनों को पूरी तरह से लागू कर दे तो उनके उद्योग घाटे के कारण बंद हो जाएंगे। हरि कृष्णा एक्सपोर्ट्स के मालिक सावजी भाई ढोलकिया अपने कर्मचारियों को ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार यहां तक कि उनके माता-पिता तक को पूरा सम्मान एवं सहयोग देते हैं। उसके बावजूद कंपनी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है।