क्या कांट्रास्ट है. जो जेल में है वो प्रसन्न है. जो आजाद है वह खिन्न है. यह तीसरा महीना चल रहा है सहारा मीडिया में बिना सेलरी काम कराए जाने का. सुब्रत राय तिहाड़ जेल में दबा कर किताबें लिख रहे हैं, बाहर अखबारों में करोड़ों अरबों का विज्ञापन अपनी किताब से संबंधित छपवा रहे हैं और कह रहे हैं कि उनके पास अपने कर्मियों को देने के लिए पैसे नहीं हैं. सुब्रत राय खुद को रिहा कराने के लिए होटल जमीन सब बेचने का प्रस्ताव कोर्ट के सामने कर रहे हैं लेकिन अपने कर्मियों को सेलरी देने के नाम पर चुप्पी साधे हैं.
ज्ञात हो कि सेलरी संकट पहले भी सहारा मीडिया में था लेकिन तब सहारा कर्मियों ने मोर्चा बनाकर, एकजुट होकर हड़ताल आदि का सहारा लेकर प्रबंधन पर घनघोर दबाव बनाया जिसके परिणामस्वरूप सहारा मीडिया के वरिष्ठों को हटाकर कमान उपेंद्र राय को दे दी गई. तब लोगों में भरोसा जगा कि अब सब बेहतर होगा. उपेंद्र राय ने शुरुआत में एक महीने की सेलरी देकर और सेल्फ एक्जिट पालिसी बनाकर यह संकेत दे दिया कि वह सहारा मीडिया में अब सेलरी का संकट नहीं आने देंगे. पर वक्त बीतने के साथ उपेंद्र राय अपनी सीमाओं में सिमटते गए. असल में उपेंद्र राय या कोई भी तभी सेलरी दे पाएगा जब सुब्रत राय सेलरी देने के लिए बोलेंगे. उन्हें दिख रहा है कि बिना सेलरी भी लोग काम कर रहे हैं इसलिए वह खुद के जेल में होने के नाम पर अपने कर्मियों पर इमोशनल अत्याचार करते हुए उनके पेट पर लात मार रहे हैं.
सहारा मीडिया के सैकड़ों कर्मियों ने भड़ास को फोन और मेल कर के अंदरखाने की जानकारी दी. नोएडा से लेकर लखनऊ, कानपुर, पटना, मुंबई हर जगह सहारा मीडिया कर्मी बेहद उदास और निराश हैं. किसी के बच्चे की फीस नहीं जमा तो किसी ने मकान का किराया नहीं भरा. रोज उम्मीद के साथ आफिस आते हैं और बेहद निराशा में भरकर वापस लौटते हैं. इन हालात में सहारा मीडिया में फिर से एक बार हड़ताल की संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं. तिल तिल कर मरने से अच्छा है कि अपने हक के लिए लड़ कर मरो. पिछले दफे जब सहारा मीडिया में जोरदार हड़ताल हुई तो प्रबंधन हिल गया था और सेलरी रिलीज करने के साथ साथ आगे सब कुछ बेहतर होने का भरोसा मिला था. यहां तक कि सुब्रत राय को भी तिहाड़ से पत्र जारी करना पड़ा था. लेकिन प्रबंधन फिर कर्मियों की चुप्पी और धैर्य का नाजायज फायदा उठाने में जुटा है.
उपेंद्र राय भी सुब्रत राय के पैसे रिलीज करने का इंतजार कर रहे हैं. जो हालात सहारा मीडिया में है उसमें उपेंद्र राय भी खुद को चक्रव्यूह में फंसा पा रहे हैं. हालांकि कहने वाले कहते हैं कि तिहाड़ में मीटिंग एसी कांफ्रेंस के नाम पर करोड़ों का बिल भरने वाले और अपनी किताब के विज्ञापन पर करोड़ों खर्च करने वाले सुब्रत राय सेलरी के अलावा बाकी अन्य सभी कामों आयोजनों के लिए जमकर पैसे रिलीज कर रहे हैं लेकिन जाने क्या है कि सेलरी के लिए पैसे देने नाम पर वह एक सैडिस्ट मुस्कान के साथ चुप्पी साध लेते हैं. ऐसे में अब आखिरी हथियार सहाराकर्मियों की एकजुटता और हड़ताल के साथ हल्लाबोल ही है. जितने दिन सहारा कर्मी अलग थलग और चुप चुप रहेंगे, उतने दिन उनकी पीड़ा दुख मुश्किल गहन होते जाएगी.
एक सहारा कर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
सहारा मीडिया के संकट के बारे में अगर आपको कुछ बताना है तो भड़ास तक अपनी बात [email protected] के जरिए पहुंचा सकते हैं. मेल भेजने वालों का नाम पहचान गोपनीय रखा जाएगा.