लखनऊ। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लम्बे समय के बाद उन तेवरों में दिखे जिनमें लोग उन्हें देखना चाहते हैं। कल के अपने दौरे पर खनन की शिकायतों पर उन्होंने इलाहाबाद के कमिश्नर से पूछा कि क्या पैसे देकर हुई है पोस्टिंग और जवाब न मिलने पर कमिश्नर को सस्पेंड कर दिया। मगर तस्वीर का एक और पहलू भी है। प्रदेश भर के अफसरों की नियुक्ति प्रमुख सचिव नियुक्ति करता है। यह इस प्रदेश का दुर्भाग्य है कि इस समय प्रमुख सचिव नियुक्ति खुद घोटालों में तीन साल की सजा पाया हुआ अपराधी है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहां अफसरों की तैनाती का फैसला एक सजायाफ्ता मुल्जिम कर रहा है। अब जब अपराधी ही तय करेगा कि किस जिले में कौन अफसर तैनात हो तो जाहिर है सूबे के अफसरों का मिजाज तो बिगड़ेगा ही।
यह अच्छा है कि कल मुख्यमंत्री ने खुद अपनी आंखों से देख लिया कि अफसर किस तरह का भ्रष्टïाचार कर रहे हैं। मगर सवाल यह है कि अवैध खनन को लेकर मंडलायुक्त को तो निलम्बित कर दिया गया मगर जिन जिलों में यह अवैध खनन हो रहा है वहां पर जिलाधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। सीएम के कल कमिश्नर से किये गये सवाल पर पूरी नौकरशाही में सवाल खड़े हुए हैं कि आखिर क्या कारण है कि प्रदेश में सबसे प्राइम कही जाने वाली प्रमुख सचिव नियुक्ति की कुर्सी पर एक ऐसा दागदार व्यक्ति बैठाना पड़ा जिसको अदालत ने तीन साल की सजा सुना रखी है। जाहिर है यह बड़ा सवाल है और पूरी नौकरशाही व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
प्रदेश के प्रमुख सचिव नियुक्ति राजीव कुमार जब नोएडा में तैनात थे तब उन्होंने वहां प्रदेश की मुख्य सचिव रही नीरा यादव के साथ मिलकर प्लाट घोटाला किया था। हंगामा होने पर इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी गयी थी। सीबीआई ने यह आरोप सही पाये और अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी। इसके बाद सीबीआई न्यायालय ने नीरा यादव और राजीव कुमार को तीन साल की सजा सुना दी। सजा होने के बाद प्रदेश सरकार ने राजीव कुमार को उनके पद से हटा दिया मगर किसी की भी प्रमुख सचिव के पद पर तैनाती न करके प्रमुख सचिव आबकारी को ही कार्यभार दे दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया कि जिससे राजीव कुमार अदालत से स्टे ला सके। और हुआ भी ऐसा ही। राजीव कुमार स्टे लेकर आये और उन्हें दोबारा से प्रदेश का प्रमुख सचिव नियुक्ति बना दिया गया। यह मुकदमा अभी भी हाईकोर्ट में लम्बित है।
एक दागी और सजायाफ्ता व्यक्ति के प्रमुख सचिव नियुक्ति के पद तैनात होने को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई जिस पर अदालत ने राज्य और केन्द्र सरकार सरकार को नोटिस जारी कर दिया। यह याचिका अभी हाईकोर्ट में लम्बित हैं। मगर पूरी नौकरशाही में इस बात की बेहद चर्चा है कि आखिर कौन से ऐसे कारण है जिनके चलते एक दागी को प्रमुख सचिव नियुक्ति बनाना पड़ा रहा है। राजीव कुमार पर अफसरों की तैनाती को लेकर भी कई सवाल खड़े होते रहे हैं। लखनऊ में आबकारी कांड में हटाये गये विवादित आबकारी आयुक्त अनिल गर्ग को सचिव उच्च शिक्षा बना दिया गया और राजीव कुमार ने उनसे वादा कर दिया कि उनके विभाग में कोई प्रमुख सचिव तैनात नहीं होगा। जिससे प्रमुख सचिव का काम भी अनिल गर्ग देखें और मन चाहे फैसले करते रहें। जाहिर है अगर ऐसा होगा तो सीएम को अफसरों से पूछना ही पड़ेगा कि क्या पैसे देकर कराई है पोस्टिंग।
लेखक संजय शर्मा लखनऊ से प्रकाशित सांध्य हिंदी दैनिक ‘4पीएम’ के संस्थापक और संपादक हैं.