कोलकाता से प्रकाशित हिन्दी दैनिक ‘सलाम दुनिया’ में सैलरी का संकट गहराता जा रहा है। सैलरी नहीं मिलने से परेशान इस संस्थान के कर्मचारियों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। सलाम दुनिया के कर्मचारियों को मई के बाद से सैलरी नहीं मिली है। पाँच साल से चल रहे इस अखबार में शुरुआती दिनों में प्रति महीने 6 तारीख को सैलरी मिल जाती थी। बाद के दिनों में 6 से 10, 10 से 14, 14 से 22 तारीख को सैलरी मिलती थी। अब आलम यह है कि कर्मचारी प्रतिदिन सैलरी की राह वैसे ही देखते है जैसे प्यासा व्यक्ति पानी को देखता है।
तृणमूल के पूर्व व भाजपा के वर्तमान कद्दावर नेता व सांसद अर्जुन सिंह ने लगभग पाँच साल पहले हिन्दी दैनिक सलाम दुनिया और बांग्ला दैनिक एकदिन की शुरुआत की थी। दोनों अखबारों की शुरुआत जोरदार तरीके से हुई थी। बांग्ला दैनिक एकदिन धीरे-धीरे स्थापित हो गया और नो प्रोफिट नो लास की नीति के तहत बांग्ला अखबार से श्री सिंह को कोई घाटा नहीं हो रहा है। लेकिन इसके उलट श्री सिंह अपने हिन्दी अखबार से सालाना करोड़ों रुपये का घाटा उठा रहे हैं।
सलाम दुनिया के सीनियर रिपोर्टर राकेश पाण्डेय प्रति महीने 6 तारीख के बाद ही संपादक व डाइरेक्टर के चैम्बर में सैलरी के लिए चिल्ल-पों करने लगते थे और सैलरी मिल भी जाती थी। लेकिन पाण्डेय जी के चिल्लाने का भी कोई असर नहीं हो रहा है और सैलरी के लाले पड़े है। यदि यही आलम रहा तो जल्दी ही सलाम दुनिया बंद हो सकता है।
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महोदय, मैं भड़ास फॉर मीडिया देखती हूँ। भड़ास अच्छी चीज है, बशर्ते उसका उद्देश्य सकारात्मक हो…मैं सुषमा त्रिपाठी पिछले 15 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूँ और काम कर रही हूँ। आप जिस अखबार की बात कर रहे हैं, वहाँ मैं भी रही हूँ और अपनी नयी शुरुआत करते हुए मैंने अभी त्यागपत्र दिया है…यह त्यागपत्र मैं 21 जनवरी 2019 को अपने अखबार के सम्पादक सन्तोष सिंह को मेल पर दे चुकी थी परन्तु उनके रोकने की वजह से कुछ महीने रुकी…और अब नयी राह पर चल पड़ी हूँ। यह सही है कि वेतन सम्बन्धी समस्याएँ हर अखबार में रहती हैं…परन्तु फर्क यह है कि उनका तमाशा नहीं बनता। खबर की भाषा बता रही है कि यह भड़ास ही है…मैं यह जानना चाहूँगी कि भड़ास सिर्फ भड़ास छापता है अथवा आपके पास पत्रकारों और नये पत्रकारों के लिए किसी प्रकार की ठोस योजना भी है? जाहिर सी बात है कि जब अब किसी सत्ता को चुनौती देंगे तो उसका नतीजा तो यही होगा…संसाधनहीनता के बीच तो आज पूरा मीडिया जगत है, मंदी अपने चरम पर है। इसका उल्लेख जरूर होना चाहिए मगर किसी को टारगेट करना अच्छी बात नहीं है। अच्छा – बुरा वक्त सबका आता है, सबके साथ आता है, ऐसी स्थिति में यह स्थिति अगर आपके सामने आई और यह कहा गया कि भड़ास फॉर मीडिया बंद होने जा रहा है या कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला तो आपकी क्या प्रतिक्रिया रहेगी..वह भी जानने की इच्छा रहेगी। एक बार इस जगह पर खुद को रखकर देखिए…चटखारों वाली खबरों से मसाला पत्रिकाएँ चल सकती हैं…स्वस्थ पत्रकारिता नहीं।
सलाम दुनिया में काम करने का जो माहौल मुझे मिला….वह कहीं और नहीं मिला…एक स्वस्थ परिवेश…आज कहाँ मिल पाता है? निश्चित रूप से आप भी नहीं चाहेंगे कि इतने सारे मीडियाकर्मी एक झटके में अपना रोजगार खो दें…तो खबरों से परे अगर आपके पास कोई समाधान है तो वह भी दें…यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि नयी पीढ़ी जब आपको पढ़ती है को आपका आकलन भी करती है…और इस कसौटी पर हम सब कितने खरे उतरेंगे. यह बताने की जरूरत है। पत्रकारिता को इस संड़ान्ध से निकालना कठिन होगा। वैसे मैं बता दूँ कि मुझे जुलाई माह का वेतन, बकाया, परिवहन खर्च सब कुछ मिल चुका है।
आभार
सुषमा त्रिपाठी
वैसे एक बात बताइए कि इतनी गोपनीय जानकारी आप तक पहुँची है. आप लोग खबरों का क्या सत्यापन करते भी हैं या फिर आपने हर मीडिया संस्थान के चेम्बरों का हाल जानने के लिए सीसीटीवी लगा रखे हैं…नहीं पता हो तो जिन्होंने यह कृपा आप तक पहुँचाई है, उनसे पूछकर बता दीजिएगा।
सादर
सुषमा दी आपके विचार तर्कसंगत है। मैं आपके विचार से सहमत हूं।
मैं उमेश तिवारी. हावड़ा पत्रकार. यह सही है कि सलाम दुनिया अभी मंदी की दौर से गुजर रहा है और इसके लिए ब्यवस्थापक को कुछ कर्मचारियों को सम्मानपूर्वक हटाना भी पड़ा लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां के कर्मचारियों को वेतन के लिए तरसना पड़ा. मैंने देखा है कि 6माह पहले तक किसी को वेतन के लिए ब्यवस्तापक का दरवाजा खटखटाना पड़ा हो. जब कम्पनी अच्छे दौर में थी तब भी और अभी भी यहाँ के कर्मचारियों कम्पनी के साथ हैं. और यह भी है कि जिन लोगो को सलाम दुनिया ने निकला है उन्हें बुला कर वेतन देती है. किसी ने जानबूझकर सलाम दुनिया को बदनाम करने के लिए झूठी रिपोर्ट भड़ास में डाली है. कृपया इसकी सत्यापन करवा ले. रहीं बात राकेश की तो यह सबके साथ होता था. जब वेतन मिलने में देर होती थी तो लोग एक बार अक्कौन्टेंट या संपादक से जरूर पूछते थे. खैर मैं जब सलाम में था तब भी और अब भी जबकि सलाम में नहीं हूँ. मैं इतना जरूर कहूंगाsalam is the best.