मजीठिया मंच : मालिकों को जोर का झटका, धीरे से… इंडियन एक्सप्रेस बनाम कर्मचारी यूनियन के दिल्ली वाले मामले में 18 तारीख की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को रिपोर्ट के प्रावधानों के अनुसार ही लागू करना है। माननीय कोर्ट ने प्रबंधन की इस रिपोर्ट को अपने तरह से लागू करने की कोशिश पर शपथप्रत्र दायर करने को कहा है। प्रबंधन इस रिपोर्ट के एसीडी और डीए तथा बेसिक वेतनमान को अपने तरह से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है।
इस पर माननीय कोर्ट ने प्रबंधन से कहा है कि वह शपथपत्र दायर कर यह बताए कि कर्मचारियों को इस रिपेार्ट के आधार पर मिलने वाला लाभ कैसे तय किया जा रहा है। प्रबंधन क्या दे रहा है और क्या नहीं दे रहा है।इस संदर्भ में प्रबंधन के वकील की ओर से दी गई दलील जरा भी काम न आई। उनके वकील के यह कहने पर कि विपक्षी (कर्मचारी) को जवाब के लिए समय चाहिए, कोर्ट ने कहा यह उनका मामला है। आप हमें शपथ देकर बताएं कि, आप क्या कर रहे हैं। कोर्ट ने प्रबंधन को इस पूरे मामले में साफ-साफ जवाब और हिसाब – किताब बताने के लिए एक महीने का वक्त दिया है। इसमें कर्मचारियों की ओर से जवाब भी दिया जाएगा।
कहने का मतलब यह है कि माननीय कोर्ट ने मालिकों को बहुत प्यामर से समझा दिया है कि बचने को कोई रास्ता नहीं है। कोई शॅार्ट कट रास्ता नहीं है और हेराफेरी पर कोर्ट की नजर है। मालिकों के लिए सबसे खतरनाक यह है कि कोर्ट ने उनकी एक बात भी नहीं मानी है और जा कुछ भी वह पेश कर रहे है उस पर शपथपत्र दायर कहने को कहा जा रहा है। साफ है प्रथम दृष्टया कोर्ट प्रबंधन की दलीलों से सहमत नहीं है और उसे अब शक हो चला है कि इसमें कर्मचारियों के साथ बेईमानी हो रही है। अदालत में कुछ कहा जा रहा है और हकीकत कुछ है।
मजीठिया मंच नामक फेसबुक पेज से साभार.
Kashinath Matale
January 20, 2015 at 2:45 pm
Thanks Majithia Manch, and also congratulation for legal direction from SC.
We also fighting for proper way of implementation of recommendations of Majithia Wage Board. Our management also implemented the MWB by its improper way. (By INS) way. They considered 189 points base for DA calculation instead of 167. They also refusing the annual increment after employee reaching the maximum of the revised pay scale.
They also stop almost old employees on maximum of revised basic scale, due to this employees geting wrong salary. They also did not consider Variable Pay for calculating the DA. DA giving only on basic. They did not protecting the existing emoluments. So employees are disappointed.
I request the concerned please send any particular direction for proper calculation the salary as per Majithia Wage Board, if possible. OR give any example for calculation. Or give any legal order.
Thanks and Regards!
[email protected]
Kashinatah Matale
mp
January 22, 2015 at 8:20 am
सुप्रिमकोर्ट के जज साहबों को हमारा खुब खुब धन्यवाद साथ में दिल्ली कर्मचारी युनियन को भी। फीर भी यहां अहमदाबाद में 15 कर्मचारी सहित भास्कर छोड़कर गए लोगों ने गुजरात हाईकोर्ट मे अवमानना सहित मजीठीया तथा मनिसाना पंच न देने के लिए मुकदमा दायर कर दीया है,परंतु उपरोकत समचार सबके लिए राहत ले कर अाए है।साथ साथ मेरा को्र्ट से नम्र निवेदन है की वे इस बात पर भी ध्यान दें की 7 फरवरी अवमानना की मु्द्द्त पुरी होने के बाद कोई भी अखबार मालिक दुसरे हथकंड़े ना अपनाए। अहमदाबाद मे यह चर्चा बड़े जोरशोर से है की मार्च मे नये वित्तवर्ष मे सभी को जबरन कोन्ट्राकट पर नई कंपनी में ट्रान्सफर कर देंगे ताकी हंमेशा के लिए मजीठीया की समस्या दुर हो जाए।
yatcrest
April 17, 2015 at 12:38 pm
पत्रकारिता एक अजीब से दौर से गुजर रही है। पूरे देश और दुनिया में शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों की हालत बंधुआ मजदूरों से भी बुरी है। तथा कथित चौथे स्तंभ के मालिक (Corporate Media Owners Like Patrika News Dainik Bhaskar Dainik Jagran Amar Ujala etc.) खुद को मिस्र के उन फैरो राजाओं की तरह समझते हैं जिन्होंने शोषण के बल पर बडे-बडे पिरामिड बनवाए और खुद की लाशों को इस उम्मीद में वहां दफनाया कि फिर से कभी अपनी अकूद दौलत का विलास भोगेंगे।
शायद आप में से ज्यादातर लोगों काे यकीन नहीं होगा लेकिन हकीकत यही है कि पत्रकारों की हालत दिहाडी मजदूरों जैसी है जिनके सीने पर मालिक हंटर लिए खडे रहते हैं।
पूरी दुनिया को शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का भौंपू थमाने वाले पत्रकार अपने संस्थानों से मजीठीया वेज बोर्ड की अनुशंसाओं के मुताबिक वेतन मांगने में डरते हैं और जो मांगने की कोशिश करते हैं उन्हें मालिक यह कह कर नौकरी से बाहर निकाल देते हैं कि जाओ अब जिंदा रह कर दिखाओ।
हालात यह है कि सरकार पत्र-पत्रिकाओं के मालिकों की गुलाम है। सुप्रीम कोर्ट इनके जूते की नौंक पर रहता है इसीलिए तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी किसी भी संस्थान ने मजीठिया के मुताबिक वेतन वृद्धि नहीं की है।
कुछ पत्रकार ऐसे हैं जो मालिकों के साथ मिलकर सुपारी जर्नलिज्म और प्रेश्याओं वाला काम कर रातों-रात अरबपति हो जाते हैं और सरकार उन पर हमेशा मेहरबान होती है और उन्हें तरह-तरह के तमगे और सम्मान देती है।
टीवी न्यूज चैनलों में निचले स्तर पर काम करने वालों का तो और बुरा हाल है। 10-12 हजार में 14-14 घंटे की सिफ्ट और गालियां मुफ्त।
सबसे बडी पीडा यह है कि पत्रकार अपनी लडाई केंकडों की तरह लड रहे हैं। हालात ठीक वैसे ही हैं जब जनरल डायर ने भारत के सैनिकों से ही भारतीयों को गोलियों से भुनवा दिया था। यहां कोई मालिक के दुराचार के खिलाफ खडे होने की कोशिश करता है तो दूसरे कुत्ते स्वरूपी पत्रकार उसके उपर भौंक कर उसे भी मालिक के तलवे चाटने के लिए दबोचने की कोशिश करते हैं।
बहरहाल, ईश्वर से प्रार्थना है जल्दी से सिविल में कामयाबी मिले। मां कसम, कभी अंटे चढे तो जुलाब कोठारी (राजस्थान चत्रिका) जैसे शोषकों हरामखोर हत्थे चढे तो एक-एक टर्मिनेशन को याद दिला-दिला कर पिछवाडे मिर्ची के गरम-गरम पकौडे डालूंगा।