मनोज अभिज्ञान-
सेंसेक्स और निफ्टी दरअसल अर्थव्यवस्था का सही सेंटीमेंट्स नहीं दिखाते. यह कुछ कुछ ऐसा ही है जैसे चुनावों के समय एक्जिट पोल के नतीजे आते हैं. जिस तरह किसी स्कूल के 50 या 30 टॉपर बच्चों ने कैसा परफॉर्म किया, इसे देखकर पूरे स्कूल के बाकी बच्चों के रिजल्ट का अनुमान लगाना कठिन है, उसी तरह सेंसेक्स या निफ्टी को देखकर पूरी अर्थव्यवस्था का अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि सेंसेक्स टॉप 30 कंपनियों का और निफ्टी टॉप 50 कंपनियों का सूचक होता है. उस पर भी सबसे विचारणीय तथ्य यह है कि शेयर बाजार अमूमन सेकेंडरी मार्केट होता है. प्राइमरी मार्केट यह तभी होता है जब किसी कंपनी का आईपीओ आता है.
मान लीजिए कोई कंपनी है जॉन डो एंटरप्राइजेज. जॉन डो एंटरप्राइजेज अपनी 100 करोड़ रुपए की फैक्ट्री लगाना चाहता है. जॉन डो एंटरप्राइजेज के प्रोमोटर्स के पास 70 करोड़ रुपए है. बाकी के 30 करोड़ रुपए इकट्ठा करने के लिए कंपनी ने शेयर बाजार में आईपीओ उतारा और हर शेयर की कीमत रखा 100 रुपए. इस कीमत यानी ₹100 पर तो जॉन डो एंटरप्राइजेज ने अपने सभी 30 करोड़ रुपए मूल्य के शेयर बेच दिए. कंपनी को ₹100/- प्रति शेयर प्राप्त हो गए.
अब खेल शुरू होता है शेयर बाजार के खिलाड़ियों का. इनको लगता है कि कंपनी बहुत अच्छा परफॉर्म करेगी तब ऐसे लोगों से, जिसके पास कंपनी के शेयर हैं, निवेशक बढ़े दाम पर शेयर खरीदने लगते हैं. ऐसे में ₹100/- के शेयर की कीमत बढ़ते बढ़ते मान लीजिए कि ₹200/- तक पहुंच जाती है. ऐसे में कंपनी को इस बढ़े शेयर की वजह से होने वाले अन्य फायदों के अलावा और कोई और फायदा नहीं होता. कंपनी को तो शुरू में ही ₹100/- प्रति शेयर प्राप्त हुए थे. अब जो कीमतें बढ़ रही हैं, इनसे सिर्फ और सिर्फ शेयर बाजार के खिलाड़ी कमाई कर रहे हैं.
अब अचानक किसी वजह से कंपनी की साख पर बट्टा लग जाए तब हो सकता है शेयर की कीमतें गिर कर 50 रुपए भी न रह जाए. सीधी सी बात है कि शेयर बाजार में वास्तविक तौर पर कोई पैसा नहीं होता, बल्कि यह कंपनियों के मूल्यांकन के लिहाज से तय होता है. अगर किसी कंपनी का भविष्य बेहतर नजर आता है, तो उसका मूल्यांकन भी तेजी से चढ़ने लगता है.
दरअसल, किसी शेयर का मूल्य उसकी कंपनी के प्रदर्शन और घाटे-मुनाफे के आकलन पर टिका होता है. अगर निवेशकों और बाजार विश्लेषकों को लगता है कि भविष्य में कोई कंपनी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, तो उसके शेयरों की खरीदारी में तेजी आ जाती है और बाजार में उसकी मांग भी बढ़ने लगती है. इसी तरह, अगर किसी कंपनी के बारे में यह अनुमान लगे कि भविष्य में उसका मुनाफा कम होगा या कारोबार में सुस्ती आएगी तो उसके शेयरों का खेल बिगड़ जाता है और कम कीमत पर बिकवाली शुरू हो जाती है.
मतलब साफ है कि शेयर बाजार के उठने या गिरने से किसी देश की अर्थव्यव्स्था पर कोई खास असर नहीं पड़ता. यह महज इस मार्केट में लगे खिलाड़ियों का खेल बनना या बिगड़ना है. शेयर का मूल्य गिरने से भी कंपनी को, उसकी साख गिरने के अलावा, कोई खास घाटा नहीं होता क्योंकि कंपनी को तो जो मिलना होता है वह आईपीओ में मिल चुका होता है.