Shayak Alok : रवीश कुमार पर बातें हो रही हैं .. रवीश पर तीन प्रकार की बातें हो रही हैं .. पहली बात के अंदर रवीश कुमार की फेक आईडी वगैरह बनाकर उन्हें बदनाम किया जा रहा है .. इसी बात के अंदर फिर रवीश को गाली बकी जा रही है .. रवीश कुमार दलाल है आदि .. रवीश का मानसिक शोषण ही नहीं, जान माल पर खतरे की आशंका भी .. दूसरी बात के अंतर्गत वे बातें हैं जहाँ लोग रवीश का कथित साथ दे रहे हैं .. रवीश को महान, एकमात्र ईमानदार, एकमात्र निर्भीक पत्रकार आदि कहकर लोग साथ दे रहे हैं .. रवीश कुमार मत घबराना – तेरे पीछे अंधा काना ..
कुछ साल पहले रवीश को गोयनका पुरस्कार मिला था .. मुझे ख्याल है कि उनके किसी प्रशंसक ने स्टेटस लिखा था कि रवीश को पुरस्कार मिलने से यह पुरस्कार पुरस्कृत हो गया .. मैंने कहा था कि शर्म करो और सुधर जाओ .. तीसरी बात के अंतर्गत कुछ छिटपुट बातें हो रही हैं और उसी के अंदर एक बात मैं जोड़ रहा हूँ .. रवीश कुमार को दोनों प्रकार के भक्तों से बचाने की जरुरत है .. एक प्रकार के भक्त रवीश पर हमले जारी रखे हैं तो दूसरे प्रकार के भक्त (रवीश के भक्त) जिस स्वर में उनके साथ खड़े हो रहे हैं वह रवीश की स्थिति को हास्यास्पद बनाता है .. वह सूत्र देता है कि भक्ति किस प्रकार हमेशा संवाद को संक्रमित बनाता है ..
रवीश कुमार की सफलता क्या है ? रवीश की सफलता यह है कि वे लाउड नहीं हैं (अर्णव को याद कीजिये .. अर्णव को किसी भी पार्टी का दलाल नहीं कहा जा सकता और टाइम्स नाउ ने कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर नेतृत्वकारी संवाद किया है .. किन्तु हम अर्णव पर हँसते रहे हैं .. क्यों .. उनकी लाउडनेस के कारण .. वे हमेशा पत्रकार की खोल से बाहर निकल खुद को एक पार्टी बना लेते हैं और अपने संवाद एजेंडा को सबसे भारी बना देते हैं) .. रवीश की सफलता यह भी कि वे बिलो-टोन नहीं हैं (रजत शर्मा को याद कीजिये और हँस लीजिये .. ) ..
कुछ साल पहले मैं हमारे कस्बे में आई बाढ़ की रिपोर्टिंग कर रहा था .. एक पत्रकार मित्र ने उल्लास या व्यंग्य से कहा कि आज तो आपने ‘रवीश की रिपोर्ट’ ही बना दी .. मैंने कहा कि नहीं, यह रवीश की रिपोर्ट नहीं शायक की रिपोर्ट ही बननी है अंत में जाकर .. क्यों .. क्योंकि रिपोर्ट के बाद फिर मैं जिलाधिकारी से जाकर मिला और जो समस्याएं मैंने अपनी रिपोर्ट में उठाई थी उसका समाधान करवा दिया .. पानी में घिरे परिवारों को निकलवाने की व्यवस्था करवा दी और आवागमन के लिए कुछ नावें दिलवा दी .. रवीश की रिपोर्ट अपने अंतिम अंजाम में हमेशा चूकती रही थी .. कहा तो बहुत कुछ पर आखिर कहा क्या .. कापासेड़ा और जीबी रोड पर हुए संवाद का आखिरी रिजल्ट क्या रहा .. कुछ नहीं .. हालांकि रवीश खुद स्वीकार करते भी हैं अपनी सीमाओं को .. उनका कोई साक्षात्कार देखा था मैंने .. मधु जी (सरनेम भूल रहा हूँ .. वे इण्डिया टुडे वाले पूरी जी, जिनका फर्स्ट नेम अभी भूल रहा हूँ, की बहन हैं) से उस संवाद में रवीश ने अपनी सीमाओं को बेबाकी से स्वीकार किया) ..
रवीश की पत्रकारिता की एक सफलता मैं यह भी मानता हूँ कि कई बार वे ले-मेन की तरह सवाल पूछते हैं .. वे अपना दृष्टिकोण आरोपित नहीं करते और उन मासूम सवालों के जवाब मांगते हैं जो आम जन-मन में उठता व घुमरता है .. इस प्रकार किसी भारी स्थापनाओं व संवादों की आड़ में मासूम प्रश्नों की उपेक्षा नहीं होती .. तो रवीश की उपस्थिति को दर्ज कीजिये कि वह इलेक्ट्रोनिक मीडिया में आम जन-मन के प्रतिनिधि भी हो उठते हैं कई बार ..
रवीश पूछते हैं किरण बेदी से कि क्या सच में इंदिरा गांधी की कार आपने उठवाई थी .. यह फैक्ट वर्षों में चर्चा में था लेकिन रवीश ही यह सवाल पूछते हैं और मौके पर पूछते हैं .. यह है एक पत्रकार का प्रत्युत्पन्नमतित्व और यह रवीश की सफलता है ..
रवीश में और उनकी पत्रकारिता में, उनकी समझ में, उनके दृष्टिकोण में हजार दोष भी ढूंढें जा सकते हैं .. मुझे उनका एक प्राइम टाइम याद आ रहा है जो लोकसभा चुनाव के दौरान चर्चित हिटलर और हिटलरशाही शब्द प्रयोग पर था .. प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल बेहद आसान भाषा में कहते रहे कि हिटलर और हिटलरशाही का परिप्रेक्ष्य तत्कालीन जर्मनी व यूरोप में नहीं बल्कि समकालीन प्रवृतियों व कार्यकरण में संकेतक रूप में देखिए .. किन्तु अपने चिरपरिचित ‘हल्के’ तरीके से रवीश ने उसे तनु कर दिया .. रवीश कुमार में इस अंतर्दृष्टि की कमी है कि हम किसी को गांधी या किसी तरीके को गांधी का तरीका कहते हैं तो उसका आकलन गांधी के समय में लौट कर नहीं बल्कि समकालीन मानदंडों पर करते हैं .. मैंने एक बार कहा था कि शर्मीला चानू का आंदोलन एक चूका हुआ आंदोलन है और यह गांधी का तरीका बिल्कुल नहीं है (शर्मीला ने खुद बयान दिया था कि वे गांधी के तरीके से आंदोलन कर रही हैं) क्योंकि इसमें आंदोलन वाली रचनात्मकता नहीं है (ज्ञात हो कि गांधी के आंदोलन का महत्त्व ही उसकी रचनात्मकता के कारण है) तो कई बौद्धिकों ने मेरा विरोध किया था .. यह उनकी अंतर्दृष्टि व समझ की चूक थी ..
बहिरकैफ़ (यह नया शब्द सीखा है मैंने इन दिनों जिसका आविष्कार नील शराबी ने किया है), कस्बे पर छपी रवीश कुमार की चिट्ठी के आलोक में हमारा बौद्धिक पक्ष निश्चय ही रवीश के साथ खड़ा है .. वह चिट्ठी एक संवाद मांगती है हम सब से .. उस चिट्ठी में रवीश अपने हमलावरों से जितना संबोधित नहीं हैं उससे ज्यादा हम लोगों से हैं .. हमें उन्हें आश्वस्ति देनी होगी कि हम तुम्हारे साथ खड़े हैं ..
मैं रवीश कुमार के साथ उनके पक्ष में उतना नहीं खड़ा हूँ जितना उन प्रवृतियों व कार्यकरण के विरुद्ध खड़ा हूँ जो धारा विशेष के प्रभाव में एक ओर इस देश की अलहदा आवाजों की हत्याएं करा रहा है तो दूसरी ओर हत्या करने व पागल कर देने की साजिशें भी रच रहा है ..
पत्रकार और कवि शायक आलोक के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं…
Yashwant Singh : अच्छा लिखा। बेहतरीन। लेकिन भाई उन समस्याओं का हल कोई कैसे करा सकता है जो सिस्टम की उपज हैं। जैसे शहरीकरण। जैसे विस्थापन। इनका हल कोई शायक भी अपनी स्टोरी के माध्यम से नहीं करा सकता। वेश्यावृत्ति का हल भी आप किसी एक शहर से वेश्याओं को भगा के करा सकते हैं, पर इससे समस्या ख़त्म नहीं होती।
Shayak Alok : निश्चय ही .. पत्रकारिता में भी संवाद करने व समाधान पाने की अपनी सीमा होती है .. मैंने एक रिपोर्ट बनाई थी आंबेडकर आवास पर .. पर वहां कोई समाधान नहीं करा सका क्योंकि एजेंसी ब्लैक लिस्टेड हो गई थी जबकि दूसरी ओर सरकार ने शहरी सौन्दर्यीकरण योजना लाकर पुरानी योजना का विलोप उसमें कर दिया था.. तो मैंने उन गरीबों को खड़ा किया मेरे साथ और बस रिपोर्ट कर दी कि यह समस्या है, इसका समाधान नहीं दिख रहा तो दर्शकों आइये हमलोग समवेत प्रार्थना करें कि धूप मद्धम पड़े इस मोहल्ले पर और बारिश हिसाब से हो .. व्यंग्य और खीज ही बची थी मेरे पास ..
नबीन कुमार : पत्रकार का कार्य समस्यायो का निवारण नहीं, समस्याओं को सही और उचित तरिके से प्रस्तुति है जिसपर सिस्टम और उस सिस्टम से जुड़े हर विभाग लोग सक्रिय हो सके और जनता को भी अपनी जिम्मेवारियों, अधिकारो का बोध हो। आप जिलाधिकारी से मिल के किसी समस्या को सुलझा देते है तो यह आपके भीत सामाजिक सुधार के लिये बेचैन सोच और विचारो का परिणाम है जो आपके पत्रकारिता पर हावी है। हम रवीश कि आलोचना उनके शैली या मुद्दे की वजह से कभी नही किये क्योकि उनके दो अचुक हंथियार है एक है उनकी शैली और दुसरा मुद्दो का चयन , यानि कि यह दुनो उनके मजबुत प्वाईंट है। लेकिन हमने रवीश की आलोचना क्षेत्रीय भेदभाव के लिये की है। वे बिहार और बिहारियो को कई बार हुबहू जस के तस प्रस्तुत कर देते है लेकिन उसी समय मे अन्य क्षेत्रो के जड़ तक नही पहुंच पाते। संभव है बिहारी होना यहा कारक हो फिर भी। चुकि गालीबाजो से धमकी देने वालो से मेरा लगभग रोज का सामना होता है इसलिये हम रवीश का ही नही हर उस व्यक्ति का समर्थन करेंगे जो इन गारीबाजों के खिलाफ में है।
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Kamleh
September 19, 2015 at 12:27 pm
pakhandi hai ye bhai log