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सुख-दुख

योगी राज में मजदूरों का अब भरपूर शोषण होगा, तीन साल के लिए श्रम कानूनों पर रोक!

नमस्कार साथियों,

आज अजीब सी खबरें मिल रही हैं. ऐसा लग रहा है 100 साल पहले जिस प्रकार मजदूरों को पूरी दुनिया में आंदोलन के लिए मजबूर किया गया था, उन हालात से भी ज्यादा खराब स्थिति यूपी में मजदूरों की कर दी जा रही है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सरकारों ने श्रम कानूनों का निलंबन किया है. इससे श्रमिकों की स्थिति बंधुआ मजदूरों से भी बदतर होने वाली है.

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जो लोग फैक्ट्री और अन्य व्यवसाय प्रतिष्ठानों (जैसे रिटेल स्टोर, निजी मोबाइल कंपनियां, निजी बीमा कंपनियां, निजी बैंक, होटल आदि) में काम करते हैं, उनके लिए श्रम कानून खत्म किया जाना खतरे की घंटी है.

अभिषेक जैन
सोशल एक्टिविस्ट
मुजफ्फरनगर

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श्रम कानूनों पर रोक के अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट जायेगा वर्कर्स फ्रंट

प्रदेश में सरकार द्वारा श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए लगाई रोक औद्योगिक विकास को अवरूद्ध कर देगी और इससे निवेशक भी निवेश करने से बचेंगे। दरअसल श्रम कानूनों द्वारा श्रमिकों को मिले अधिकारों के कारण उनका विश्वास व्यवस्था में बहाल रहता था और श्रम विभाग द्वारा विवाद उत्पन्न होने पर हस्तक्षेप करने से बेहतर उत्पादन के लिए अनिवार्य शर्त औद्योगिक शांति कायम रहती थी। सरकार द्वारा कानूनों को खत्म करने से औद्योगिक विवाद बढ़ेंगे और मालिकों के लिए भी बड़ा खतरा उत्पन्न होगा। इसलिए सरकार को इस मजदूर विरोधी, उद्योग विरोधी अध्यादेश को तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए और यदि सरकार वापस नहीं लेती तो इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जायेगा। यह प्रतिक्रिया वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में दी।

उन्होंने इस फैसले की तीखी निंदा करते हुए कहा कि सरकार ने यहां तक कर दिया कि अब श्रमिक उत्पीड़न पर श्रम विभाग एक अदद नोटिस तक किसी मालिक को नहीं देगा और किसी कारखाने का निरीक्षण नहीं करेगा। यह श्रमिकों को मालिकों का बंधुआ मजदूर बना देना है। वैसे तो नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों के लागू करने के बाद से ही श्रम कानूनों को कमजोर किया जा रहा है। अब तो वह हाथी के दिखाने वाले दांत ही रह गए थे उसे भी योगी सरकार ने उखाड़ दिया।

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उन्होंने प्रवासी मजदूर को रोजगार देने के नाम पर इसे लागू करने के सरकार के तर्क को प्रवासी मजदूरों के साथ भद्दा मजाक कहा। प्रदेश का सच यह है कि सरकार फर्जी आकंडेबाजी करने में लगी है। गुजरात से लाखों रूपया खर्च कर आ रहे श्रमिकों को गुजरात की कारपोरेट लाबी के दबाव में मध्यप्रदेश से इस सरकार के आदेश पर वापस कर दिया गया। सरकार ने अभी महज उन्हीं मजदूरों को उनसे किराया वसूल कर लाया है जो अन्य प्रदेशों में क्वारनटांइन सेटंरों में थे। अभी भी जो मजदूर बाहर हैं उनके खाने तक का इंतजाम नहीं हो रहा है। प्रवासी मजदूरों को लाने की कोई व्यवस्थित नीति तक सरकार के पास नहीं है। जो मजदूर प्रदेश में आ गए हैं उनके लिए बने क्रोनटांइन सेंटरों को बंद किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि निवेश आकर्षित करने और कोरोना महामारी के दौरान बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित करने का सरकार का तर्क भी सही नहीं है। सभी लोग जानते है कि पिछले पंद्रह साल से प्रदेश में रही हर सरकार ने हर साल इंवेस्टर्स समिट करके निवेश आकर्षित करने का प्रयास किया लेकिन प्रदेश में कोई नया निवेश नहीं हुआ। तीन साल बिता चुकी इस सरकार से प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि आखिर इनके कार्यकाल में कितना निवेश हुआ। वास्तविकता तो यह है कि कई ईकाइयां खराब कानून व्यवस्था के कारण प्रदेश से चली गयीं। उन्होंने कहा कि इस काले अध्यादेश के खिलाफ मजदूरों में सोशल मीडिया के जरिए मुख्यमंत्री को पत्र भेजने का अभियान चलाया जायेगा और सहमना संगठनों के साथ व्यापक मंच तैयार कर सरकार को इसे वापस लेने के लिए बाध्य किया जायेगा।

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