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सुख-दुख

जो लोग पत्रकारिता छोड़कर खेती करना चाहते हों, उनके लिए एक जरूरी सूचना…

Yashwant Singh : मेरे पास एक मेल आई है. खेती-किसानी से संबंधित. कई दिनों से इसे न तो डिलीट कर पा रहा और न ही भड़ास पर लगा पा रहा क्योंकि भड़ास तो मीडिया से संबंधित खबरों का पोर्टल है. डिलीट इसलिए नहीं कर पा रहा क्योंकि मेरे भीतर भी एक किसान है और चाहता है कि ये नई चीजें सीखी जाएं. काफी समय से सोच रहा हूं कि क्यों न गांव पर चलकर हर्बल फार्मिंग की तरफ कदम बढ़ाया जाए ताकि पैसे भी बन सकें और खेती-किसानी से जुड़े रहने का सुख भी मिले. तो इसी इच्छा के कारण इस मेल को पढ़ने के बाद भी डिलीट न कर पाया, सोचता रहा कि इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए ताकि मेरे जैसे जो नए व प्रगतिशील किसान बनने को इच्छुक हों, उन्हें फायदा मिल सके. जिन लोगों का पत्रकारिता से मोहभंग हो गया हो और वे गांव जाकर कुछ करना चाहते हों तो ऐसे पत्रकारों के लिए भी यह प्रशिक्षण शिविर काफी लाभदायक हो सकता है…तो लीजिए, खेती किसानी से संबंधित मेल का कंटेंट यहीं फेसबुक पर डाल दे रहा हूं…

<p>Yashwant Singh : मेरे पास एक मेल आई है. खेती-किसानी से संबंधित. कई दिनों से इसे न तो डिलीट कर पा रहा और न ही भड़ास पर लगा पा रहा क्योंकि भड़ास तो मीडिया से संबंधित खबरों का पोर्टल है. डिलीट इसलिए नहीं कर पा रहा क्योंकि मेरे भीतर भी एक किसान है और चाहता है कि ये नई चीजें सीखी जाएं. काफी समय से सोच रहा हूं कि क्यों न गांव पर चलकर हर्बल फार्मिंग की तरफ कदम बढ़ाया जाए ताकि पैसे भी बन सकें और खेती-किसानी से जुड़े रहने का सुख भी मिले. तो इसी इच्छा के कारण इस मेल को पढ़ने के बाद भी डिलीट न कर पाया, सोचता रहा कि इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए ताकि मेरे जैसे जो नए व प्रगतिशील किसान बनने को इच्छुक हों, उन्हें फायदा मिल सके. जिन लोगों का पत्रकारिता से मोहभंग हो गया हो और वे गांव जाकर कुछ करना चाहते हों तो ऐसे पत्रकारों के लिए भी यह प्रशिक्षण शिविर काफी लाभदायक हो सकता है...तो लीजिए, खेती किसानी से संबंधित मेल का कंटेंट यहीं फेसबुक पर डाल दे रहा हूं... </p>

Yashwant Singh : मेरे पास एक मेल आई है. खेती-किसानी से संबंधित. कई दिनों से इसे न तो डिलीट कर पा रहा और न ही भड़ास पर लगा पा रहा क्योंकि भड़ास तो मीडिया से संबंधित खबरों का पोर्टल है. डिलीट इसलिए नहीं कर पा रहा क्योंकि मेरे भीतर भी एक किसान है और चाहता है कि ये नई चीजें सीखी जाएं. काफी समय से सोच रहा हूं कि क्यों न गांव पर चलकर हर्बल फार्मिंग की तरफ कदम बढ़ाया जाए ताकि पैसे भी बन सकें और खेती-किसानी से जुड़े रहने का सुख भी मिले. तो इसी इच्छा के कारण इस मेल को पढ़ने के बाद भी डिलीट न कर पाया, सोचता रहा कि इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए ताकि मेरे जैसे जो नए व प्रगतिशील किसान बनने को इच्छुक हों, उन्हें फायदा मिल सके. जिन लोगों का पत्रकारिता से मोहभंग हो गया हो और वे गांव जाकर कुछ करना चाहते हों तो ऐसे पत्रकारों के लिए भी यह प्रशिक्षण शिविर काफी लाभदायक हो सकता है…तो लीजिए, खेती किसानी से संबंधित मेल का कंटेंट यहीं फेसबुक पर डाल दे रहा हूं…

बनारस में ‘शून्य लागत, विष मुक्त प्राकृतिक खेती’ पर 5 दिनी प्रशिक्षण 15 -19 अक्टूबर को

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वाराणसी : ‘शून्य लागत, विष मुक्त प्राकृतिक खेती’ की विधा का 5 दिवसीय प्रशिक्षण 15-19 अक्टूबर २०१४ को वाराणसी जनपद के चौबेपुर स्थित संकट मोचन महाविद्यालय में आयोजित किया जा रहा है. इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य किसानों को विषमुक्त खेती की तरफ वापस लाना और पर्यावरण अनुकूल खेती की तरफ प्रेरित करना है. शून्य लागत प्राकृतिक खेती अभियान के संयोजक प्रो सोमनाथ त्रिपाठी और संरक्षक रामधीरज भाई हैं. इनके नेतृत्व में अभियान के सक्रिय सदस्यों ने विगत दो दिनों में बनारस के चोलापुर और चिरईगांव विकासखंड के अनेक गांवों में जनसंपर्क किया और किसानों को इस विधा के बारे में बताया तथा प्रशिक्षण में सम्मिलित होने हेतु प्रेरित किया. उक्त प्रशिक्षण में शून्य लागत प्राकृतिक खेती की विधा के प्रणेता और महान किसान वैज्ञानिक श्री सुभाष पालेकर जी द्वारा किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा. भंदहाकला, कैथी, राजवारी, बहादुर पुर, बहरामपुर, धौरहरा और भगवानपुर आदि गांवों के किसान उक्त प्रशिक्षण के प्रति काफी जिज्ञासु हैं. 5 दिवसीय प्रशिक्षण में कई जिलों के लगभग 600 किसानो के सम्मिलित होने की सम्भावना है. जनसंपर्क अभियान में डा आनंद प्रकाश तिवारी, वल्लभाचार्य पाण्डेय, गिरसंत कुमार, अभिषेक, दीन दयाल सिंह, प्रदीप सिंह, रमेश यादव, जागृति राही, हरिशंकर सिंह किसान आदि सक्रिय हैं. कार्यक्रम के संयोजक प्रो.सोमनाथ त्रिपाठी हैं.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. Dev

    December 15, 2014 at 12:12 pm

    Aapki सोच कि तारीफ़ करता हु

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