Chandra Bhushan : खुदकुशी रोकने की दवाई… पिछली सदी में आत्महत्या को एक दार्शनिक समस्या कहा गया, लेकिन बाद में इस प्रवृत्ति को मनोरोग के दायरे में लेते हुए इसके निदान की कोशिशें भी हुईं। समस्या यह है कि किसी मरीज में इस तरह का रुझान देखे जाने पर इसकी वजह के रूप में कोई अकेली दिमागी बीमारी पकड़ में नहीं आती। खुदकुशी की प्रवृत्ति गहरे डिप्रेशन की स्थिति में देखी जाती है तो बाइपोलर डिसऑर्डर, शिजोफ्रेनिया, कोई बड़ा मानसिक आघात, बचपन की कोई उथल-पुथल और जब-तब कोई आनुवंशिक बीमारी भी इसकी वजह बन जाती है।
मनोचिकित्सा (सायक्याट्री) की दृष्टि से ये एक-दूसरे से काफी दूर की समस्याएं हैं और इनका लाइन ऑफ ट्रीटमेंट भी बहुत अलग है। इससे भी बड़ी परेशानी यह कि सारे इलाज आजमा लेने के बाद भी मरीज की आत्महत्यारी प्रवृत्ति अपनी जगह बनी रह जाती है। शायद इसकी वजह इंसान में अपने होने के बोध का ही कमजोर पड़ जाना है। लेकिन यह बोध दिमाग में ठीक-ठीक किस जगह, किन रसायनों की कैसी गति से आता-जाता है, यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है।
खुशी की बात है कि अमेरिका में दवा के जरिये आत्महत्या की प्रवृत्ति से निजात पाने का भरोसेमंद रास्ता खोज लिया गया है और जल्द ही यह दवा बाजार में आने वाली है। कम लोग जानते होंगे कि आत्महत्याएं अमेरिका में किसी महामारी जैसी शक्ल ले चुकी हैं। 10 से 39 साल की प्राइम कामकाजी उम्र में होने वाली मौतों में एक्सिडेंट के बाद दूसरी बड़ी वजह यही है।
1999 से 2016 तक के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक खुदकुशी की तादाद वहां इस अवधि में 30 फीसदी बढ़ गई। सबसे ज्यादा यह इराक और अफगानिस्तान से लौटे सैनिकों में देखी जा रही है, जिनमें आत्महत्या का प्रतिशत बाकी नागरिकों का डेढ़ गुना है। अजीब बात है कि जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा बाजार में लाई जा रही यह दवा खतरनाक पार्टी ड्रग कीटामाइन पर आधारित है और इसके करीबी रसायन एस्केटामाइन के बहुत ही हल्के डोज से बनाई गई है।
नवभारत टाइम्स में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभूषण के उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं…
Vivek Shukla शानदार, मैं कुछ परिवारों को जानता हूं जहां एक से अधिक लोगों ने आत्म हत्या की है ।
Chandra Bhushan अबतक सारा जोर इस तरफ ले जाने वाले कारणों पर रहा है। बीमारी की तरह इसे बमुश्किल 25 साल से देखा जा रहा है, वह भी बड़े फंड के साथ सिर्फ अमेरिका में!
Vivek Shukla मेरा एक दोस्त था संजय खन्ना। पटेल नगर में रहता था। धनी परिवार का लड़का। सफल बिज़नेस। एक दिन मिला और तीन बाद आत्म हत्या कर लेता है। क्या वजह रही होगी।
Chandra Bhushan निश्चित रूप से कोई ड्राइविंग फैक्टर रहा होगा, लेकिन बिल्कुल सम्भव है कि कोई और उससे बिल्कुल अलग नतीजे या फैसले पर पहुंचता। इस प्रवृत्ति की दवा उपलब्ध हो, तो भी मरीज को इलाज का समय मिलेगा या नहीं, कौन जानता है? यह सवाल मेरे दिल के कितने करीब है, आप जानते हैं Vivek भाई।
Vivek Shukla : भाई, मुझे पता है। करीब ही रहेगा।
Anupam Pachauri डिप्रेशन की दवाओं का एक साइड इफ़ेक्ट आत्महत्या भी है। जैसा आपने कहा भी है कि इस प्रवृत्ति के अनेक कारण हैं। लेकिन एक ड्रग ही इसका इलाज कर देगी, अजीब लगता है। कल्ट, और धर्म के प्रभाव में सामूहिक आत्महत्याओं की टेंडेंसी समाज में बढ़ेगी तो ड्रग कुछ न कर सकेगी। वैसे आत्महत्या के बारे में सभी मनुष्य शायद जीवन में एक बार तो ज़रूर ही सोचते होंगे लेकिन आत्महंता नहीं होते। हमारी व्यक्तिगत प्रवृत्तियां भी तो कुछ हद तक हमारी सामाजिक प्रवृत्तियों का एक्सटेंशन या उनका परिणाम हैं। समाज बदलने से आसान है, व्यक्ति को एक गोली दे देना जिसे खा कर उसे लगने लगे कि अच्छे दिन आ गए हैं।
Chandra Bhushan मैं इस विमर्श से परिचित हूं। कारणों पर तो समाज को ही कुछ करना होगा। लेकिन समाज को ज्यादा एक्सीडेंट की वजहों पर भी कुछ करना है। मेडिकल साइंस का काम इंसान या जानवर को नुकसान हो जाने के बाद शुरू होता है। जैसे डॉक्टर पूरे समाज का काम नहीं सम्भाल सकता, वैसे ही पूरा समाज भी डॉक्टर का काम नहीं सम्भाल सकता।