Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पिता टिहरी राजा के दरबार में कोतवाल और बेटा अखबारों में राजा के खिलाफ खबरें लिखे!

सुशील बहुगुणा-

एक हिमनद बिछड़ गया… सुंदरलाल बहुगुणा के देह त्यागने के साथ ही आज जैसे एक हिमयुग का अंत हो गया. लेकिन वास्तव में देह तो उन्होंने दशकों पहले तब ही त्याग दी थी जब हिमालय और नदियों की अक्षुण्णता बनाए रखने और बांधों से उन्हें न जकड़ने की मांग को लेकर उन्होंने लंबे सत्याग्रह और उपवास किए. प्रकृति की ख़ातिर तभी वो विदेह हो चुके थे. अपने शरीर को कष्ट दे ये समझाने की कोशिश करते रहे कि कुदरत का कष्ट कहीं ज़्यादा बड़ा है, उसे जल्द समझा जाना चाहिए.

Advertisement. Scroll to continue reading.

पर्यावरण के क्षेत्र में वो एक व्यक्ति नहीं बल्कि विश्वव्यापी विचार बन चुके थे जिन्हें सात समंदर पार के देशों की सरकारों और लोगों ने तो समझा लेकिन दूरदृष्टि दोष से ग्रस्त हमारी बौनी सरकारें देखने और समझने से इनकार करती रहीं. हमारे कारोबारियों, नेताओं, अफ़सरों और ठेकेदारों की चौकड़ी का ईमान इतना गिरा हुआ रहा कि वो सच को सामने देख भी उससे मुंह फेरते रहे. नतीजा सुंदरलाल बहुगुणा ने जो आगाह किया वो सामने दिखने लगा. हिमालयी क्षेत्रों में आए दिन आ रही विपदाएं उनकी दी हुई समझदारी से नज़र फेरने का ही नतीजा हैं.

जिस टिहरी राजशाही के विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा ने अपनी जवानी लुटाई उसी को शरण देने वाली ऐतिहासिक टिहरी को बचाने के लिए अपने जीवन का उत्तरार्द्ध न्योछावर कर दिया. गांधीजी के नेतृत्व में आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के दौरान जो संस्कार उनके भीतर पनपे वो ताज़िंदगी उन्हें आगे का रास्ता दिखाते रहे और नई पीढ़ी की रोशनी बने. लेकिन ये रोशनी थामने वाले हाथ शायद अभी उतने ताक़तवर नहीं हो पाए कि सरकारों की आंखों के आगे उजाला कर सकें.

सरकारों ने अगर सुंदरलाल बहुगुणा की बात सुन ली होती तो ऐतिहासिक टिहरी तो बच ही गया होता भागीरथी और भिलंगना नदियों का मीलों लंबा विस्तार आज भी कलकल बहती हिम धाराओं से सराबोर होता. लेकिन आज वहां एक ठहरी हुई झील की सड़ांध है जिसके नीचे कितनी ही यादों ने समाधि ले ली, कितने ही सपनों की बलि चढ़ गई. ख़़ूबसूरत गांव-खेत डूब गए, ज़िंदगी की किलकारियों से गूंजता ऐतिहासिक शहर गुम हो गया. मिला क्या बमुश्किल 700 से 800 मेगावॉट बिजली, उसमें भी उनका हिस्सा नहीं जिन्होंने इस बांध के लिए अपना सब कुछ गंवा दिया. टिहरी का एक बड़ा इलाका नीचे बड़ी झील के बावजूद ऊपर पानी की बूंद-बूंद को तरसता है. क्या यही सरकारों का विकास है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुंदरलाल बहुगुणा पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों का आलिंगन करने वाली पीढ़ी के एक नायक थे. गौरा देवी, चंडीप्रसाद भट्ट जैसे चिपको आंदोलन के प्रणेताओं में से एक. एक पत्रकार के तौर पर उन्होंने अपनी बातों को समझाने का हुनर भी संवारा था. जिस बात को कहने के लिए कई वैज्ञानिक लंबे-लंबे शोधग्रंथों का सहारा लेते हों, जटिल शब्दों से भरी भाषा इस्तेमाल करते हों उस बात को वो बड़े आसान शब्दों में जनता को समझाते रहे जैसे

क्या हैं जंगल के उपहार
मिट्टी-पानी और बयार
मिट्टी-पानी और बयार
ये हैं जीवन के आधार

Advertisement. Scroll to continue reading.

या फिर

Ecology is permanent Economy

Advertisement. Scroll to continue reading.

या फिर ये सूत्रवाक्य

धार एंच पाणी ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला

Advertisement. Scroll to continue reading.

(ऊंचाई से पानी को ढाल पर डालो और झरने-झरने पर बिजली बनाओ)

यही तो वो छोटे-छोटे Run of the river project हैं जिन्हें अपनाने को वो लगातार कहते रहे. नदियों को बड़े-बड़े बांधों में बांधने की सोच का विरोध करते रहे. लेकिन सरकारों की Think Big जैसी छोटी सोच के आगे ऐसी समझदारी को कोई तवज्जो नहीं दी गई. मंत्रियों, अफ़सरों, ठेकेदारों ने बड़ा सोचा इसलिए उन्हें भी बड़ा हिस्सा मिला और ये बदस्तूर अब भी जारी है. हिमालय की छाती मशीनों से घायल हो रही है और नदियां बांधों में फंसी रो रही हैं. बड़ा करने की बड़ी मूर्खता ने क़ुदरत का कितना बड़ा नुक़सान कर दिया ये दोहराने की ज़रूरत नहीं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

आज हिमालय को देखने का एक ख़ूबसूरत नज़रिया चला गया, उम्मीद करें कि वो नज़रिया जाने से पहले हमारी आंखों में अपनी कुछ चमक छोड़ गया हो. प्रकृति को देखने का हमारा नज़रिया कुछ बेहतर कर गया हो. हिमालय से बिछड़े इस विराट हिमनद को सलाम.


इन्द्रेश मैखुरी-

Advertisement. Scroll to continue reading.

पर्यावरण, मिट्टी, पानी, हवा के लिए संघर्ष करने वाले सुंदर लाल बहुगुणा जी को 94 वर्ष में एक वैश्विक महामारी से संघर्ष करना पड़ा. उनकी अन्य लड़ाइयों से यह लड़ाई इस मायने में भिन्न हो गयी है कि अन्य संघर्षों में वे जीते या हारे पर लड़ाई के सबक के साथ वे हमारे बीच होते थे. इस लड़ाई के बाद वे हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा हो गए हैं.
सुंदरलाल बहुगुणा जी पर्यावरण के लिए समर्पित होने से पहले स्वतंत्रता सेनानी थे. और स्वतंत्रता सेनानी भी कैसे थे वे? गज़ब.

वे जिस टिहरी में पैदा हुए वो टिहरी तो राजा की रियासत थी. राजाओं के अत्याचार जो हर रियासत की पहचान होती थी। टिहरी की राज शाही भी वैसी ही क्रूर और ज़ालिम थी. श्रीदेव सुमन जेल में अनशन करते हुए शहीद हो गए, टिहरी राजशाही के खिलाफ. अंततः कॉमरेड नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत के बाद 1948 में राजशाही का खात्मा हुआ.

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस टिहरी राजशाही में न बोलने की आजादी थी, न संगठित होने की आजादी और न लिखने की.

टिहरी राजशाही के जुल्म-ओ-सितम को दुनिया के सामने उजागर करने का काम सुंदरलाल बहुगुणा जी ने किया. वे प्रताप हाई स्कूल में पढ़ते थे. उस समय टिहरी राज के दमन-अत्याचार की कहानी उन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्रों को लिख भेजी. उनके लिखे से देश ने जाना कि टिहरी में राजशाही ने लोगों पर कैसा कहर बरपा रखा है. राजा को जब पता चला कि उसके विरुद्ध देश के अखबारों में छप रहा है तो लिखने वाले की ढूंढ-खोज शुरू हुई. तब पता चला कि लिखने वाला हाई स्कूल में पढ़ने वाला विद्यार्थी सुंदर लाल है. और कौन है सुंदर लाल, तो मालूम पड़ा कि टिहरी राजा के कोतवाल अंबादत्त बहुगुणा का बेटा है सुंदर लाल. इसलिए पहले लिखा कि सुंदर लाल जी गज़ब स्वतंत्रता सेनानी रहे.

Advertisement. Scroll to continue reading.

पिता टिहरी राजा के दरबार में कोतवाल और बेटा अखबारों में राजा के खिलाफ खबरें लिखे तो गज़ब तो है ही! ऐसा करने की सजा जो होनी थी हुई और सजा से बहुगुणा जी डिगे नहीं.

मैंने आज से लगभग 22-23 बरस पहले एक गोष्ठी में सुंदर लाल बहुगुणा जी को देखा. तब भी उनकी उम्र 70 पार तो थी ही. वे गोष्ठी में बैठे तो हर बोलने वाले को बड़े गौर से सुनते रहे. एक मोटी नोटबुक वे हाथ में लिए हुए थे और हर बोलने वाले की बात नोट करते जाते. अध्ययनशीलता उनके व्यक्तित्व का एक अहम पहलू था.

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुंदर लाल बहुगुणा जी ने अपने जीवन में नारा दिया-
क्या हैं जंगल के उपहार
मिट्टी पानी और बयार
मिट्टी पानी और बयार
हैं जीवन के आधार

आज इस वैश्विक महामारी में हम देख रहे हैं कि प्राण वायु का संकट हमारे सामने खड़ा है. जाहिर सी बात है कि बहुगुणा जी के नारे में दिये इस सबक को हमें याद रखने की जरूरत है,बार-बार दोहराने की जरूरत है,विकास के नाम पर जंगलों का कत्लेआम करने वालों के बहरे कानों में गुंजा देने की जरूरत है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मिट्टी, पानी, बयार बचाने की लड़ाई के योद्धा के मिट्टी, पानी, बयार में विलीन हो जाने पर नमन, श्रद्धांजलि.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement