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सियासत

इसीलिए तो ये PRESSTITUTE कहलाते हैं… फिर सारे क्यूं दिल पर ले रहे हैं…

Rajat Amarnath : जब पत्रकार कलम के ज़रिऐ चैनल के अख़बार के मालिक बन जाते हैं और दो नंबर का धंधा करने वाले मालिक अपना धंधा बचाने के लिऐ पत्रकार बन जाते हैं (वो भी शामिल हैं जो जोड़तोड से सरकार का गुणगान करके इनाम लेते हैं) तभी वो “PRESSTITUTE” कहलाते हैं. सारे क्यूं दिल पर ले रहे हैं.

<p>Rajat Amarnath : जब पत्रकार कलम के ज़रिऐ चैनल के अख़बार के मालिक बन जाते हैं और दो नंबर का धंधा करने वाले मालिक अपना धंधा बचाने के लिऐ पत्रकार बन जाते हैं (वो भी शामिल हैं जो जोड़तोड से सरकार का गुणगान करके इनाम लेते हैं) तभी वो "PRESSTITUTE" कहलाते हैं. सारे क्यूं दिल पर ले रहे हैं.</p>

Rajat Amarnath : जब पत्रकार कलम के ज़रिऐ चैनल के अख़बार के मालिक बन जाते हैं और दो नंबर का धंधा करने वाले मालिक अपना धंधा बचाने के लिऐ पत्रकार बन जाते हैं (वो भी शामिल हैं जो जोड़तोड से सरकार का गुणगान करके इनाम लेते हैं) तभी वो “PRESSTITUTE” कहलाते हैं. सारे क्यूं दिल पर ले रहे हैं.

 

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Vyalok Pathak : कल गया था, पत्नीजी के साथ रेफ्रिजरेटर खरीदने। अब औकात तो ग़रीब हिंदी पत्रकार की है, लेकिन दिल है नवाब साहब का। तो, पसंद आ गया, डबल डोर का बड़ा वाला फ्रिज। दाम बताए, तो होश फाख्ता। लगे दुकानदार से जुगत लगाने। भाई, कोई किस्त का जुगाड़ लगाओ। ईएमआई पर करो….। अच्छी-भली बातचीत हो गयी। लगभग मामला तय था। काग़ज वगैरह भी देखने लगा। अचानक उसने कहा, ‘अरे, आप तो पत्रकार हैं न। आपका तो फिर हो ही नहीं सकता।’ पत्नीजी ने मुझे ऐसी नज़र से देखा कि क्या बताउं, लगा कि धरती फटे औऱ मैं सीता मइया बन जाउं। मैंने मिमियाते हुए दुकानदार से कहा कि भाई मेरा कसूर क्या है, लेकिन पट्ठा भी तन ही गया। बोला, ‘अरे, पत्रकारों का कोई ठिकाना है, मैं तो मान लीजिए आपको जानता हूं तो कर भी दूं, लेकिन कंपनी वाले…..’। भाई-भाभियों, सच बताउं डेढ़ पाव खून जल गया। लगा, कि जनरल साब ने बहुत कम कहा है। ये अर्णब, बरखा, राजदीप, बाबा हाथमलन वाजपेयी, जनता के स्वयंभू पत्रकार के दिनों में यही हमारी औकात भी है। जैसा कि Shashi Shekhar जी ने कहा भी है, कुछ दिनों में कोई भी हमारा पेशा सुनेगा और चप्पल निकाल के मारने लगेगा।

Amitaabh Srivastava : कमाल ही है। सरकार गजब चीज होती है। पहले राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित कराती है ताली बजाती है फिर बाहर मंत्री जी के जरिये pressitutes कहलवा कर बेइज्जत करती है, विवाद बढ़ने पर मुंह में दही जमा लेती है यानी चुप्पी साध लेती है । ए जनरल साहब ! आप कौन से tute रहे भाई जब डेट ऑफ बर्थ के गड़बड़झाले में फंसे थे। और ऐसे आदमी को मंत्री बनाने वाले कौन से tutes के tute हैं यानी सिरमौर हैं ये भी समझ में नहीं आ रहा। बड़ा confusion है।

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Sushant Sareen : gen VK Singh has a knack for being abrasive. But what’s with the media for reacting so petulantly just because he takes a dig at them, which was both funny and naughty as well as factual. His visit to Pakistan HC was ‘more exciting’ for media than his stellar role in the rescue efforts of Indians in Yemen. Even if he hadn’t said that ‘for the media…..’ And had just said that his Pakistan HC visit was more exciting, one should have just laughed away his dig. As for presstitudes, the media knows the skeletons in its cupboard, how deals are made, how bribes are taken, how info is sold, how people are blackmailed and browbeaten, how favours are taken, how stories are killed and some of the people involved in this were on some channel today. We have radia case, cash for vote scam etc. and yet if the media is so prickly at someone calling them presstitudes then surely they are adopting a holier than thou attitude. Also remember a post by Mohan Guruswamy about his visit to the farm house of a journo at the time of the scandal hat recently broke of leaks from economic ministries. So times now not only clearly got the drift wrong, but also the wrong panel today.

Dayanand Pandey : अभी तक तो हम मीडिया को कुत्ता समझते आ रहे थे । पहले वाच डॉग के रूप में जानते थे । जल्दी ही यह अल्शेशियन में बदला फिर कई तरह के कई नस्ल में बदलता रहा । अब पूर्व सेनाध्यक्ष और विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह ने वेश्या बता दिया है मीडिया को । सैल्यूट यू जनरल वी के सिंह । इस सड़न को महसूस तो हम भी बहुत दिनों से कर रहे थे , आज आप ने इस नंगे सच को कह दिया है तो बहुत बड़ा वाला सैल्यूट ! बल्कि कई बार लगता है कि यह वेश्या शब्द भी इस मीडिया के लिए बहुत छोटा है !

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