योगी आदित्यनाथ ने बजरंग बली को लोकदेवता, वनवासी, गिरवासी, दलित और वंचित भी बताया, लेकिन मीडिया को बेचे जाने लायक ‘माल’ केवल ‘दलित’ शब्द में नजर आया…. इसके बाद शुरू हो गई पीसीआर से इस खबर और शब्द पर ‘खेलने’ की तैयारी… लखनऊ। क्या भारत का शीर्ष मीडिया पत्रकारों की बजाय मैनेजरों के हाथ में …
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रवीश कुमार ने पूछा- मीडिया क्यों सरकार से दलाली खा रहा है?
Ravish Kumar : नागरिक निहत्था होता जा रहा है…. राजस्थान के डॉक्टरों की हड़ताल की ख़बर पर देर से नज़र पड़ी। सरकार ने वादा पूरा नहीं किया है।हमने प्रयास भी किया कि किसी तरह से प्राइम टाइम का हिस्सा बना सकें। मगर हम सब ख़ुद ही अपने साथियों से बिछड़ने की उदासी से घिरे हुए थे। हर दूसरे दिन संसाधन कम होते जा रहे हैं। हम कम तो हुए ही हैं, ख़ाली भी हो गए हैं। साथियों को जाते देखना आसान नहीं था। वर्ना डॉक्टरों को इनबाक्स और व्हाट्स अप में इतने संदेश भेजने की ज़रूरत नहीं होती। आगरा से आलू किसान और दुग्ध उत्पादक भी इसी तरह परेशान हैं। दूध का दाम गिर गया है और आलू का मूल्य शून्य हो गया है। इन ख़बरों को न कर पाना गहरे अफसोस से भर देता है। कोई इंदौर से लगातार फोन कर रहा है।
बड़े मीडिया हाउसों के पास है बड़े कारपोरेट घरानों का निवेश और सरकार का समर्थन : सिद्धार्थ वरदराजन
DUJ SEMINAR ON ‘DEMOCRACY IN DANGER : UNETHICAL REPORTING / ATTACKS ON INDEPENDENT JOURNALISM AND JOURNALISTS’
In a sharp counter to the BJP Sangh Parivar’s campaign, Kerala Chief Minister Pinarayi Vijayan said the state has been targeted as it champions the values of secularism, socialism and democracy. He was speaking at a function organized by the Delhi Union of Journalists in the national capital on ‘Democracy in Danger : Unethical Reporting/ Attacks on Independent Journalism and Journalists’ on 15 October at Kerala House. The Chief Minister said slogans like ‘Love Jehad’ have been used to disrupt the state’s centuries old communal harmony but the RSS will not succeed in its game plan. He slammed several media houses for ferociously targeting Kerala and congratulated those journalists who are standing up for the truth despite pressure from employers.
बाबा की गुफा से आ रहे पैसों से अब तक मीडिया की आंख पर पट्टी बंधी हुई थी!
..पत्रकार कर रहे दो जून की रोटी का संघर्ष… लेकिन उनका दर्द किसी को नहीं दिख रहा… अगर न्यूज चैनलों के नाम ‘आया राम‘ और ‘गया राम‘ हो जाये और इनकी टैग लाइन भ्रष्टाचार, अनियमितता, ‘ब्लैक मेलिंग के बादशाह‘ या फिर ‘लूटने के लिए ही बैठे हैं’…. हो जाये तो आश्चर्य मत कीजियेगा… क्योंकि न्यूज़ चैनल इस रूप में सामने आने भी लगे हैं.. वो भी बिल्कुल कम कपड़ों के साथ, जिसमें उसका काला तन साफ नजर आ रहा है… कोई चैनल बीजेपी समर्थित तो कोई कांग्रेस, तो कोई बाबाओं की चरणों की धूल खाकर जिंदा है। सभी चैनल लगभग अपने उद्योगपति आकावों की जी हुजरी में लगे हैं।
दो मीडिया हाउसों के एचआर की कहानी- ”किसी की पैरवी है आपके पास?”
Hi all,
Although I didn’t want to share with you but now I feel it is must to share that how people from Hr Department waste job seeker candidates time. I guess they believe that they are equal to God and all job seekers are beggars.
मीडिया से सावधान रहने का वक्त आ गया है!
Dinesh Choudhary : कथित पत्रकारों के साथ लालू यादव की क्या झड़प हुई है, मुझे नहीं मालूम। लालू बहुत डिप्लोमेटिक हैं और प्रेस से भागते भी नहीं। भागने वाले तो 3 साल से भाग रहे हैं। लालू मुलायम की तरह ढुलमुल भी नहीं रहे और उनका स्टैंड हमेशा बहुत साफ़ रहा। पर थोड़ी बात आज की पत्रकारिता पर करनी है, जो बहुत थोड़ी बची हुई है।
जैन मुनि को भी झांसा देने से नहीं चूके अजमेर के फर्जी पत्रकार!
अजमेर। कभी आदर्श पत्रकारिता की पहचान रहा राजस्थान का अजमेर शहर अब पत्रकारिता के पतन का वायस बन गया है। अब यहां सिर्फ सम्बन्धों को पाला-पोसा जा रहा है। पत्रकार खुद फर्जी पत्रकारों की जमात खड़ी कर रहे हैं। बुधवार को तब हद हो गई जब प्रख्यात जैन मुनि प्रसन्न सागर महाराज ने अजमेर में मंगल प्रवेश करने के बाद प्रेस वार्ता की। बाकी पत्रकारों की तरह देश के एक बड़े अखबार का स्थानीय चीफ रिपोर्टर खुद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचा और अपने पड़ोसी (प्रोपर्टी डीलर) को भी फर्जी पत्रकार बनाकर साथ ले गया। उस रिपोर्टर ने अपने पड़ोसी को बाकायदा पत्रकार बताते हुए मुनि श्री से मिलवाया और उनसे बतौर गिफ्ट चांदी का सिक्का भी दिलवाया।
छत्तीसगढ़ में ‘देशबंधु’ के अलावा बाकी सभी अखबार हुए नपुंसक, सरकार विरोधी विज्ञापन छापने से किया इनकार, कांग्रेस ने की शिकायत
मीडिया वाले खुद भक्ति में इतने ली हो गए हैं कि उन्हें यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि वे कितने पतित होंगे. छत्तीसगढ़ में अखबार वालों ने कांग्रेस के उस विज्ञापन को ही छापने से मना कर दिया जिसमें भाजपा सरकार के शासनकाल को लेकर सवाल उठाए गए थे. सिर्फ देशबंधु अखबार ने विज्ञापन छापा. बाकी सभी अखबार नपुसंक साबित हो गए. इस प्रकरण से ये भी पता चलता है कि भाजपा सरकारें किस तरह मीडिया का मुंह बंद करते हुए गला दबाए रहती हैं. छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर अखबारों की इस भक्तिपूर्ण हरकत की शिकायत की है.
सभी चैनलों औऱ अखबारों के मालिक चोर हैं, सबके घर छापा पड़ना चाहिए!
Ramesh Chandra Rai : एनडीटीवी के मालिक के घर छापे पर हाय तौबा मची है। दरअसल सभी चैनलों औऱ अखबारों के मालिक चोर है। इसलिए सभी अखबार और चैनल मालिकों के घर छापा पड़ना चाहिए ताकि उनकी काली कमाई का पता चल सके। यह सभी पत्रकारों का उत्पीडन करते हैं। मोदी सरकार ने गलती यही की है कि एक ही घर पर छापा डलवाया है। यह पक्षपात है इसलिए हम इसकी निंदा करते हैं। सभी के यहां छापा पड़ता तो निंदा नहीं करता। दूसरी बात जितने लोग एक चैनल मालिक के यहां छापे पर चिल्ला रहे हैं वे लोग पत्रकारों के उत्पीड़न पर आज तक नहीं बोले हैं। कई पत्रकारों की हत्या कर दी गयी कई नौकरी से निकाल दिए गए औऱ उन्होंने आत्महत्या कर ली, उनका परिवार आज रोटी के लिए मारा मारा घूम रहा है लेकिन किसी ने आवाज़ नहीं उठाई। जहां तक पत्रकारिता की स्वतंत्रता की बात है तो पत्रकार नहीं बल्कि मालिक स्वतन्त्र हैं। आज पत्रकारों की औकात नही है कि मालिक की मर्जी के खिलाफ कुछ लिख सके।
बाबा रामदेव द्वारा सेना को घटिया आंवला जूस सप्लाई करने की खबर को न्यूज चैनलों ने दबा दिया
पतंजलि और बाबा रामदेव के अरबों-खरबों के विज्ञापन तले दबे मीडिया हाउसेज ने एक बड़ी खबर को दबा दिया. भारतीय सेना ने बाबा रामदेव द्वारा सप्लाई किए जा रहे आंवला को घटिया पाया है और इसकी बिक्री पर फौरन रोक लगा दी है. यह खबर दो दिन पुरानी है लेकिन इस मुद्दे पर किसी न्यूज …
मालिक के मरने पर सारे तनखइया पत्रकार मिलकर आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं!
किसी अखबार का मालिक मर जाए तो सब पत्रकार मिलकर उसकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं… तनखइया पत्रकार की मजबूरियां आप क्या जानें साहब… है तो कड़वा सच… मालिक की मौत की खबर से अख़बार रंग दिए जाते हैं और अगर अख़बार कर्मचारी-पत्रकार की मौत हो तो दो अलफ़ाज़ की श्रद्धांजलि भी उनके अख़बार में नहीं छापी जाती… अख़बार वाले का कोई कार्यक्रम हो, प्रेस की कोई बैठक हो तो जनाब अख़बार से खबर गायब रहती है…..
पेशेवर लठैत बन चुका है मीडिया
बड़े-बुजुर्ग अक्सर कहते हैं कि अंग्रेज तो चले गए लेकिन चाय छोड़ गये। इसी तरह सामंतवाद समाप्त हो गया लेकिन लठैत छोड़ गया है। ये लठैत अपने सामंत के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। आज भी लठैत हैं। बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि, मीडिया से बड़ा लठैत कौन है। हालांकि तब (1988 के आस पास) मुझे भी खराब लगता था। अब भी खराब लगता है जब मीडिया को बिकाऊ, बाजारू या दलाल कहा जाता है। माना कि देश की आजादी में मीडिया का योगदान सबसे अधिक नहीं तो सबसे कम भी नहीं था। तब अखबार से जुड़ने का मतलब आजादी की लड़ाई से जुड़ना होता था। अब देश आजाद है। मीडिया की भूमिका भी बदल गई। पहले मिशन था अब व्यवसाय हो गया है। पहले साहित्यकार व समाजसेवक अखबार निकालते थे अब बिल्डर और शराब व्यवसायी (भी) अखबार निकाल रहे हैं।
पत्रकार से लेकर संपादक तक अपने मालिकों के धंधों की रक्षा में लगे रहते हैं (संदर्भ : शरद यादव का रास में मीडिया पर भाषण)
Deshpal Singh Panwar : शरद यादव मीडिया को लेकर संसद में बोले और सच बोले। मीडिया मालिकों के हालात बेहतर से बेहतर और पत्रकारों की हालत बदतर। केवल 10 फीसदी ही बेहतर हालत में। आखिर मीडिया पूंजीपतियों का गुलाम कैसे हो गया.. इसका जवाब वही नेता दे सकते हैं जो इस समय सत्ता में हैं। याद करिए 2003 का दौर। मीडिया को गुलाम बनाने की नींव रखने वाले महाजन, जेटली और सुषमा ने विदेशी पूंजी निवेश के नाम पर मीडिया के दरवाजों पर कालिख पोत डाली थी।
पंडितों की फतवानुमा बातों पर चैनल वाले हांय हांय क्यों नहीं करते?
Mrinal Vallari : गाजियाबाद के जिस इलाके में मैं रहती हूं वहां बहुत से मंदिर हैं और बहुत से पंडी जी भी हैं। कभी-कभी इन पंडी जी की बातों को सुनने का मौका भी मिलता है। अगर लड़कियों और औरतों के बारे में इनकी बातों पर ध्यान देने लगें तब तो हो गया। जींस पहनीं मम्मियां भी मंदिर आती हैं पंडी जी की बात सुनती हैं, और जो मानना होता है उतना ही मानती हैं।
मीडिया ने बसपा और मायावती जैसी कद्दावर ताकत को चुनावी लड़ाई से बाहर कर दिया!
Ashwini Kumar Srivastava : अद्भुत है मीडिया और उसमें काम कर रहे तथाकथित पत्रकार। वरना बसपा और मायावती जैसी कद्दावर ताकत को ही इस बार के चुनाव में लड़ाई से बाहर कैसे कर देता! वैसे मुझे तो इसका कोई आश्चर्य नहीं है। क्योंकि एक दशक से भी ज्यादा वक्त तक दिल्ली और लखनऊ में देश …
मीडिया दलाल है तो क्यों?
मीडिया दलाल है… मीडिया बिका हुआ है… आज इस तरह के आरोपों से मीडिया चौतरफा घिरा हुआ है। अब तो खबरिया चैनलों के एंकर भी बहस के दौरान इस बात का उलाहना देने लगे हैं कि “आप की निगाह में हम तो दलाल हैं ही”। ऐसा नहीं कि मीडिया (अखबारों) पर पहले कभी आरोप नहीं लगे। खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का ठीकरा आज भी मीडिया पर फोड़ा जाता है और मीडिया झेलता रहा है। आज अतीत का रोना रोने का समय नहीं है। मीडिया के दलाल होने के आरोप पर तो किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाना और फरमान सुना देना संभव नहीं है फिर भी इस पर मंथन जरूरी है कि समाज के हर कोने से दलाल होने के आरोप लग रहे हैं तो क्यों?
चैनल वन न्यूज का धंधा जारी : एक-एक लाख लेकर ब्यूरो की नियुक्ति!
चण्डीगढ़। चैनल वन न्यूज आज कल पूरी तरह धंधागिरी पर उतरा हुआ है। पंजाब के चुनावों में उम्मीदवारों से पेड खबरों के बदले धन लेने के लिए जीभ लपलपाने वाले इस चैनल की असलियत कुछ यूं भी है। गुजरs 10 नवंबर, 2016 को इस चैनल ने पंजाब के लिए एक ही समय दो-दो ब्यूरो सुनील सहारण और जगरूप शेहरावत नियुक्त किये और बदले में दोनों से एक-एक लाख रूपये बतौर सिक्युरिटी लिये। चैनल ने मौखिक रूप से चण्डीगढ़ या उसके आस-पास कार्यालय लेने, कार्यालय में स्टॉफ की नियुक्ति करने, पंजाब में चैनल के प्रचार के लिए होर्डिंग लगाने और पंजाब में पांच वाहन चलाने का हुक्म भी दिया।
ये मीडिया को ‘विलेन बनाने’ का दौर है
Dilnawaz Pasha : ये मीडिया को ‘विलेन बनाने’ का दौर है. भारत में ‘प्रेस्टीट्यूट’ शब्द को स्वीकार कर लिया गया है और एक धड़ा जमकर इसका इस्तेमाल कर रहा है. सरकार ने मंत्रालयों में पत्रकारों की पहुंच कम कर दी है. यहां तक कि प्रधानमंत्री अपनी यात्राओं में पत्रकारों को साथ नहीं ले जा रहे हैं, जैसा कि पहले होता था.
यूपी में सत्ता के करीबी बड़े अफसरों में भी अंदरखाने शह-मात देने की खूब हो रही लड़ाई!
कल किसी वक्त चर्चा बहुत तेज छिड़ गई कि मुलायम सिंह यादव फिर से सीएम बनेंगे और सारे झगड़े को शांत कराएंगे तो देखते ही देखते यह खबर भी दौड़ने लगी कि मुलायम के सीएम बनने पर दीपक सिंघल तब मुख्य सचिव बनाए जाएंगे. इसके बाद तो कई बड़े अफसरों की हालत पतली होने लगी. दबंग और तेजतर्रार अफसर की छवि रखने वाले दीपक सिंघल की इमेज खराब करने के लिए कई अफसरों की टीम अलग अलग एंगल से सक्रिय हो गई.
सलमान खान पर सवाल पूछने वाले टीवी पत्रकार को जस्टिस काटजू ने जमकर हड़काया
जस्टिस मार्कंडेय काटजू इंदौर गए हुए थे. इंदौर इंस्टीट्यूट आफ लॉ में उनका कार्यक्रम था. वहां एक पत्रकार माइक कैमरा लेकर आया और उनसे पूछ बैठा कि सलमान खान ने ज्यादा शूटिंग करने के बाद रेप्ड वोमेन टाइप फील करने वाला जो बयान दिया है, उस पर आपका कहना है. इतना सुनते ही जस्टिस काटजू भड़क पड़े और कहा कि तुम्हें शर्म नहीं आती कि एक एक्टर को तुम लोग हाइलाइट कर रहे हो. देश में भुखमरी से लेकर किसान आत्महत्या और महंगाई जैसे ढेरों प्रमुख सवाल हैं जिन पर बात करनी चाहिए लेकिन ज्यादातर मीडिया वाले इन जेनुइन मु्ददों को साइडलाइन कर देते हैं.
अखिलेश यादव ने दंगाई मानसिकता वाले न्यूज चैनलों को कहा- ‘तुम्हारा मुंह काला हो!’ (देखें वीडियो)
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते देख केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने अपना दंगाई एजेंडा लागू करना शुरू कर दिया है. उसके इस काम में कुछ राष्ट्रीय और कुछ क्षेत्रीय चैनल इस हद तक सहयोग कर रहे हैं जैसे उनके मैनेजिंग एडिटर कोई और नहीं बल्कि खुद अमित शाह हों. कैराना को कश्मीर बताने दिखाने पर आमादा न्यूज चैनलों की हरकत से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बेहद नाराज दिखे. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान अपनी नाराजगी न छिपाते हुए प्रदेश में आग लगाने की फिराक में जुटे चैनलों का मुंह काला होने की बददुआ दे डाली. उन्होंने इन चैनलों को बेशर्म करार दिया.
भास्कर का संपादक निकला 100 करोड़ के फर्जी नक्शे का मास्टरमाइंड, एफआईआर दर्ज
जांच के बाद इंदौर के थाना एमजीरोड़ में दर्ज हुई 420 की एफआईआर, इंदौर यूनिट के बड़े पदों पर बैठे लोग बचाने में लगे
लगातार कई सालों से इंदौर दैनिक भास्कर के डीबी स्टार में कार्यरत मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ का संपादक मनोज बिनवाल इंदौर के 100 करोड़ रुपए के तुलसी नगर प्लाट घोटाले का मास्टर माइंड निकला। यह वही शख्स है जिसकी इस मामले में करीब आठ माह पहले मैनेजमेंट को शिकायत हुई और जांच बैठी। मगर खास बात यह है सारे सबूत होने के बाद भी इंदौर में बैठे इसके आकाओं (कल्पेश याग्निक और हेमंत शर्मा) ने तमाम प्रयास कर इसे बचा लिया। बचाने के लिए मैनेजमेंट को गलत जानकारी दी गई, क्योंकि कई मामलों में तीनों की पार्टनशिप जगजाहिर है।
पांच साल बाद हर पत्रकार अंबानी की मुट्ठी में… सुनिये सम्मानित पत्रकार पी. साइनाथ के आशंकित मन की आवाज़
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया के साथ एक समस्या यह है कि चारों स्तंभों के बीच यही इकलौता है जो मुनाफा खोजता है। भारत का समाज बहुत विविध, जटिल और विशिष्ट है लेकिन उसके बारे में जो मीडिया हमें खबरें दे रहा है, उस पर नियंत्रण और ज्यादा संकुचित होता जा रहा है। आपका समाज जितना विविध है, उतना ही ज्यादा एकरूप आपका मीडिया है। यह विरोधाभास खतरनाक है। बीते दो दशकों में हमने पत्रकारिता को कमाई के धंधे में बदल डाला है। यह सब मीडिया के निगमीकरण के चलते हुआ है। आज मीडिया पर जिनका भी नियंत्रण है, वे निगम पहले से ज्यादा विशाल और ताकतवर हो चुके हैं।
जानिए, मोदी का मूड बिगड़ा तो किस तरह चौटाला के बगल वाली बैरक में पहुंच जाएंगे मुलायम!
ये ‘सीबीआई प्रमाड़ित ईमानदार’ क्या होता है नेताजी? सौदेबाज मुलायम का कुनबा 26 अक्टूबर 2007 से वाण्टेड है, क़ानूनी रूप में सीबीआई की प्राथमिक रिपोर्ट के बाद 40 दिनों में एफआईआर हो जानी चाहिए थी. चूँकि सीबीआई सत्ता चलाने का टूल बन चुकी है, सो सीबीआई कोर्ट पहुँच गई एफआईआर की परमीशन मांगने। उस वक्त …
अमर उजाला और हिंदुस्तान ने रसूखदार चिकित्सक के आगे टेके घुटने
हिंदी दैनिक हिंदुस्तान की टैगलाइन है ‘तरक्की को चाहिए नया नजरिया’ और अमर उजाला कहता है- ‘ताकि सच जिन्दा रहे’। लेकिन उत्तर प्रदेश के जनपद चंदौली में दोनों ही अखबार अपने स्लोगन को ठेंगे पर रखकर कार्य कर रहे हैं। जिले में मुगलसराय स्थित पराहुपर में अर्बन हेल्थ केअर सेंटर में सोमवार को डाक्टर के खिलाफ शिकायतों की जांच करने पहुंची संयुक्त स्वास्थ्य निदेशक के सामने ही आरोपी प्रभारी चिकित्सा अधिकारी ने शिकायतकर्ता की पिटाई कर दी।
कोर्ट ने डॉ. अब्दुल करीम टुंडा को बाइज्जत बरी किया तो फिर मीडिया वालों के लिए वह आतंकी कैसे हो गये? देखिए शर्मनाक रिपोर्टिंग
Shameer Aameen Sheikh : डॉ. अब्दुल करीम टुंडा, पिलखुवा (यूपी) के एक होम्योपैथी चिकित्सक, जिनको 16 अगस्त’ 2013 को भारत-नेपाल सीमा से गिरफ्तार किया गया था, 1996-1998 के बीच 40 से अधिक बम ब्लास्ट करने का आरोप था इन पर| 3 साल बाद अभी न्यायालय ने करीम साहब को बाइज्जत बरी कर दिया| फिर भी दैनिक हिंदुस्तान लिखता है “लश्कर आतंकी टुंडा बम विस्फोटों से जुड़े मामले में बरी”।
जेएनयू को बदनाम करने वाले ‘इंडिया न्यूज’ और ‘जी न्यूज’ का गेस्ट बनने से शीबा असलम फ़हमी का इनकार
Sheeba : आज सुबह से इंडिया न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ की तरफ से फ़ोन आते रहे पैनल में बैठने के लिए. दोनों किसी मुस्लिम-महिला केंद्रित घटना पर बहस में आमंत्रित कर रहे थे. मैंने विरोध जताते हुए मना कर दिया की जेएनयू को आपने जिस तरह षड्यंत्र कर के बदनाम किया उसके बाद हम आपके चैनल की टीआरपी की ग़ुलामी में सहयोग देने नहीं आएँगे.
जी न्यूज, इंडिया न्यूज और टाइम्स नाऊ की पीत पत्रकारिता के खिलाफ केजरीवाल ने कानूनी कार्रवाई के आदेश दिए
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीत पत्रकारिता करने वाले तीन न्यूज चैनलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं. ये चैनल हैं- जी न्यूज, इंडिया न्यूज और टाइम्स नाऊ. दिल्ली सरकार पहले इन चैनलों से पूछेगी कि बिना किसी जांच पड़ताल के आपने कैसे कन्हैया से जुड़े वो वीडियो चलाए जो फेक थे. साथ ही यह भी पूछा कि जांच के बाद जब यह बात साफ हो गई कि वीडियो फर्जी थे तो इस पीत पत्रकारिता पर आपने क्या सार्वजनिक रूप से माफी मांगी?
जोधपुर में ब्लैकमेलर पत्रकारों का हुआ भंडाफोड़ : ”तुम चाहते हो खबर रोक दी जाए तो 60 हजार रुपये दे दो”
जोधपुर : शिव सेना जिला प्रमुख नेमाराम पटेल ने जोधपुर में कार्यरत प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तीन पत्रकारों पर ब्लैकमेल कर पैसे मांगने का लगाया आरोप। नेमाराम ने दैनिक भास्कर के रिपोर्टर रणबीर चौधरी, मनोज वर्मा और सहारा समय न्यूज़ चैनल के प्रदीप जोशी के खिलाफ महा मंदिर थाने में रिपोर्ट दी। इसमें कहां गया है कि उक्त व्यक्तियों ने उसकी एक वीडियो क्लिपिंग दिखाकर कहा कि यह खबर अखबार और इलेक्टॉनिक मीडिया में आ गई तो तुमारा राजनैतिक कैरियर समाप्त हो जाएगा। अगर तुम चाहते हो कि खबर रोक दी जाए तो हम यह खबर रोकने के एवज में पैसे लेंगे। फिर उन्होंने पहले 60 हजार और उसके बाद इसकी दुगनी राशि रिश्वत में मांगी। शिव सेना नेता की दी हुई इस रिपोर्ट पर महामंदिर पुलिस कर रही है जांच।
मीडिया वाले गढ़ते हैं झूठी खबरें और करते हैं सत्य की हत्या, सुनिए प्रो. आनंद प्रधान की जुबानी एक सच्ची कहानी
इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्यूनिकेशन यानि आईआईएमसी में छात्रों को लंबे समय से पत्रकारिता की पढ़ाई पढ़ा रहे प्रोफेसर आनंद प्रधान एक जमाने में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे हैं. 19 फरवरी को जब जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के छात्रों की बैठक छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के समर्थन में हुई तो इसमें जाने माने पत्रकार पी. साईंनाथ समेत कई पत्रकारों ने अपने विचार रखे.
कन्हैया और जेएनयू प्रकरण के नकली टेप चलाने वाले न्यूज चैनलों पर कार्रवाई की हिम्मत छप्पन इंच सीने वाली मोदी सरकार में है?
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानि जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को एक ऐसे वीडियो टेप के आधार पर फंसा दिया गया जिसे छेड़छाड़ कर तैयार किया गया. छेड़छाड़ किए गए टेप के बिना जांच पड़ताल के प्रसारण से कई न्यूज चैनलों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. इनमें से दो अंग्रेजी न्यूज चैनल हैं- टाइम्स नाऊ और न्यूज एक्स. हिंदी के कई न्यूज चैनल हैं- जी न्यूज, इंडिया न्यूज, इंडिया टीवी आदि. इन चैनलों पर प्रसारित टेप में कन्हैया को कश्मीर अलगाववाद के समर्थन में नारे लगाते दिखाया गया है जबकि एबीपी न्यूज ने सही माने जा रहे टेप को दिखाया जिसमें भारत विरोधी बातें नहीं बल्कि गरीबी, सामंतवाद आदि से आजादी संबंधी नारे लगाए जा रहे हैं.
कुछ रुपयों के लिए इतना नीचे गिर कर पत्रकारिता न ही करें तो अच्छा
बस्ती। कुछ पत्रकार साथी कुछ रुपए के लिए अपना ईमान बेचने से पीछे नहीं हटते हैं। मैं मानता हूँ कि कोई भी मीडिया संस्थान इतना रुपया नहीं देता कि पेट्रोल तक का खर्च निकल सके। पैसा लेना गलत नहीं है। आज कल बिना पैसे का कुछ नहीं होने वाला है। लेकिन कुछ रुपयों के लिए इतना नीचे गिर जाना शोभनीय नहीं है, कुछ पत्रकार साथी तो ऐसे है की 100 रु भी मांग लेते है, क्या करे वो भी मज़बूरी है परिवार और बाल – बच्चे का खर्च भी इसी पत्रकारिता से चलाना पड़ता होगा।
यह अखबार मालिक रोज सड़क पर बैठ कर प्रेस कार्ड की दुकान चलाता है
बनारस में एक सज्जन हैं जो ‘दहकता सूरज’ नामक अखबार के मालिक हैं. बुढ़ापे में जीवन चलाने के लिए ये अब रोज सुबह सड़क पर बैठ जाते हैं और दिन भर अपने अखबार का प्रेस कार्ड बेचते रहते हैं. रेट है पांच सौ रुपये से लेकर हजार रुपये तक. ये महोदय खुद को पत्रकार संघ का पदाधिकारी भी बताते हैं. कई लोगों को इनके इस कुकृत्य पर आपत्ति है और इसे पत्रकारिता का अपमान बता रहे हैं लेकिन क्या जब बड़े मीडिया मालिक बड़े स्तर की लायजनिंग कर पत्रकारिता को बेचते हुए अपना टर्नओवर बढ़ा रहे हैं तो यह बुढ़ऊ मीडिया मालिक अपना व अपने परिवार का जीवन चलाने के लिए अपने अखबार का कार्ड खुलेआम बेच रहा है तो क्या गलत है?
पैसा कमाने के चक्कर में हत्या जैसे अपराध में सहभागी बन रहे हैं अखबार मालिक : डा. नरेश त्रेहन
भोपाल। पैसा कमाने के चक्कर में हत्या जैसे अपराध में सहभागी बन रहे हैं अखबार मालिक। यह बात मेदांता सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के सीएमडी डॉ. नरेश त्रेहन ने भोपाल में आयोजित सेन्ट्रल प्रेस क्लब के प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में कही। इस अवसर पर डॉ. त्रेहन ने कहा कि अख़बार मालिक लुभावने विज्ञापन देते समय यह बात भूल जाते हैं कि उनके अख़बार में छपे विज्ञापन से प्रभावित होकर यदि कोई व्यक्ति अमुक अस्पताल में इलाज कराने जाता है और यदि उस व्यक्ति की सुविधाओं के आभाव में मृत्यु हो जाती है तो उसके लिए अख़बार मालिक भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितना लुभावना विज्ञापन देने वाला व्यक्ति या अस्पताल।
पैसे मांग कर इस न्यूज चैनल ने युवा पत्रकार का दिल तोड़ दिया (सुनें टेप)
सभी भाइयों को मेरा नमस्कार,
मैं एक छोटा सा पत्रकार (journalist) हूँ और 4 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ। इस बदलते दौर में मुझे नहीं लगता कि मैं कभी अच्छा पत्रकार बन पाउँगा। मेरा सपना था कि मैं भी एक सच्चा पत्रकार बनूँगा पर अब तो पत्रकारिता का मतलब ही बदल चुका है। पहले पत्रकारिता एक मिशन था परन्तु अब ये करप्ट व कारपोरेट बन चुकी है। सभी जानते हैं कि मीडिया में काम करने के लिए अच्छी पहचान या बहुत पैसा होना चाहिए। आज पत्रकार बनना बहुत ही आसान हो गया है क्योंकि पत्रकार बनने के लिये चैनल को आप के तजुर्बे और आपकी योग्यता की जरूरत नहीं है। उन्हें तो जरूरत है आप से मिलने वाले मोटे पैसे की।
मीडिया पहले कमजोर आदमी की आवाज उठाता था, आज मजबूत आदमी की आवाज बन चुका है
आज देश में जो अच्छे चैनल मौजूद हैं, उनके ऊपर भी लगातार खराब होने का दबाव बढ़ रहा है
नई दिल्ली। 30 जनवरी को हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा दो सत्रों में ‘प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता’ और ‘इलेक्ट्रानिक मीडिया की विश्वसनीयता’ पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। त्रिवेणी सभागार में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि मीडिया की विश्वसनीयता का सवाल आज से 50 साल पहले भी था और आज भी है। दरअसल, विश्वसनीयता की यह बहस मीडिया को और विश्वस्त बनाती है। पाठकों और दर्शकों की मनोविज्ञान और दिलचस्पी से अलग जाकर विश्वसनीयता पर अलग से कोई बहस नहीं हो सकती, बल्कि यह सारी बहस इसके सापेक्ष ही होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार मीडिया से नैतिक और अति नैतिकता की उम्मीद की जाती है, जो वास्तविकताओं से बहुत परे है। गांव के स्तर पर भी पत्रकारिता को लेकर किये जा रहे प्रयोग उम्मीद जगाते हैं।
ये कौन लोग हैं जो पीएम के साथ सेल्फी लेकर अपने जीवन पर फ़क्र महसूस कर रहे हैं?
भईया Yashwant, ये कौन लोग हैं जो पीएम के साथ सेल्फी लेकर अपने जीवन पर फ़क्र महसूस कर रहे हैं। और क्यों ले रहे हैं वो सेल्फी। क्या इसलिए कि ये कोई फोटो अपार्चुनिटी है? या इसलिए कि वो इसे सोशल मीडिया पर चमका सकें? वो अपने रीअल और वर्चुअल मित्रों को इस बात का अहसास दिला सकें कि वो कितने बड़े तीस मार खां हैं? वो उन्हें बता सकें कि उनकी पहुंच कितने ऊपर तक है? उन्हें अहसास दिला सकें कि वो कितने खास हैं?
इंग्लैंड में मोदी : भारतीय मीडिया कुछ तो छुपा रहा है…
वैसे तो मोदी जी की विदेश यात्रायें आपका सुख चैन खबर बाखबर सब नियंत्रित कर लेती हैं, आप चाह कर भी मोदीमय होने से बच ही नहीं सकते। सारे चैनल उनका ही मुखड़ा दिखाते मिलते हैं और सारे अख़बार उन्हीं पर न्योछावर। सोशल मीडिया पर भी वही छाये रहते हैं पक्ष हो या विपक्ष! पर इस बार यह सब होते हुए भी कुछ और भी है जिसकी परदेदारी तो है पर वह परदे में समा नहीं रहा! इस बार लंदन में मोदी का भारी विरोध हुआ और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में और सोशल मीडिया में उसने खासी हलचल पैदा की।
बीते दो दशकों में मीडिया की दशा-दिशा में आए बदलावों का वरिष्ठ पत्रकार एलएन शीतल द्वारा विस्तृत विश्लेषण
मीडिया के बदलते रुझान-1 : इन नवकुबेरों ने मिशन शब्द का अर्थ ही पागलपन कर दिया
अगर हम मीडिया के रुझान में आये बदलाव के लिए कोई विभाजन-रेखा खींचना चाहें तो वह विभाजन-रेखा है सन 1995. नरसिंह राव सरकार के वित्तमन्त्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गयी खुली अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप अख़बारी दुनिया में व्यापक परिवर्तन हुए. पहला बदलाव तो यह आया कि सम्पादक नाम की संस्था दिनोदिन कमज़ोर होती चली गयी, और अन्ततः आज सम्पादक की हैसियत महज एक मैनेजर की रह गयी है.
बिहार की जनता ने इस मीडिया को भी हरा दिया है
भरोसा खोने के एक समान क्रम में इस चुनाव में भाजपा के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भी हार हुई है। अपने एक मित्र ने हताशा में सुबह 9 बजे से पहले ही टीवी बंद कर दिया। मुझे ये कहने की छूट दें कि मैं जरा समझदार निकला और अन्य चैनलों की तुलना में राज्य सभा टीवी पर ज्यादा ध्यान रखा। ये खबर पहले ही आ चुकी थी कि एक चैनल ने एक सर्वे को इसलिए प्रसारित नहीं किया क्योंकि वह महागठबंधन को भारी बहुमत बता रहा था।
मोदी और केजरी स्टाइल का ‘आदर्श’ मीडिया… जो पक्ष में लिखे-बोले वही सच्चा पत्रकार!
: मीडिया समझ ले, सत्ता ही है पूर्ण लोकतंत्र और पूर्ण स्वराज! : मौजूदा दौर में मीडिया हर धंधे का सिरमौर है। चाहे वह धंधा सियासत ही क्यों न हो। सत्ता जब जनता के भरोसे पर चूकने लगे तो उसे भरोसा प्रचार के भोंपू तंत्र पर होता है। प्रचार का भोंपू तंत्र कभी एक राह नहीं देखता। वह ललचाता है। डराता है। साथ खड़े होने को कहता है। साथ खड़े होकर सहलाता है और सिय़ासत की उन तमाम चालों को भी चलता है, जिससे समाज में यह संदेश जाये कि जनता तो हर पांच बरस के बाद सत्ता बदल सकती है। लेकिन मीडिया को कौन बदलेगा? तो अगर मीडिया की इतनी ही साख है तो वह भी चुनाव लड़ ले… राजनीतिक सत्ता से जनता के बीच दो-दो हाथ कर ले… जो जीतेगा, उसी की जनता मानेगी!
कुछ मीडिया हाउसों पर कारपोरेट्स का दबाव है : राजदीप सरदेसाई
अजमेर : यहां आयोजित साहित्य सम्मेलन के गुफ्तगू सत्र के दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई कहा कि मैं नहीं मानता कि पूरी मीडिया बिकी हुई है. ये देश बेइमानों का देश नहीं है. इस देश की अधिकांश जनता ईमानदार है. ईमानदारी के कारण ही देश तरक्की कर रहा है. मीडिया जनता पर निर्भर है, किसी कॉर्पोरेट पर निर्भर नहीं है. हां कुछ मीडिया हाउस में कॉर्पोरेट के कारण समस्या है लेकिन उनका भी समाधान होगा. उन्होंने माना कि कुछ मीडिया हाउस पर कॉर्पोरेट्स का दबाव है.
यादवगेट में फंस रहे कुछ बड़े टीवी चैनल और पत्रकार, पीएमओ को रिपोर्ट भेजी गई
दलाली करते थे नोयडा-लखनऊ के कई मीडियाकर्मी
नई दिल्ली: नोयडा के निलंबित चीफ इंजीनियर यादव सिंह ने ठेकेदारी में कमीशनखोरी और कालेधन को सफेद करने के लिए कागज़ी कंपनियों का संजाल बिछाकर उसमें मीडिया को भी शामिल कर लिया था। इस राज का पर्दाफाश कर रही है, यादव सिंह से बरामद डायरी। यादव सिंह से तीन चैनलों के नाम सीधे जुड़ रहे हैं। एक में तो उनकी पत्नी निदेशक भी है। डायरी में मिले सफेदपोशों, नौकरशाहों और पत्रकारों के नामों को लेकर सीबीआई काफी संजीदा है और उसकी रिपोर्ट सीधे पीएमओ को भेजी जा रही है। इस सिलसिले में यादव सिंह और उसके परिवार से कई परिवार से कई बार पूछताछ हो चुकी है। समाज को सच का आईना दिखाने का दम भरने वाले ये पत्रकार अपने लिए मकान-दुकान लेने के अलावा ठेका दिलाने को भी काम करते थे और उसके लिए मोटी करम वसूलते थे।
भारत को बदनाम करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा क्यों बन जाता है भारतीय मीडिया!
(देर आए, दुरुस्त आए… गलत प्रचारित खबर की सच्चाई अब सामने ला रहा भारतीय मीडिया.. एक अखबार के मेरठ-बागपत संस्करण में प्रकाशित खबर…)
भारतीय मीडिया किस तरह अपने ही देश को बदनाम करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा जाने-अनजाने बन जा रहा है, इसे जानना-समझना हो तो आपको बागपत के साकरोद गांव का मामला समझ लेना चाहिए. इस गांव के बारे में इंग्लैंड समेत कई देशों में खबर प्रचारित प्रसारित कर दी गई कि यहां की खाप पंचायत ने दो बहनों के साथ रेप कर उन्हें नंगा घुमाए जाने का आदेश दिया है. इसका कारण यह बताया गया कि लड़कियों का भाई ऊंची जाति की शादीशुदा औरत के साथ भाग गया था, इसलिए बदले में लड़कियों को दंडित करने हेतु दोनों बहनों से रेप करने का फरमान सुनाया गया.
दसवीं पास हैं तो तीन महीने में पत्रकार बनें!
जी हां. ये दावा है एक विज्ञापन का. विज्ञापन में बताया गया है कि उन्हें तीन महीने में क्या क्या सिखाया जाएगा ताकि पत्रकार बन सकें. साथ ही पांच सौ रुपये अलग से देने पर उन्हें क्या अलग ज्ञान दिया जाएगा. सोचिए. दसवीं पास अगर तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद पत्रकार बन गया तो वह क्या देश समाज को दिशा देगा और सच्चाई को क्या कितना समझ पाएगा. जिनको खुद अपने ज्ञान को अपडेट करने की जरूरत है, वही जब पत्रकार बनकर सही गलत का फैसला करेंगे तो जाहिर तौर पर उनका दकियानूसी माइंडसेट आम जन और समाज का बहुत नुकसान करेगा. दसवीं पास पत्रकार बनने का यह विज्ञापन आजकल सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है और लोग पत्रकारिता के गर्त में गिरने को लेकर चिंता जता रहे हैं.
लखनऊ के रेलवे बीट देखने वाले पत्रकारों को नए आए रेल अफसर का सम्मान क्यों करना पड़ा?
Gulam Jeelani : How times change! There was a time when journalists would be known for stories and here we are felicitating a newly posted railway official in Lucknow. And don’t tell me you don’t know why.
गुलाम जिलानी के फेसबुक वॉल से.
गंभीर पत्रकारिता का एक ताजा नमूना देखिए
ये तस्वीर पिछले 12 घंटे से सोशल मीडिया पर खूब शेयर हो रही है. इस तस्वीर के जरिए आजकल के न्यूज चैनलों की मूढ़ता फिर जगजाहिर हुई है. हालांकि इस तस्वीर में चैनल का नाम दिख नहीं रहा है लेकिन मीडिया में थोड़ी बहुत रुचि रखने वाला भी जान जाता है कि ये किस चैनल की ब्रेकिंग न्यूज है.
क्या मीडिया वाले इंद्राणी-पीटर कांड के इस पक्ष ‘shady ownership of News brands in India’ पर भी स्टोरी कर सकेंगे?
Dear Sir,
Hope you are doing great.
I just want to share some story idea with you on Ownership of News Brands. Below is the background on the same.
Background…
The ongoing murder case involving Indrani & Peter Mukerjea has once again brought to discussion on the shady ownership of News brands in India. The duo owned NewsX. In addition a lot of other news brands have ownership by politicians, builders and others without much credibility in journalism.
इंद्राणी मुखर्जी ने पांच शादियां कीं… देह व्यापार में अरेस्ट भी हो चुकी हैं…
कभी आईएनएक्स मीडिया की संस्थापिका के तौर पर चर्चित रहीं और आजकल अपनी बेटी की हत्या के आरोपों में कुख्याति झेल रहीं इंद्राणी मुखर्जी उर्फ परी बोरा के बारे में पता चला है कि उन्होंने कुल पांच शादियां की हैं. स्टार इंडिया के पूर्व सीईओ पीटर मुखर्जी असल में इंद्राणी के पांचवें पति हैं. अब तक पीटर मुखर्जी को तीसरा पति बताया जा रहा था. इंद्राणी ने पहली शादी खुद से दोगुनी उम्र के वकील से की थी. उस वक्त वो 16 वर्ष की थी और सेंट मेरीज स्कूल में पढ़ती थीं.
पत्रकारिता के नाम पर सूदखोरी कर रहा डिंडोरी (एमपी) का नित्यानंद!
जिन सज्जन नित्यानंद के बारे में अखबार में खबर छपी है और उस खबर की कटिंग यहां लगाई गई है, उन्हें हरिभूमि अखबार का प्रतिनिधि भी बताया जा रहा है. सोचिए, पत्रकारिता क्षेत्र में कैसे कैसे लोगों को घुसाया गया है. मध्य प्रदेश के डिंडोरी की ये खबर है. नित्यानंद कटारे निगरानी शुदा बदमाश हैं. पढ़िए इनकी दास्तान…
छह माह पहले स्टिंग कर चुके अशोक पांडेय सौदेबाजी करने के लिए सीडी दबाए बैठे रहे?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात आईएएस मोहम्मद शाहिद का खुफिया कैमरों से स्टिंग आपरेशन कर सुर्खियां में आए अशोक पांडेय भी सवालों को घेरे में हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जिस तरह इस सीडी के सामने आने के बाद जांच कराने से ही बचने की कोशिश की, वह उनको तो कठघरे में खड़ा करता ही है, लेकिन भाजपाई और मीडिया का एक हिस्सा पांडेय के निर्माणाधीन भवन को गिराने को लेकर जिस तरह हायतौबा मचा रहा है, वह इस पूरे प्रकरण से खड़े सवालों को नेपथ्य में धकेल रहा है। पहली बात तो यह कि इस सीडी के सामने आने से मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे नौकरशाह किस तहर दलाली का खेल खेल रहे हैं, सबके सामने आ गया। दूसरे सवालों को थोड़ी देर के लिए किनारे रख दें तो इस सीडी का यह एक उजला पक्ष है। लेकिन इस उजले पक्ष के पीछे जो भी अंधेरा है उस पर भी रोशनी डाली जानी चाहिए।
हिंदुस्तान और डीएलए पेपर की स्ट्रिंगरशिप लेते ही अपने क्षेत्र का वो बेताज बादशाह हो गया!
अभी तक आदमी पुलिस के आंतक से परेशान सुना जाता था लेकिन अब पत्रकारों का आतंक भी जीने नहीं दे रहा है। ये हाल है रायबरेली के लालगंज तहसील और आसपास के गांव वालों का। दरअसल मानवेंद्र पांडेय नाम के एक शख्स ने किसी तरह से हिंदुस्तान और डीएलए नाम के पेपर की स्ट्रिंगरशिप ले ली। इसकी बाद से मानो वो अपने क्षेत्र का बेताज बादशाह हो गया है। किसी को भी सरेआम गाली देना, मुकदमे में फंसाने की धमकी देना, पुलिस से प्रशासन से बेइज्जती कराने की धमकी देना उसकी आदत हो गई है।
पंजाब केसरी के मालिक का हाल देखिए, मोदी के सामने हाथ बांधे डरते कांपते खड़े हैं!
ये हैं बीजेपी के सांसद और पंजाब केसरी अखबार के मालिक. क्या हाल है बिकी हुई मीडिया का, खुद ही देखिये. जब अख़बारों / चैनलों के मालिक / संपादक लोग अपनी पूरी उर्जा लोकसभा / राज्यसभा की सीट और पद्मभूषण आदि के लिये खर्च करते हुए इस चित्र में दिखाई मुद्रा में जा पहुंचें हों तब मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खम्भा कैसे माना जा सकता है? ये तो सत्ता के चारणों की मुद्रा है.
दिल्ली में ‘पीपली लाइव’ : वो फांसी लगाता रहा और तुम लाइव रिपोर्टिंग में लगे रहे…
Sheetal P Singh : दौसा, राजस्थान से दिल्ली आकर एक किसान ने केजरीवाल की रैली के दौरान पेड़ पर फन्दा डालकर आत्महत्या की कोशिश की। राजस्थान और केन्द्र में पूर्ण बहुमत की बीजेपी की सरकारें हैं पर वहाँ का किसान भी आत्महत्या कर ले तो टीवी चैनल केजरीवाल को कैसे दोषी सिद्ध कर सकते हैं, बीजेपी का नाम भी लिये बिना, यह इस समय देखने लायक है! किसान “आप” की रैली में फाँसी चढ़ा : इसको तो रिपोर्ट करो, गढ़ो, फैलाओ… लेकिन किसान फाँसी क्यों चढ़ा : इसे पूरी तरह गोल कर जाओ… मीडिया के पाखंड का सूक्त…
Ajay Bhattacharya : वो फांसी लगाता रहा और तुम लाइव रिपोर्टिंग में लगे रहे. कैमरा छोड़कर उसे थाम लेते तो एक जिंदगी बच जाती. जो तुम्हारी खबर से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण थी. खुद को मीडिया वाले कहते हो?
इसीलिए तो ये PRESSTITUTE कहलाते हैं… फिर सारे क्यूं दिल पर ले रहे हैं…
Rajat Amarnath : जब पत्रकार कलम के ज़रिऐ चैनल के अख़बार के मालिक बन जाते हैं और दो नंबर का धंधा करने वाले मालिक अपना धंधा बचाने के लिऐ पत्रकार बन जाते हैं (वो भी शामिल हैं जो जोड़तोड से सरकार का गुणगान करके इनाम लेते हैं) तभी वो “PRESSTITUTE” कहलाते हैं. सारे क्यूं दिल पर ले रहे हैं.
मीडिया का मोतियाबिंद : इसके आपरेशन का समय आ गया है…
Ambrish Kumar : कल जंतर मंतर पर जन संसद में कई घंटे रहा. दस हजार से ज्यादा लोग आए थे जिसमें बड़ी संख्या में किसान मजदूर थे. महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. झोले में रोटी गुड़ अचार लिए. मंच पर नब्बे पार कुलदीप नैयर से लेकर अपने-अपने अंचलों के दिग्गज नेता थे. अच्छी सभा हुई और सौ दिन के संघर्ष का एलान. बगल में कांग्रेस का एक हुल्लड़ शो भी था. जीप से ढोकर लाए कुछ सौ लोग. मैं वहां खड़ा था और सब देख रहा था. जींस और सफ़ेद जूता पहने कई कांग्रेसी डंडा झंडा लेकर किसानों के बीच से उन्हें लांघते हुए निकलने की कोशिश कर रहे थे जिस पर सभा में व्यवधान भी हुआ. एक तरफ कांग्रेस में सफ़ेद जूता और जींस वालों की कुछ सौ की भीड़ थी तो दूसरी तरफ बेवाई फटे नंगे पैर हजारों की संख्या में आये आदिवासी किसान थे.
दिल्ली की मीडिया इंडस्ट्री में हर रोज पत्रकार होने का दर्द भोग रहे हैं ढेर सारे नौजवान
: इंतजार का सिलसिला कब तक…. : दूर दराज के इलाकों से पत्रकार बनने का सपना लिए दिल्ली पहुंचने वाले नौजवान अपने दिल में बड़े अरमान लेकर आते हैं। उन्हे लगता है कि जैसे ही किसी न्यूज चैनल में एन्ट्री मिली तो उनका स्टार बनने का ख्वाब पूरा हो जाएगा. लेकिन जैसे ही पाला हकीकत की कठोर जमीन पर होता है वैसे ही सारे सपने धराशायी होते नजर आते हैं. अभी चंद रोज पहले मेरे पत्रकार मित्र से बात हुई तो पता चला कि उनके संस्थान में पिछले चार महीने से तनख्वाह नहीं दी गई है। हैरानी की बात ये है कि फिर भी लोग बिना किसी परेशानी के न केवल रोज दफ्तर आते हैं बल्कि अपने हिस्से का काम करते हैं। जब बात सैलरी की होती है तो मिलता है केवल आश्वासन या फिर अगली तारीख.
न्यूज24 में कंसल्टेंट मयूर शेखर झा पर भी एस्सार घराना रहता है मेहरबान
प्रसिद्ध उद्योगपति रुईया परिवार द्वारा संचालित एस्सार समूह की मेहरबानी पत्रकार मयूर शेखर झा पर भी रही है. पीआईएल में 26 अक्टूबर 2012 का एक ईमेल शामिल किया गया है जिसमें पत्रकार मयूर शेखर झा के 15 दोस्तों के लंच के लिए साउथ एक्सटेंशन स्थित गेस्ट हाउस बुक करने का आग्रह किया गया है. एनडीटीवी प्राफिट और हेडलाइंस टुडे में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके मयूर शेखर झा इन दिनों न्यूज24 में कंसल्टेंट हैं.
एचटी समिट के लिए एक करोड़ के प्रायोजक जुगाड़ने की जिम्मेदारी मुझे दी जाती थी : अनुपमा
Mukesh Kumar : एस्सार मामले में केवल शांतनु सैकिया का ही नहीं सात पत्रकारों के नाम लिए जा रहे हैं। इनमें से एक अनुपमा हिंदुस्तान टाइम्स की एनर्जी एडिटर हैं जिन्हें अख़बार ने निलंबित कर दिया है। लेकिन अनुपमा ने उलटवार करते हुए कहा है कि उनका अख़बार और संपादक उन्हें लगातार इस्तेमाल करता रहा है और एचटी सम्मिट के लिए एक करोड़ के प्रायोजक जुगाड़ने की जो ज़िम्मेदारी उसे दी जाती थी, वह उसे निभाती भी थी। इसी तरह दैनिक भास्कर के भी एक पत्रकार के इसमें शामिल होने का शक़ है। बाक़ी पत्रकारों के नाम अभी मिले नहीं हैं मगर पूरा मामला खुले तो राडिया कांड-2 जैसा होगा।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.
एस्सार के ‘रिश्तेदार’ तीन पत्रकारों की नौकरी गई, लेकिन ‘बड़े वाले रिश्तेदार’ नितिन गडकरी का मंत्री पद बरकरार
Deepak Sharma : एस्सार ग्रुप की टैक्सी इस्तेमाल करने वाले तीन बड़े पत्रकारों को नौकरी छोडनी पड़ी है. लेकिन एस्सार ग्रुप का हेलीकाप्टर और याट इस्तेमाल करने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कुर्सी पर विराजमान हैं. एस्सार का फायदा लेने वाले दिग्विजय सिंह और श्री प्रकाश जायसवाल भी मजे में हैं. सवाल कॉर्पोरेट की टैक्सी और हेलीकाप्टर में बैठने का नहीं है. सवाल ये है कि जिन मीडिया समूह या राजनीतिक पार्टियों ने अपने फायदे के लिए कॉर्पोरेट का खुला इस्तेमाल किया है, वो क्या दूध के धुले हैं? क्या उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं लिखा जा सकता? क्या कॉर्पोरेट, मीडिया और राजनीति की ये तिकड़ी हर जगह लूटपाट नहीं कर रही है?
तीन कार्पोरेट परस्त पत्रकारों के नाम का खुलासा, ये हैं- संदीप बामजई, अनुपमा ऐरी और मीतू जैन
जब बड़े मीडिया घराने खुद कार्पोरेट के पैसे पर पल चल रहे हों तो यहां काम करने वाले पत्रकार धीरे धीरे कार्पोरेट परस्त व कार्पोरेट पोषित हो ही जाएंगे. जिनके नाम खुल जा रहे हैं, वो ऐलानिया चोर साबित हो जा रहे हैं. कभी बरखा दत्त, वीर सांघवी जैसे दर्जनों पत्रकारों का नाम लाबिस्ट के रूप में सामने आया, महादलाल नीरा राडिया के आडियो टेप के जरिए. अब फिर तीन पत्रकारों का नाम आया है, कार्पोरेट परस्ती को लेकर. ये हैं- संदीप बामजई, अनुपमा ऐरी और मीतू जैन.
कार्पोरेट गठजोड़ का हुआ खुलासा : मंत्री से लेकर पत्रकार तक पर एस्सार निसार
एस्सार समूह के आंतरिक पत्राचार से खुलासा हुआ है कि कंपनी ने सत्ताधारियों, रसूखदार लोगों को उपकृत करने करने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाए। एक ‘विसल ब्लोअर’ ने इस पत्राचार को सार्वजनिक करने का फैसला किया है और अब ये जानकारियां अदालत में पेश होने वाली हैं। जुटाए गए पत्राचार में ई-मेल, सरकारी अधिकारियों के साथ हुई बैठकों से जुड़े पत्र और मंत्रियों, नौकरशाहों और पत्रकारों को पहुंचाए गए फायदों से जुड़ी जानकारियां हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर होने वाली एक जनहित याचिका में ये बातें रखी गई हैं। सेंटर फार पब्लिक इंट्रेस्ट लिटीगेशन की ओर से यह याचिका दायर की जाएगी। पत्राचार से जानकारी मिली है कि एस्सार अधिकारियों ने दिल्ली के कुछ पत्रकारों के लिए कैब भी मुहैया कराई।
दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान के सोनभद्र प्रमुखों का पुतला दहन
सोनभद्र। जिले के भ्रष्ट नौकरशाहों, नेताओं और खनन माफियाओं के पक्ष में खबरें प्रकाशित करना राष्ट्रीय स्तर के तीन अखबारों के ब्यूरो प्रमुखों को भविष्य में भारी पड़ सकता है। रॉबर्ट्सगंज स्थित कांशीराम आवास कॉलोनी के बाशिंदों ने रविवार को हिन्दुस्तान, अमर उजाला और दैनिक जागरण के ब्यूरो प्रमुखों का पुतला दहन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि यहां के लोग कॉलोनी में व्याप्त समस्याओं के साथ गरीबों और आम जनता के अधिकारों के लिए भ्रष्ट अधिकारियों से लड़ते हैं लेकिन दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान अखबार के ब्यूरो प्रमुख उनकी खबरों को प्रकाशित नहीं करते हैं।
अंग्रेजी न्यूज चैनल का अहंकारी एंकर और केजरीवाल की जीत
Binod Ringania
पिछले सप्ताह राष्ट्रीय विमर्श में जिस शब्द का सबसे अधिक उपयोग किया गया वह था अहंकार। दिल्ली में बीजेपी की हार के बाद लोगों ने एक स्वर में कहना शुरू कर दिया कि यह हार अहंकार की वजह से हुई है। इन दिनों तरह-तरह का मीडिया बाजार में आ गया है। एक तरफ से कोई आवाज निकालता है तो सब उसकी नकल करने लगते हैं। और एक-दो दिन में ही किसी विचार को बिना पूरी जांच के स्वीकार कर लिया जाता है। इस तरह दिल्ली में हार की वजह को बीजेपी का अहंकार मान लिया गया। कल को किसी राज्य में बीजेपी फिर से जीत गई तो ये लोग उसका विश्लेषण कैसे करेंगे पता नहीं।
भारतीय टीवी न्यूज इंडस्ट्री में बड़ा और नया प्रयोग करने जा रहे हैं दीपक शर्मा समेत दस बड़े पत्रकार
(आजतक न्यूज चैनल को अलविदा कहने के बाद एक नए प्रयोग में जुटे हैं दीपक शर्मा)
भारतीय मीडिया ओवरआल पूंजी की रखैल है, इसीलिए इसे अब कारपोरेट और करप्ट मीडिया कहते हैं. जन सरोकार और सत्ता पर अंकुश के नाम संचालित होने वाली मीडिया असलियत में जन विरोधी और सत्ता के दलाल के रूप में पतित हो जाती है. यही कारण है कि रजत शर्मा हों या अरुण पुरी, अवीक सरकार हों या सुभाष चंद्रा, संजय गुप्ता हों या रमेश चंद्र अग्रवाल, टीओआई वाले जैन बंधु हों या एचटी वाली शोभना भरतिया, ये सब या इनके पिता-दादा देखते ही देखते खाकपति से खरबपति बन गए हैं, क्योंकि इन लोगों ने और इनके पुरखों ने मीडिया को मनी मेकिंग मीडियम में तब्दील कर दिया है. इन लोगों ने अंबानी और अडानी से डील कर लिया. इन लोगों ने सत्ता के सुप्रीम खलनायकों को बचाते हुए उन्हें संरक्षित करना शुरू कर दिया.
इस भीषण जीत में कार्पोरेट और करप्ट मीडिया (जी न्यूज, इंडिया टीवी, आईबीएन7 आदि…) भी आइना देखे…
Yashwant Singh : दिल्ली में भाजपा सिर्फ तीन-चार सीट पर सिमट जाएगी और आम आदमी पार्टी 64-65 सीट तक पहुंच जाएगी, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. ये भारतीय चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत है और भाजपा की सबसे बड़ी हार. कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुला. पर आप याद करिए. टीवी न्यूज चैनल्स किस तरीके से आम आदमी पार्टी के खिलाफ कंपेन चला रहे थे. कुछ एक दो चैनल्स को छोड़ दें तो सारे के सारे बीजेपी फंडेड और बीजेपी प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर रहे थे. आम आदमी पार्टी को किस तरह घेर लिया जाए, बदनाम कर दिया जाए, हारता हुआ दिखा दिया जाए, ये उनकी रणनीति थी. उधर, भाजपा का महिमामंडन लगातार जारी था. बीजेपी की सामान्य बैठकों को ब्रेकिंग न्यूज बनाकर बताकर दिखाया जाता था. सुपारी जर्नलिज्म का जिस किदर विस्तार इन चुनावों में हुआ, वह आतंकित करने वाला है. हां, कुछ ऐसे पत्रकार और चैनल जरूर रहे जिन्होंने निष्पक्षता बरती. एनडीटीवी इंडिया, एबीपी न्यूज, आजतक, न्यूज नेशन, इंडिया न्यूज ने काफी हद तक ठीक प्रदर्शन किया. सबसे बेहूदे चैनल रहे इंडिया टीवी, आईबीएन7 और जी न्यूज.
(सबसे सही एक्जिट पोल इंडिया न्यूज का रहा लेकिन यह भी दस सीट पीछे रहा. इंडिया न्यूज ने सबसे ज्यादा 53 सीट दी थी ‘आप’ को लेकिन आप तो इस अनुमान से दस सीट से भी ज्यादा आगे निकल गई. कह सकते हैं कि न्यूज चैनलों में जनता का मूड भांपने में सबसे तेज ‘इंडिया न्यूज’ रहा.)
रामगढ़ में टीवी पत्रकार करा रहा था अपने होटल में देह व्यापार!
झारखंड के रामगढ़ जिले से खबर है कि एक पत्रकार अपने होटल में देह व्यापार का धंधा चला रहा था. होटल पर रामगढ़ डीसी की विशेष टीम ने छापामारा तो यह खुलासा हुआ. रीजनल न्यूज चैनल ‘न्यूज 11’ से ताल्लुक रखने वाले कोयलांचल के पुराने पत्रकार महावीर अग्रवाल के रांची रोड स्थित होटल गणपति पैलेस होटल से तीन युवक-युवतियों को आपत्तिजनक स्थिति में रंगे हाथ पकड़ा गया.
ग्वालियर में मीडिया और पुलिस का कथित गठजोड़, 2 करोड़ की खुली बंदरबांट!
खबर ग्वालियर से है। पुलिस, पत्रकारों, कुछ प्रादेशिक चैनल के ब्यूरो हैड और क्राईम ब्राँच के पुलिस कर्मचारियों, अधिकारीयों के गठजोड़ के बीच 2 करोड़ रुपये की बंदरबांट की गई है. चर्चा के मुताबिक एक प्रादेशिक चैनल के ब्यूरो हेड ने 3 अन्य प्रादेशिक चैनल के कारिंदो और लोकल चैनल व लोकल अख़बार के कुछ पत्रकारों एवं क्राइम ब्राँच के कुछ पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से 2 करोड़ रुपये हज़म किये हैं.
‘आप’ ने ढूंढ़ा बिकाऊ मीडिया पर खर्च का पूरा लाभ पाने का तरीका
Sanjaya Kumar Singh : आम आदमी पार्टी ने ढूंढ़ा बिकाऊ मीडिया पर खर्च का पूरा लाभ पाने का तरीका। फर्जी सर्वेक्षणों का बाप है यह तरीका। इसे कहते हैं आईडिया। यह विज्ञापन इस तरह आ रहा है जैसे रेडियो चैनल खुद सर्वेक्षण कर रहा हो। इसमें किसी व्यक्ति से पूछा जाता है पिछली बार आपने किसे वोट दिया था। वह चाहे जो कहे दूसरा सवाल होता है इस बार किसे देंगे– आम आदमी पार्टी को। और क्यों में, आम आदमी के पक्ष में कारण बताया जाता है।
बड़ा संपादक-पत्रकार बनने की शेखर गुप्ता और राजदीप सरदेसाई वाली स्टाइल ये है…
Abhishek Srivastava : आइए, एक उदाहरण देखें कि हमारा सभ्य समाज आज कैसे गढ़ा जा रहा है। मेरी पसंदीदा पत्रिका The Caravan Magazine में पत्रकार शेखर गुप्ता पर एक कवर स्टोरी आई है- “CAPITAL REPORTER”. गुप्ता की निजी से लेकर सार्वजनिक जिंदगी, उनकी कामयाबियों और सरमायेदारियों की तमाम कहानियां खुद उनके मुंह और दूसरों के मार्फत इसमें प्रकाशित हैं। इसके बाद scroll.in पर शिवम विज ने दो हिस्से में उनका लंबा साक्षात्कार भी लिया। बिल्कुल बेलौस, दो टूक, कनफ्यूज़न-रहित बातचीत। खुलासों के बावजूद शख्सियत का जश्न जैसा कुछ!!!
सहारा समय चैनल ने दिया चुनाव में वसूली का टार्गेट
झारखण्ड में चल रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र मीडिया में चुनावी खर्चे की वसूली की चर्चा शुरू हो गयी है। इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम है इन दिनों विवादों से ग्रस्त कंपनी के चैनल सहारा समय बिहार झारखण्ड का। विगत चार नवम्बर को रांची कार्यालय में हुई बैठक में सभी रिपोर्टरों को चुनाव में टार्गेट का टास्क दिया गया था। इस बैठक में बिहार झारखण्ड के चैनल हेड भी उपस्थित थे।
कलम के जरिए रंगदारी वसूल करने वालों का गिरोह बनती जा रही है मीडिया
: फूलन ने बिना रुपया दिए फोटो लेने वाले दिल्ली के पत्रकार को थप्पड़ जड़ दिया था! : भिंड में ‘दद्दा मलखान सिंह’ फिल्म की इन दिनों चल रही शूटिंग कई पुरानी स्मृतियों को कुरेद गई। मलखान सिंह के समर्पण के समय पत्रकारिता मुनाफा कमाने के धंधे में तब्दील नहीं हो पाई थी। व्यवसायीकरण की चपेट में आने के बाद समाज में वैचारिक चेतना के विकास की जरूरत पूरी करने के लिए अवतरित की गई यह विधा किस तरह से सच के लिए संघर्ष के दावे के तले फरेब और झूठ का व्यापार बन गई, उन दिनों इसकी पहली झलक मुझे देखने को तो मिली लेकिन यह बात उस दौर में इतनी अनजानी थी कि उस समय लोग बहुत गंभीरता से इसे संज्ञान में नहीं ले सके थे।
इनामी बदमाश और पुलिस का भगोड़ा मोदी राज में बन गया न्यूज चैनल का डायरेक्टर!
माननीय प्रधानमंत्री जी, आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. कुछ बताना भी चाहता हूं. सवाल ये है कि एक पत्रकार और प्रबंधन में सूचना प्रसारण मंत्रालय कितना भेदभाव करता है? क्या आपको इसकी जानकारी है? मैं जानता हूं कि आपको नहीं होगी, क्योंकि आपने इस मंत्रालय को गंभीरता से लिया ही नहीं… यही वजह है कि केंद्र कि ये पहली सरकार है जिसने सूचना प्रसारण मंत्रालय को फुल टाइम मंत्री तक नहीं दिया है…
‘आपकी अदालत’ के 21 साल : ये जश्न उस ‘सेल्फी फंक्शन’ का अपडेटेड वर्जन ही तो है…
: गठजोड़ का सबसे बड़ा जश्न या क्रोनी जर्नलिस्म का नमूना? : दफ्तर में काम कर रहा हूं और मेरे ठीक सामने चल रहे टीवी में एक न्यूज चैनल अपने एक कार्यक्रम की सालगिरह के आयोजन की तस्वीरें दिखा रहा है. पूरे आयोजन का टीवी के किसी कार्यक्रम का ‘सबसे बड़ा जश्न’ बताया जा रहा है. राष्ट्रपति, पीएम, कई राज्यों के सीएम, विपक्ष के नेता, बॉलीवुड के हीरो-हीरोइन, संगीतकार, गायक, शायर, पत्रकार, बिजनेसमैन…. सब उस 21 साल पुराने अद्भुत कार्यक्रम के गुणगान में लगे हैं… बतौर मेहमान, मेजबान की एंकरिंग का महिमा मंडन किया जा रहा है…
इंडिया टीवी का खर्चीला प्रोग्राम यानि मीडिया के भ्रष्टाचार पर कोई जुबान क्यों नहीं खोलता?
Mohammad Anas : INDIA TV पर जश्न का माहौल है। मौका है नाटकीय और पहले से तय सवाल जवाब वाले शो ‘आपकी अदालत’ के 21 साल पूरे होने के। हर क्षेत्र के दिग्गज मौजूद हैं। पूरे प्रोग्राम पर अमूमन कितना खर्च हो रहा है, यह मेहमानों की लिस्ट देख कर आप अंदाजा लगा सकते हैं। पैसे की बर्बादी पर क्या कोई चैनल टूटेगा या फिर आज़म की बग्घी और यादव सिंह की चटाई के नीचे छिपे नोट पर ही लोटपोट होना आता है? मीडिया के भ्रष्टाचार पर कोई ज़ुबान क्यों नहीं खोलता।
क्या एबीपी न्यूज अपनी चलाई सनसनियों पर एक बार भी नजर डालने को तैयार है?
Sheetal P Singh : लम्बे समय तक पेड मीडिया और चिबिल्ले चैनल इस कथित बाबा की गप्पों को UPA2 की हैसियत बिगाड़ने के लिये राष्ट्रीय ख़बर बनाते रहे। अब कोई अपनी ही चलाई सनसनियों पर एक बार भी नज़र डालने को तैयार नहीं है… और यह ढोंगी बाबा तो खैर टैक्सपेयर की कमाई से Zplus कैटगरी का हो ही गया!
मैनेज आपके मालिक होते हैं और आपको सैलरी उनके हिसाब से मैनेज होने के लिए मिलती है, जर्नलिज्म करने के लिए नहीं
Vineet Kumar : तमाम न्यूज चैनल और मीडिया संस्थान प्रधानसेवक के आगे बिछे हैं..उन्हें देश का प्रधानमंत्री कम, अवतारी पुरुष बताने में ज्यादा रमे हुए हैं लेकिन उनकी ही पार्टी की सरकार की शह पर मीडियाकर्मियों की जमकर पिटाई की जाती है. पुलिस उन पर डंडे बरसाती है..हमने तो जनतंत्र की उम्मीद कभी की ही नहीं लेकिन आपने जो चारण करके जनतंत्र के स्पेस को खत्म किया है, अब आपके लिए भी ऑक्सीजन नहीं बची है..
बुढ़ापे में पैसे के लिए पगलाया अरुण पुरी अब ‘पत्रकारीय वेश्यावृत्ति’ पर उतर आया है…
Yashwant Singh : फेसबुक पर लिखने वालों, ब्लाग लिखने वालों, भड़ास जैसा पोर्टल चलाने वालों को अक्सर पत्रकारिता और तमीज की दुहाई देने वाले बड़े-बड़े लेकिन परम चिरकुट पत्रकार इस मुद्दे पर पक्का कुछ न बोलेंगे क्योंकि मामला कथित बड़े मीडिया समूह इंडिया टुडे से जुड़ा है. बुढ़ापे में पैसे के लिए पगलाए अरुण पुरी क्या यह बता सकेगा कि वह इस फर्जी सर्वे के लिए बीजेपी या किसी अन्य दल या कार्पोरेट से कितने रुपये हासिल किए हैं… इंडिया टुडे वाले तो सर्वे कराने वाली साइट के पेजेज को खुलेआम अपने एफबी और ट्विटर पेजों पर शेयर कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि मामला सच है और इंडिया टुडे वालों ने केजरीवाल को हराने के लिए किसी बड़े धनपशु से अच्छे खासे पैसे हासिल किए हैं.
इंडिया टुडे वालों के फर्जी सर्वे की खुली पोल, केजरीवाल ने पूछा- क्या यही है पत्रकारिता?
इंडिया टुडे समूह के फर्जी सर्वे और घटिया पत्रकारिता से अरविंद केजरीवाल नाराज हैं. अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्टवीट करके लोगों से पूछा है कि क्या इसे ही पत्रकारिता कहते हैं? साथ ही केजरीवाल ने एक वीडियो लिंक दिया है जिसमें इंडिया टुडे के फर्जी सर्वे की असलियत बताई गई है. अरविंद केजरीवाल के पेज पर शेयर किए गए लिंक से यू-ट्यूब पेज पर जाने पर एक वीडियो मिलता है. इस वीडियो में दिखाया गया है कि देश का नामी इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा न्यूजफिल्क्स डाट काम नामक एक वेबसाइट के जरिए एक सर्वे कराया रहा है जिसमें लोगों से पूछा गया है कि वह केजरीवाल को कितना नापसंद करते हैं और ये कि क्या आप केजरीवाल को दोबारा मौका देंगे?
मौलाना आजाद की जयंती पर मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा पुरानी स्टोरी गरम करके परोसने के मायने
Vineet Kumar : आज यानी 11 नवम्बर को मौलादा अबुल कलाम आजाद की जयंती है. इस मौके पर मेनस्ट्रीम मीडिया ने तो कोई स्टोरी की और न ही इसे खास महत्व दिया. इसके ठीक उलट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उनके ना से जो लाइब्रेरी है, उससे जुड़ी दो साल पुरानी बासी स्टोरी गरम करके हम दर्शकों के आगे न्यूज चैनलों ने परोस दिया. विश्वविद्यालय के दो साल पहले के एक समारोह में दिए गए बयान को शामिल करते हुए ये बताया गया कि इस लाइब्रेरी में लड़कियों की सदस्यता दिए जाने की मनाही है. हालांकि वीसी साहब ने जिस अंदाज में इसके पीछे वाहियात तर्क दिए हैं, उसे सुनकर कोई भी अपना सिर पीट लेगा. लेकिन क्या ठीक मौलाना आजाद की जयंती के मौके पर इस स्टोरी को गरम करके परोसना मेनस्ट्रीम मीडिया की रोचमर्रा की रिपोर्टिंग और कार्यक्रम का हिस्सा है या फिर अच्छे दिनवाली सरकार की उस रणनीति की ही एक्सटेंशन है जिसमे बरक्स की राजनीति अपने चरम पर है. देश को एक ऐसा प्रधानसेवक मिल गया है जो कपड़ों का नहीं, इतिहास का दर्जी है. उसकी कलाकारी उस दर्जी के रूप में है कि वो भले ही पाजामी तक सिलने न जानता हो लेकिन दुनियाभर के ब्रांड की ट्राउजर की आल्टरेशन कर सकता है. वो एक को दूसरे के बरक्स खड़ी करके उसे अपनी सुविधानुसार छोटा कर सकता है. मेनस्ट्रीम मीडिया की ट्रेंनिंग कहीं इस कलाकारी से प्रेरित तो नहीं है?
न्यूज चैनलों के लिए ‘वाड्रा मीडिया दुर्व्यवहार प्रकरण’ सत्ता के प्रति निष्ठा जताने का मौका
हरियाणा में भूमि घोटाला पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा से पूछे गए सवाल पर तिलमिलाये वाड्रा ने पत्रकारों से जो बदसलूकी की उसकी गर्मी 24 घंटे तक कायम है और शायद आगे भी कायम रहेगी। प्रायः हर चैनल एएनआई का माईक झटकने का सीन हजार बार दिखा चुका है। एक पत्रकार के रूप में हम वाड्रा के कृत्य की कड़े से कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं। पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से कार्य करते रहने की आजादी की पुरजोर मांग करते हैं। शनिवार के प्रकरण में घटना से बड़ी राजनीति है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता।
भास्कर चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल पर शादी का झांसा देकर देश-विदेश में रेप करने का आरोप (देखें पीड़िता की याचिका)
डीबी कार्प यानि भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ एक महिला ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है. इस बाबत उसने पहले पुलिस केस करने के लिए आवेदन दिया पर जब पुलिस वालों ने इतने बड़े व्यावसायिक शख्स रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ मुकदमा लिखने से मना कर दिया तो पीड़िता को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. कोर्ट में पीड़िता ने रमेश चंद्र अग्रवाल पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. पीड़िता का कहना है कि रमेश चंद्र अग्रवाल ने उसे पहले शादी का झांसा दिया. कई जगहों पर शादी रचाने का स्वांग किया. इसके बाद वह लगातार संभोग, सहवास, बलात्कार करता रहा.
किसी पत्रकार ने कोई सवाल नहीं पूछा, सब के सब हिहियाते हुए सेल्फी लेते रहे…
Dayanadn Pandey : लोकतंत्र क्या ऐसे ही चलेगा या कायम रहेगा, इस बेरीढ़ और बेजुबान प्रेस के भरोसे? कार्ल मार्क्स ने बहुत पहले ही कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब व्यवसाय की स्वतंत्रता है। और कार्ल मार्क्स ने यह बात कोई भारत के प्रसंग में नहीं, समूची दुनिया के मद्देनज़र कही थी। रही बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तो यह सिर्फ़ एक झुनझुना भर है जिसे मित्र लोग अपनी सुविधा से बजाते रहते हैं। कभी तसलीमा नसरीन के लिए तो कभी सलमान रश्दी तो कभी हुसेन के लिए। कभी किसी फ़िल्म-विल्म के लिए। या ऐसे ही किसी खांसी-जुकाम के लिए। और प्रेस? अब तो प्रेस मतलब चारण और भाट ही है। कुत्ता आदि विशेषण भी बुरा नहीं है।
ब्रेकिंग न्यूज… सुधीर चौधरी की सेल्फी… ब्रेकिंग न्यूज… दीपक चौरसिया का हालचाल …
मैं आज के दिन को मीडिया के लिहाज से शर्मनाक दिन कहूंगा. पत्रकारिता के छात्रों को कभी पढ़ाया जाएगा कि 25 अक्टूबर 2014 के दिन एक बार फिर भारतीय राजनीति के आगे पत्रकारिता चरणों में लोट गई. धनिकों की सत्ता भारी पड़ गई जनता की आवाज पर. कभी इंदिरा ने भय और आतंक के बल पर मीडिया को रेंगने को मजबूर कर दिया था. आज मोदी ने अपनी ‘रणनीति’ के दम पर मीडिया को छिछोरा साबित कर दिया. दिवाली मिलन के बहाने मीडिया के मालिकों, संपादकों और रिपोर्टरों के एक आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए. देश, विदेश, समाज और नीतियों पर कोई बातचीत नहीं हुई. सिर्फ मोदी बोले. कलम को झाड़ू में तब्दील हो जाने की बात कही. और, फिर सबसे मिलने लगे. जिन मसलों, मुद्दों, नारों, आश्वासनों, बातों, घोषणापत्रों, दावों के नाम पर सत्ता में आए उसमें से किसी एक पर भी कोई बात नहीं की.
राजदीप सरदेसाई के धतकरम के बहाने अपने दाग और जी न्यूज के पाप धोने में जुटे सुधीर चौधरी
सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज को… जी न्यूज पर पत्रकारिता की रक्षा के बहाने हाथापाई प्रकरण को मुद्दा बनाकर राजदीप सरदेसाई को घंटे भर तक पाठ पढ़ाते सुधीर चौधरी को देख यही मुंह से निकल गया.. सोचा, फेसबुक पर लिखूंगा. लेकिन जब फेसबुक पर आया तो देखा धरती वीरों से खाली नहीं है. युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने सुधीर चौधरी की असलियत बताते हुए दे दनादन पोस्टें लिख मारी हैं. विनीत की सारी पोस्ट्स इकट्ठी कर भड़ास पर प्रकाशित कर दिया. ये लिंक http://goo.gl/7i2JRy देखें. ट्विटर पर पहुंचा तो देखा राजदीप ने सुधीर चौधरी पर सिर्फ दो लाइनें लिख कर तगड़ा पलटवार किया हुआ है. राजदीप ने रिश्वत मांगने पर जेल की हवा खाने वाला संपादक और सुपारी पत्रकार जैसे तमगों से सुधीर चौधरी को नवाजा था..
भारत के मोदी पेड मीडियाकरों और पत्रकारों के ध्यानार्थ…. जरा अमेरिकी मीडिया की इस तथ्यपरक रिपोर्टिंग को भी देख-पढ़ लें
Mohammad Anas : भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. भारतीय मीडिया ने मोदी के दौरे को त्यौहार की तरह मनाने का निर्णय लेते हुए बहुत से पत्रकारों को अमेरिका भेज दिया. कई बड़े मीडिया घराने मोदी की यात्रा को चौबीस घंटे की कवरेज तक दे रहे हैं. ऐसे में अमेरिका के दो बड़े मीडिया समूह में मोदी की अमेरिकी यात्रा पर चर्चा की कितने ख़बरे दिखाई जा रही हैं इसका पता लगाया जाना ज़रूरी हो गया है. भारतीय एंकर और रिपोर्टर पूरे अमेरिका को मोदीमय बता रहे हैं,ठीक वैसे ही जैसे पूरे भारत को मोदीमय बताते रहे हैं. लेकिन हक़ीकत ये है की मोदी से जुड़ी ख़बरों को पढ़ने के लिए सर्च इंजन में जा कर मोदी लिखना पड़ रहा है,आँखों के सामने ट्रेंड नहीं हो रही ख़बरें.
भ्रष्टाचारी के यार हजार, सदाचारी अकेले खाए मार… (संदर्भ- डीजीपी सिद्धू, आईपीएस अमिताभ और देहरादून पत्रकार प्रकरण)
Yashwant Singh : पत्रकार अगर भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की पैरवी न करें तो भला कैसे जूठन पाएंगे… मार्केट इकानामी ने मोरल वैल्यूज को धो-पोंछ-चाट कर रुपय्या को ही बप्पा मय्या बना डाला तो हर कोई नीति-नियम-नैतिकता छोड़कर दोनों हाथ से इसे उलीचने में जुटा है.. नेता, अफसर, कर्मचारी से लेकर अब तो जज तक रुपये की बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं.. पैसे ले देकर पोस्टिंग होती है, पैसे ले देकर गलत सही काम किए कराए जाते हैं और पैसे ले देकर मुकदमें और फैसले लिखे किए जाते हैं, पैसे ले देकर गड़बड़झाले-घोटाले दबा दिए जाते हैं… इस ‘अखिल भारतीय पैसा परिघटना’ से पत्रकार दूर कैसे रह सकता है.. और, जब मीडिया मालिक लगभग सारी मलाई चाट जा रहे हों तो बेचारे पत्रकार तो जूठन पर ही जीवन चलाएंगे न…
प्रियंका गांधी ने जिन अखबारों और मीडिया हाउसों को नोटिसा भेजा, उनका नाम-पता किसी ने नहीं छापा
मीडिया वाले खबर पूरी नहीं देते. आधी अधूरी खबर से कोई भी जागरूक पाठक संतुष्ट नहीं हो पाता. प्रियंका गांधी द्वारा एक साप्ताहिक अखबार और कुछ मीडिया हाउसों को कानूनी नोटिस भेजने संबंधी खबर को ही लीजिए. इस खबर को समाचार एजेंसियों से लेकर अखबारों, चैनलों तक ने रिलीज किया, छापा, दिखाया. लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि जिन जिन मीडिया हाउसों और अखबारों को प्रियंका ने नोटिस दिया है, उनके नाम क्या हैं. सोचिए, यही प्रकरण अगर मीडिया से रिलेटेड नहीं होता तो मीडिया वाले कितना बढ़ चढ़कर उन पार्टियों के नाम बताते जिन्हें नोटिस भेजा गया है. यहां तक कि जिनको नोटिस भेजा गया है, उनका भी पक्ष छापते.
हिंदुस्तान अखबार का हाल : फोटो सिंह की पत्रकारिता, मीडिया में भाई-भतीजावाद और करप्शन का चहुंमुखी गठजोड़
यूपी के बागपत जिले में हिन्दुस्तान अखबार के प्रभारी नाजिम आजाद हैं। जब से यह संस्करण शुरू हुआ है तभी से प्रभारी पद पर नाजिम आसीन हैं। जब हिन्दुस्तान का संस्करण शुरू हुआ तो बागपत की तहसील खेकड़ा में फोटो सिंह नामक पत्रकार हुआ करते थे। ये माननीय सरकारी नौकर हैं। बताया जाता है कि फोटो सिंह ट्यूबवैल ऑपरेटर हैं। इसके अलावा फोटो सिंह की खासियत है कि यह पत्रकारिता के माध्यम से समाजहित के बजाय स्वहित भी बखूबी साधना जानते हैं। फोटो सिंह काफी पुराने पत्रकार हैं और इससे पहले अमर उजाला में भी कार्य कर चुके हैं। जहां तक पता चला है कि अमर उजाला के तत्कालीन स्थानीय संपादक ने उनके सरकारी नौकरी का पता चलने पर उन्हें खेकड़ा प्रतिनिधि पद से हटा दिया था। उसके बाद कुछ समय के लिए जनाब घर पर बैठे और फिर हिन्दुस्तान का दामन थाम लिया।
सुदेश वर्मा ने क्यों मोदी पर लिखी किताब का तीन बार कराया विमोचन?
आज के जमाने में लाभ पाने के लिए ना जाने कौन कौन से खेल किए जाते हैं. इस समय भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सिक्का चल रहा है. तो जाहिर है कि लाभ उनके नाम पर ही मिल सकता है. एक पूर्व पत्रकार हैं सुदेश वर्मा. उनका खुद का पब्लिशिंग हाउस भी है. भाजपा के दुर्दिन के दौर में वे इस पार्टी के आलोचक भी रहे हैं, लेकिन संभावनाएं सूंघने में माहिर झारखंड निवासी सुदेश वर्मा ने मोदी पर एक किताब लिख डाली – नरेंद्र मोदी- द गेम चेंजर.
मोदी पर लिखी किताब का तीसरी बार विमोचन करते केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली एवं प्रकाश जावड़ेकर
दारुबाजी में पत्रकारों से होटल कर्मियों ने की मारपीट, मामला दर्ज
उरई (जालौन)। शहर के चर्चित शाकाहारी दांतरे होटल में दारुबाजी करना उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) के प्रदेश अध्यक्ष रतन दीक्षित को महंगा पड़ गया। विवाद हो जाने पर होटल के नौकरों ने उनके समेत कई पत्रकारों से मारपीट की। उनके साथ उपजा के प्रदेश मंत्री व यूनीवार्ता के कथित संवाददाता एवं हरदोई गूजर इंटर कालेज के शिक्षक दीपक अग्निहोत्री, लोकभारती के संवाददाता और उपजा का जिला कोषाध्यक्ष ओमप्रकाश राठौर से भी होटल कर्मचारियों मारपीट की। बाद में होटल मालिक अनुराग दांतरे ने संजय मिश्रा सहित तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ कोतवाली में मुकदमा भी दर्ज करवा दिया।
TRAI details corruption in Indian Media
You are unlikely to read about the Telecom Regulatory Authority of India’s latest recommendations on Media ownership in tomorrow’s newspaper, or hear about it on tonight’s prime time TV. That is because it is perhaps the biggest ‘expose’ of the not-so-wholesome, behind-the-scenes activities in Indian media ever, except perhaps the famous Radia tapes issue. In painstaking detail, TRAI, headed by chairman Rahul Khullar, has done a thorough job of explaining what is wrong with the state of Indian media. It has highlighted two big problems –