मौसम एक है। उसे महसूस करने वाले बेहिसाब। मैं जो फील कर रहा हूं, पिछले तीन दिन से, वो यूं है…
ये विशुद्ध आध्यात्मिक मौसम है।
ये चरम शांत मौसम है।
ये दीक्षा देने लेने वाला मौसम है।
यह प्रकृति के रस से सराबोर हो उसकी गोद में खिलखिलाने खेलने वाला मौसम है।
यह अवाक मूक निःशब्द चमत्कृत झंकृत करने वाला मौसम है।
यह गहरे ध्यान में उतरने का मौसम है।
यह अनायास नाचने का मौसम है।
यह हाथ में हाथ डाले साथ चलते चलते भीगने लिपटने का मौसम है।
यह प्यार का मौसम है।
यह पूजा का मौसम है।
यह श्रद्धा में सिर झुकाने का मौसम है।
यह तुम्हारा नाम लेने जपने का मौसम है।
यह बारिश की बूंदों संग आसमान से धरती पर आने का मौसम है।
यह बेवजह किसी को खत में ”कैसा अजीब है मौसम जो दिल में रह रह कर हूक उठाए” लिखने के बाद इसे कागज की नाव बना सामने वाली उफनती गली नाली में बहा देने का मौसम है।
यह रपटने फिसलने हँसने का मौसम है।
यह नेचर नियति के पीरियड्स वाले दिन हैं, सो सुस्ताने का मौसम है।
यह सूरज के प्रेम में पड़कर गहरे सो जाने और धरती को उसके हाल पर छोड़ जाने का मौसम है।
यह योद्धाओ-बंजारों के घाव सुखाने तलवार मांजने और भरपेट खाकर एक जगह पड़े पड़े बोर होते रहने का मौसम है।
यह साधु संत संन्यासी के लिए जजमान के ठिकाने पर पहुंचने टिकने वाला चतुर्मास का मौसम है।
ये शराबी के लिए हर वक़्त पीने का क्या खूब मदमस्त मौसम है।
भक्तों के लिए सावन के दिन, कांवण के दिन, हर पल बम बम भोले हर हर महादेव का मौसम है।
कवियों के लिए इस मौसम की पुरानी कविताएं बांचने, नई लिखने का मौसम है।
यह उत्पीड़ित स्त्री के लिए बिना बरसाती ओढ़े बारिश की बूंदों से स्वतः आंसू धोते भीगते घर छोड़ जाने और अपने हक़ के लिए लड़ने का एलान करते हुए नए तेवर में तब्दील हो जाने का मौसम है।
ये किसान स्त्रियों मज़दूरिनों के लिए रोपनी गवनी का मौसम है।
यह गरीब और कमजोर प्राणियों के लिए काम न मिलने और भूखे रह मौसम को दुत्कारने का मौसम है।
सबके लिए कुछ न कुछ है ये मौसम।
पर मुझ भड़ासी को अब तक समझ न आ रहा….
कौन सा है इतने सारे मौसमों में आखिर मेरा?
या जरा जरा थोड़ा थोड़ा सबके हिस्से का मेरा?
हर पल, हर मौसम में समाहित मेरा मौसम
चुपचाप, उल्लसित आनंदित…
टप टप टप… उफ्फ ये मौसम।
जैजै
@स्वामी भड़ासानंद
भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.