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अखिलेश यादव जी सुनहरे विज्ञापनों से उत्तर प्रदेश की वास्तविकता छुपाना चाहते हैं!

अवधेश पाण्डेय : आज के द इण्डियन एक्सप्रेस अखबार के साथ सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित 24 पेज का टेबलायड विज्ञापन आया है, जिसमें पंपिंग सेट का फोटू चेप कर उसे अखिलेश सरकार की उपलब्धि बताया गया है। दूसरे पेज पर एक कविता छपी है, जिसमें कहा गया है कि महिलाएँ बेखौफ बाहर जाती हैं और हवा में भाईचारा घुला हुआ है। आँखो में सीधे सीधे धूल झोंकने का काम उस हाईटेक गौतमबुद्ध नगर जिले में हो रहा है, जहाँ कि महिलाओं ने आभूषण पहनने बंद कर दिये हैं और अभी कल ही एक व्यक्ति के परिवार पर गौकशी की प्राथमिकी दर्ज हुई है। अपना मानना है कि अखिलेश जी वह धूलझोंकू मुख्यमंत्री हैं, जो सुनहरे विज्ञापनों से प्रदेश की वास्तविकता छुपाना चाहते हैं।

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अवधेश पाण्डेय : आज के द इण्डियन एक्सप्रेस अखबार के साथ सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित 24 पेज का टेबलायड विज्ञापन आया है, जिसमें पंपिंग सेट का फोटू चेप कर उसे अखिलेश सरकार की उपलब्धि बताया गया है। दूसरे पेज पर एक कविता छपी है, जिसमें कहा गया है कि महिलाएँ बेखौफ बाहर जाती हैं और हवा में भाईचारा घुला हुआ है। आँखो में सीधे सीधे धूल झोंकने का काम उस हाईटेक गौतमबुद्ध नगर जिले में हो रहा है, जहाँ कि महिलाओं ने आभूषण पहनने बंद कर दिये हैं और अभी कल ही एक व्यक्ति के परिवार पर गौकशी की प्राथमिकी दर्ज हुई है। अपना मानना है कि अखिलेश जी वह धूलझोंकू मुख्यमंत्री हैं, जो सुनहरे विज्ञापनों से प्रदेश की वास्तविकता छुपाना चाहते हैं।

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Sachin Kumar Jain : एटा के अलीगंज में जहरीली शराब पीने से 21 लोगों की मृत्यु। पिछले साल जनवरी में मलीहाबाद में 35 लोग मरे थे। ये मौतें हल्की और गैर-उल्लेखनीय हैं,  क्योंकि इससे फायदा नहीं मिलता और विद्वेष फैलाने का अवसर भी नहीं मिलता। हम एक दोगले समाज में रहते हैं, जहाँ फायदा होने पर हिंसा को स्वीकार कर लिया जाता है। दानवों का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि वे एक हिंसा का विरोध करवाते हैं और अपने द्वारा की गयी हिंसा को धर्म का आवरण ओढ़ा देते हैं।

Akash Kumar Baranwal : 12 जुलाई को सैदपुर (गाजीपुर) में आयोजित मंत्री शिवपाल की सभा में आत्मदाह करने वाले किशोहरी के सत्येंद्र की मौत ने आज सरकार की खामियों और अव्यवस्था की पोल खोल दी। वैसे कमी तो 12 जुलाई को साबित हो गयी थी लेकिन आज सत्येंद्र की मौत ने सरकार को पूर्णतः हाशिये पर खड़ा कर दिया। सत्येंद्र की जगाई इस अलख का शासन प्रशासन पर कितना असर होता है ये भविष्य में निर्धारित होगा लेकिन इतना तो साफ है कि जहाँ नौकरशाह यानी अधिकारी वर्ग में अब सत्ता का खौफ पूरी तरह से खत्म हो गया है वहीं शासन कर रहे मंत्री नेताओं में भी कानून का भय ख़त्म हो गया है जिसका नतीजा है सत्येंद्र की मौत। शासन और प्रशासन,  दोनों यही सोच रखते हैं कि हमारा कोई क्या कर लेगा। वक़्त है जनता के उबलने का। जब जनता उबलेगी तो दोनों को डरना होगा,  और जब जनता से ये दोनों डरेंगे तो इन्साफ हर किसी को मिलेगा।  वैसे इतनी संवेदनहीनता तो कसाई अपने जानवर के प्रति नहीं दिखाता है जैसा शासन प्रशासन ने सत्येंद्र के साथ दिखाया। जिस दिन सत्येंद्र ने आत्मदाह किया उस दिन उसकी वजह तलाशने और जांच की बजाय आत्महत्या करने के खिलाफ प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई शुरू की जाने लगी।  भला हो सपा विधायक सुभाष पासी और बसपा प्रत्याशी राजीव किरण का जो वाराणसी स्थित अस्पताल पंहुचे और उसके परिजनों को ढाढ़स बंधाकर आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। हम इस दुख की घडी में उसके परिजनों के साथ हैं।

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Ajay Prakash : क्या आप इस खबर को देश की खबर बनाएंगे। देश की सबसे बड़ी इलेक्ट्रानिक कंपनियों में शुमार ‘एलजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड’ की ग्रेटर नोएडा,  कासना रोड यूनिट में 11 तारीख से करीब 620 कर्मचारी हड़ताल पर हैं। कर्मचारियों ने हड़ताल प्रबंधन की मनमानी और तानाशाही के खिलाफ की है। लेकिन एक लाइन भी किसी मीडिया में कोई खबर नहीं है। हड़ताल में शामिल दर्जनों माएं,  बहनें कई दिनों से अपने घर नहीं लौटी हैं,  इनमें कई छोटे बच्चों की मांए भी हैं। एलजी कर्मचारी मनोज कुमार से मिली जानकारी के मुताबिक उन्होंने स्थानीय मीडिया को बुलाया भी पर किसी ने कोई एक पंक्ति की खबर नहीं लिखी। कर्मचारी और प्रबंधन के बीच टहराहट बहुत मामूली मांगों को लेकर है। कर्मचारियों की मांग है कि उनकी शिफ्ट 8 घंटे की जाए जो कि अभी 12 से 13 घंटे की है। साथ ही कर्मचारी चाहते हैं कि डीए,  ट्रांसपोर्ट अलाउंस दिया जाए। कर्मचारियों का कहना है कि इस मांग को पूरा करने के लिए कर्मचारियों ने एक यूनियन बनाने की कोशिश की। मगर एलजी प्रबंधन ने रजिस्ट्रार को पैसा खिलाकर उनकी यूनियन का रजिट्रेशन रद्द कर दिया। प्रबंधन यूनियन का रजिस्ट्रेशन रद्द कराने के बाद जो 11 लोग यूनियन के अगुआ थे उनका ट्रांसफर नोएडा से हैदराबाद,  जम्मू,  मध्यप्रदेश आदि जगहों पर कर दिया। ऐसे में अब कर्मचारियों की पहली मांग है कि पहले उनके नेताओं का ट्रांसफर रद्द हो और फिर उनकी सभी मांगों पर प्रबंधन वार्ता करे और निकाले। पर प्रबंधन इस पर कान देने को तैयार नहीं। उसे लगता है कि वह विज्ञापन देकर मीडिया को खरीद चुका है। मगर क्या हम आप तो नहीं बिके हैं,  इसे आप अपनी खबर बनाईए और कर्मचारियों की आवाज बनिए, उनके आंदोलन का समर्थन कीजिए।

सौजन्य : फेसबुक

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