एक घोटाला मध्यप्रदेश का जिसे विज्ञापन घोटाला कहा जा रहा है। बहरहाल इस घोटाले के बहाने कई और भी परतें उधड़ रही हैं और कुछ असलियतें सामने आ रही हैं जिनकी तरफ कोई दिन के उजाले में भी देखने को तैयार नहीं है। इस मामले की लिखी गई खबर में वेबसाईटस की संख्या लिखी 235 जबकि सूची में वेबसाईटस हैं 259 । गिनती फिर से करिये। दे कॉपी पेस्ट दे कॉपी पेस्ट किये जा रहे हैं। सूची के अनुसार जितना पूरी वेबसाई्टस को विज्ञापन को नहीं दिये गये उससे कहीं ज्यादा तो सिर्फ एक चैनल को पकड़ा दिये गये। बाजी मार गईं तमाम तरह की सोसयटीज और क्षेत्रीय प्रचार कंपनियां इनमें कई करोड़पतिये हैं।
कुछ ऐसे भी महारथी हैं जो नौकरियां भी कर रहे हैं वेबसाईट्स भी चला रहे हैं और सोसायटीज में भी कमा ले गये। जमीनों और सरकारी बंगलों की सूची की तो अभी बात ही नहीं हो रही, जिसमें सोसयटीज बनाकर लाखों की जमीन औने—पौने दामों में दे दी गई। और भी दिलचस्प बात ये कि कई रिटायर्ड जनसंपर्क अधिकारी पत्रकार बनकर इन सोसायटीज में तो घुसपैठ कर ही गये वेबसाईट्स बनाकर पत्रकार भी बन गये। यही रिटायर्ड अधिकारीगण पत्रकारों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते घूम रहे हैं पत्रकारों को चार वेबसाईट नहीं चलानी चाहिये।
क्यों साहब आप जनसंपर्क अधिकारी रहते तबादलों से कमाई कर सकते हैं,सरकारी बंगलों में रह सकते हैं और कहीं से सूंघ लिया तो पत्रकार बनकर जमीन पर भी कब्जा कर सकते हैं और पत्रकार के असली काम पर ही सवाल? कमाल की नैतिकता है। वेबसाईट्स को लेकर सरकारों की नीति में भी विरोधाभास है। सरकार को वेबसाईट्स को विज्ञापन देने से गुरेज नहीं है मगर जनसंपर्क की संवाददाता सूची में वेबसाइट पत्रकारों का नाम शामिल करने से परहेज है। और भी कई नियम हैं जो प्रिंट—इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिये तो हैं मगर वेबमीडिया के लिये नहीं। बीमारी के नाम पर खैरात ऐसी बंटती है कि भिखारी भी शरमा जायें मगर वेबसाईट्स को विज्ञापन देने में ही लोहे के चने चबवा दिये जाते हैं। सबसे बड़ा खेल स्मारिकाओं में फोटोकॉपी करो कवर बदलो और लो विज्ञापन।
ई—गर्वनेंस में सफलता के आयामों की तरफ बढ़ती सरकारों को समाचार वेबसाइट्स के बारे में फिर से नीति बनाने की जरूरत है। सूत्रों के अनुसार अभी—भी जो घोटाला सामने आया है उसमें भी कई खास तथ्यों की तरफ ध्यान देने के बजाय नीति यह बनाई जा रही है कि हिट्स से विज्ञापन तय होंगे तो नया क्या है पहले भी यही था। उनका तो फिर भी कुछ नहीं बिगड़ना जो अंगद के पैरों की तरह जमे हुये हैं।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Comments on “मध्य प्रदेश विज्ञापन घोटाले के बहाने उघड़ती असलियत को कोई दिन के उजाले में भी नहीं देखना चाहता”
पूरे सीपीआर विभाग में जबर्दस्त भ्रष्टाचार मचा हुआ है। वेबसाइट में विज्ञापन की सूची को इंडिया टीवी के प्रबंधन को भी ध्यान से देखना चाहिए, किसकी पत्नी के नाम पर कितने लाख की कमाई की गई। और यदि सही जानकारी मिल सके तो यह भी पता करें कि कितने मकान अब तक भोपाल शहर में खरीदे गए और प्लाॉट कब्जाए गए।
पहले सीपीआर विभाग में उन अफसरान को ढ़ूंढ़ा जाए, जो कि कांग्रेसी नेताओं के समय, उनके आशीर्वाद से नियुक्त हुए थे और अब तक वफादारी निभा रहे हैं, फिर भले ही उनकी नियुक्ति कहीं भी रहे। वे आज भी पूर्व मुख्यमंत्रियों के गुण गाते नहीं थकते और उनके इशारे पर सरकार में कील ठोंक देते हैं। आखिर ये अफसर मीडिया में सरकार का बचाव क्यों नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस प्रदेश में फिर मजबूत हो रही है। दीवार की लेखनी को पढ़ें।