विजय दर्डा-
दिल्ली की हालत बहुत खराब है…! बिल्कुल बिहार जैसे हालात हैं। मैं पिछले कुछ दिनों से लगातार कुछ मित्रों के रिश्तेदारों, कुछ जानपहचान के रिश्तेदारों, कुछ न जानने वाले लोगों के फोन के कारण दिल्ली के अस्पतालों में बेड ढूंढने की भागदौड़ में लगा हूं।
लोकमत परिवार के लोगों के माता पिता, सास ससुर और अन्य रिश्तेदारों के लिए मदद ढूंढता रहा हूं। अब तो स्थिति यह आ गई कि लोकमत में मेरे साथ काम करने वाले संजीव कुमार गुप्ता और नितिन अग्रवाल के लिए ऑक्सिजन वाले बेड ढूंढते ढूंढते परेशान हो गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने मेरी मदद की।
किसी तरह लोकनायक जयप्रकाश नारायण हॉस्पिटल में एक बेड और एक दूसरे हॉस्पिटल में एक बेड मिला। …लेकिन सोमवार की रात को संजीव की हालत खराब होनी शुरू हुई। कुछ देर पहले ही मैंने हमारे नेशनल एडिटर हरीश गुप्ता से पूछा था कि संजीव कैसे हैं? उन्होंने बताया कि वे स्टेबल हैं। मैंने अपने निजी सहायक प्रवीण भागवत से भी पूछा और उन्होंने भी कहा कि संजीव स्टेबल हैं।
रात करीब 11 बजे अचानक फोन आता है कि उनकी हालत बिगड़ रही है। ऑक्सिजन लेवल 70 आ गया है। फिर मैं दरबदर भटकता रहा। दरवाजे खटखटाता रहा। कोई नही सुन रहा था यानी कोई मेरी मदद नहीं कर पा रहा था। मैंने भोपाल में एक मित्र को फोन किया, मुंबई में मेरे मित्र को फोन किया कि दिल्ली में मुझे एक आईसीयू बेड चाहिए। नागपुर के डॉक्टर मित्रों को फोन किया कि दिल्ली में आपके मित्र हों तो देखिए। मैंने मुख्यमंत्री जी को रात को फिर फोन किया लेकिन दुर्भाग्यवश उनसे संपर्क नही हो पाया। रात को ही मैंने डॉ. नरेश त्रेहान को नींद में से उठाया। उन्होंने कहा कि आज एक भी बेड उपलब्ध नहीं है। मेदान्ता हॉस्पिटल के बाहर एम्बुलेंस की भीड़ लगी हुई है। मैं सुबह कुछ करता हूँ। मैंने लीगली स्पीकिंग के संपादक तरुण नांगिया को फोन किया और कहा कि आपका न्यायिक क्षेत्र में काफी उठना बैठना है, देखिए कुछ व्यवस्था हो जाए। उन्होंने कोशिश की, कुछ हॉस्पिटल के नाम भी भेजे लेकिन वहां जब मेरे निजी सहायक प्रवीण ने फोन किए तो पता चला कि कोई बेड खाली नहीं है। लिस्ट कोई काम न आया।
एक मित्र ने कोई कपूर हॉस्पिटल की जानकारी दी। वहां बात की तो उन्होंने आश्वासन दिया कि आज रात तो नहीं, कल कुछ कोशिश करते हैं। एक ने कहा कि मैक्स साकेत में कोई पहुंच हो तो कल करवाने का प्रयास करते हैं। मैं टूट चुका था रात में। रात के करीब 2 बजे होंगे तब संजीव के भाई साहब का फोन आया कि कुछ हो रहा है क्या? मैंने कहा कि मैं प्रयास कर रहा हूं। आशा में बैठा हूं कि कोई फोन करेगा और मुझे ये खबर देगा कि एक बेड खाली है।
मैंने किसकी-किसकी मदद नही ली! धन्यवाद सुरेश प्रभु जी और उनके सुपुत्र अमय का जिन्होंने भरपूर कोशिश की। एक मामले में उन्होंने पहले मदद भी की थी मगर इस मामले में मदद नही हो सकी। इसके पहले जब मैं केजरीवाल जी से बात कर रहा था तो उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद अबाधित ऑक्सिजन नहीं मिल रही है।
प्रयास कर रहा हूं कि लोगों की ज्यादा से ज्यादा मदद कर सकूं। …इन सबके बीच में रात करीब तीन-साढ़े तीन बजे मैसेज आया कि संजीव गुप्ता हमे छोड़कर चले गए। पत्नी और छोटी छोटी बेटियां हैं उनकी। एक बेटी तो अभी फर्स्ट स्टैंडर्ड में पढ़ती है।
कुछ दिन पहले संजीव की आंखों का इलाज चल रहा था, ऑपरेशन भी हुआ था। तब मैंने उनसे कहा था कि संजीव अपना ध्यान रखिए।
विडंबना देखिए कि संजीव हेल्थ बीट ही देखते थे। कुछ दिन पहले ही मेरे कहने पर उन्होंने ऐम्स के निदेशक डॉ. रणदीप सिंह गुलेरिया और नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद पॉल का साक्षात्कार लिया था जो लोकमत समूह के तीनों अखबारों में छपा था।
संजीव की कमी वाकई कभी पूरी नही हो सकती।
#RIP Sanjeev Kumar Gupta
#Lokmat Delhi
Manoj Kumar Dubey
May 5, 2021 at 12:29 pm
हे , ईश्वर , रहम कर ।
इस भयावहता से दुनिया को जल्द निकाल ।
जग का कल्याण करो