यशवंत सिंह-
अमर उजाला लखनऊ के संपादक विजय त्रिपाठी सर ने भक्तई के पड़े दौरे पर कुछ यूँ चिकोटी काटी!
एक वक्त था जब विजय सर कानपुर में जनरल डेस्क (फ़्रंट पेज) इंचार्ज थे और हम उनके अधीन ट्रेनी। स्वर्गीय वीरेन डंगवाल सर तब हम लोगों के संपादक हुआ करते थे। रूटीन के कामकाज के अलावा अलग से लिखने छपने के बहुत मौक़े मिलते थे। अपने नाम से रिपोर्ताज, व्यंग्य, डायरी, संस्मरण, ट्रेवलाग आदि छपा देखना अच्छा लगता था। विजय जी मित्रवत बॉस थे। हड़काते न थे। बतियाते, गपियाते, सिखाते, घुमाते, पढ़ते-पढ़ाते।
अच्छा लगा बहुत दिन बाद उन्हें पढ़ कर। व्यंग्य प्रिय स्टाइल है। गम्भीर बात सरल सहज विनोदप्रिय तरीक़े से कहने की विधा। संपादक पद की भारी व्यस्तता और दबावों के बीच लिखने के लिए वक्त निकाल पाना ये बताता है कि उनके अंदर का पत्रकार / लेखक ज़िंदा है!
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