Sanjay Sinha : तारीख़ थी 24 दिसंबर। सर्दियों की शाम थी, मैं ज़ी न्यूज़ के दफ्तर से निकल कर घर जाने की सोच रहा था कि ब्यूरो चीफ दौड़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरे और सीधे संपादक के कमरे में घुसे। सबकी निगाहें उन पर थीं कि आख़िर ये इतनी जल्दी में क्यों हैं? मैं उनके पीछे-पीछे भागा। वो हांफते हुए बस इतना ही कह पा रहे थे कि काठमांडू से दिल्ली के लिए जो विमान उड़ा था, उसका अपहरण हो गया। पूरे न्यूज़ रूम में अफरा-तफरी मच गई।
“विमान का अपहरण?”
मुझे उस शाम का हर पल याद है। सारे रिपोर्टर, डेस्क का स्टाफ अलर्ट मोड में आ गए थे। ज़ी न्यूज़ ने ख़बर ब्रेक की थी कि इंडियन एयरलाइंस के एक विमान का अपहरण हो गया। विमान कहां उतरेगा, किसी को नहीं पता था। अपहरण किसने किया, क्यों किया ये भी किसी को नहीं पता था। ब्यूरो चीफ को यह ख़बर कहां से मिली, हम यह भी नहीं पूछ पाए थे। सरकार की ओर से इमरजंसी बैठक शुरू हो गई थी। मुझे लगता है कि उसी बैठक में से किसी ने फोन करके ये जानकारी दी थी।
अब सबकी निगाहें ख़बर के अगले चरण पर थी। सबको लग रहा था कि विमान दिल्ली के लिए उड़ा है, तो दिल्ली एयरपोर्ट पर ही उसे उतारा जाएगा। रिपोर्टरों की टीम दिल्ली एयरपोर्ट पर भेज दी गई। तब तक ख़बर आई कि विमान को अमृतसर ले जाया जा रहा है।
जैसे ही ख़बर फ्लैश हुई, हमारी एक टीम अमृतसर के लिए रवाना हो गई।
कुछ ही देर बाद ख़बर आई कि विमान को वहां से लाहौर ले जाया गया है। अजीब पहेली थी। विमान में अधिकतर यात्री तो दिल्ली के होंगे, ये हमें अंदाज़ा था, पर विमान का अपहरण क्यों किया गया, उसे अमृतसर क्यों उतारा गया, फिर लाहौर क्यों ले जाया गया, यह समझ से परे था। विमान अपहरण की ख़बरें मैंने पहले सुनी और पढ़ी थीं, पर इस तरह हर पल उससे गुज़रने का मेरा यह पहला मौका था।
अब सवाल उठा कि लाहौर किसे भेजा जाए? लाहौर जाना भी आसान नहीं था। किसके पास वीज़ा होगा? इसी उधेड़बुन में हम बैठे थे। तब तक ख़बर आई कि विमान वहां से उड़ कर दुबई में उतरने वाला है। शरद यादव तब नागरिक उड्डयन मंत्री थे। विमान दुबई में उतर चुका था और यह ख़बर भी आई थी कि अपहरणकर्ताओं ने विमान में एक व्यक्ति को चाकू मार कर घायल कर दिया है और उसे दुबई में उतारने को तैयार हो गए हैं। उसके साथ ही वे कुछ और यात्रियों को छोड़ने को भी तैयार थे। शरद यादव जी के घर से फोन आया कि मंत्री जी सुबह-सुबह दुबई के लिए निकल रहे हैं, एक टीम दुबई भेज दें।
संपादक ने मुझे बुलाया और कहा कि संजय, तुम्हें दुबई के लिए निकलना है, फटाफट घर जाओ और तैयारी करो। आधी रात हो चुकी थी। मैं घर गया, एक बैग में कुछ कपड़े लिए और निकल पड़ा एयरपोर्ट की ओर। विशेष विमान से हमें दुबई जाना था। बोर्डिंग पास लेने के बाद हम विमान में बैठ गए। विमान उड़ान भरने ही वाला था कि दुबई से निर्देश आया कि हिंदुस्तान से कोई पत्रकार वहां नहीं आएगा। अजीब स्थिति हो गई। खैर, हम वहां से निकल कर फिर चल पड़े दफ्तर की ओर।
हर पल बस यही ख़बर दिमाग में दौड़ रही थी। अब क्या होगा? अरहरणकर्ताओं ने जिस व्यक्ति को चाकू से घायल किया था, उनकी पहचान गुड़गांव के रूपन कत्याल के रूप में हुई। ये ख़बर भी आ चुकी थी कि रूपन कत्याल की मृत्यु हो गई है। सबकी उलझनें बढ़ती जा रही थीं कि आख़िर इस विमान अपहरण का मकसद क्या है? अभी तक अपहरणकर्ताओ ने अपनी स्पष्ट मांग नहीं रखी थी। पर कुछ ही देर में ख़बर आई कि विमान दुबई से कंधार के लिए उड़ गया है।
उसके बाद की कहानी आप सबको पता ही है। हालांकि आपको पहले की कहानी भी पता थी। पर कल बहुत दिनों बाद मैंने इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या आईसी-814 के हर पल को याद किया। मैंने याद किया कि कैसे काठमाडूं से उड़ते हुए 178 यात्री उस विमान में फंस गए थे। मैंने याद किया कि गुड़गांव में मेरे एक रिश्तेदार के पड़ोसी रूपन कत्याल हनीमून मनाने काठमांडू गए और फिर वहां से लौटे ही नहीं। मैंने याद किया कि जिन लोगों ने विमान का अपहरण किया था, उन लोगों ने कंधार पहुंच कर मौलाना मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद ज़रगर जैसे तीन आतंकवादियों को छुड़ाने की शर्त रख दी थी।
आप सबने वो वीडियो देखा होगा जिसमें जसवंत सिंह खुद इन आतंकवादियों को साथ लेकर कर विशेष विमान से कंधार गए थे। कल दफ्तर पहुंचते ही मुझे याद आया अजहर मसूद का वो मुस्कुराता चेहरा। करीब 17 साल पुरानी उस घटना का एक-एक सीन कल मेरी आंखों के आगे दुबारा तैरा। मेरी आंखों के आगे वो सीन इसलिए तैरा क्योंकि जैसे ही मैं दफ्तर पहुंचा, ख़बर मेरे सामने पड़ी थी कि अजहर मसूद ने पाकिस्तान सरकार से कहा है कि अगर सरकार से कुछ नहीं हो रहा, तो वो मसूद को यह ज़िम्मेदारी सौंप दे, मसूद भारत को देख लेगा। कल बहुत दिनों बाद लगा कि जो लोग संपोलों को छोड़ देते हैं, वो यह नहीं समझने की भूल करते हैं कि संपोले ही सांप बन कर फुफकारते हैं।
टीवी टुडे समूह के वरिष्ठ टीवी पत्रकार संजय सिन्हा की एफबी वॉल से.
Comments on “भाजपा राज में विमान अपहरण और ‘संपोलों’ को छोड़ा जाना… सुनिए पत्रकार संजय सिन्हा को”
What is this nonsense? What do you suggest then? They should have left people to be killed inside that plane? There is a process, those were our people, our government had to secure them at any cost. That’s what they did and I don’t find that wrong! Wrong was we could not find those terrorist again and we could not arrest or kill them.