संजय सिन्हा- एक लड़की थी। नाम था सकीना। आप नाम कुछ भी सोच लीजिए संजय सिन्हा को कोई फर्क नहीं पड़ता। पर मैंने सकीना नाम उठाया मंटो की कहानी ‘खोल दो’ से।
Tag: sanjay sinha
संजय सिन्हा के प्रमोशन से टीवी टुडे ग्रुप के किस साथी को दर्द हो गया…
Sanjay Sinha मेरे साथी का दर्द…. पिछले दिनों ऑफिस में मेरा प्रमोशन हो गया। हालांकि मेरे पद का नाम कार्यकारी संपादक पहले से है और कुछ साल पहले तक पत्रकारिता की दुनिया में इसके ऊपर किसी प्रमोशन की गुंजाइश नहीं होती थी। जब मैं जनसत्ता में उप संपादक बना था, तभी मुझे बता दिया गया …
क़मर वहीद नकवी ने समझाया था- ‘बड़े पद वालों को जूनियर संग चाय-समोसे से बचना चाहिए!’
Sanjay Sinha : टीवी न्यूज़ चैनल में संपादक होने का सबसे बड़ा दुख यही है कि अब मैं आराम से सड़क पर खड़े मूंगफली वाले से मूंगफली खरीद कर उसे वहीं फोड़-फोड़ कर नहीं खा सकता। सड़क पर खड़े शकरकंद वाले से भुना हुआ शकरकंद भी काले नमक में लपेट कर नहीं खा सकता। ऐसा नहीं है कि किसी ने मुझे मना किया है, पर अब ऐसा नहीं हो पाता। इसकी सबसे बड़ी वज़ह यही है कि मेरे ही दफ्तर के ढेर सारे जूनियर रोज़ दोपहर में सर्दियों की हल्की धूप में ये सब करते हैं और मुझे उनके सामने बॉस की तरह रहना होता है।
टीवी टुडे ग्रुप के पत्रकार संजय सिन्हा ने भी नोटबंदी के तौर-तरीके को कठघरे में खड़ा किया
Sanjay Sinha : मैं अगर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का सलाहकार होता तो जिस दिन पांच सौ और हज़ार रूपए के नोट बंद हुए उस दिन उन्हें सलाह देता कि आप भाषण में यह मत बोलिएगा कि रात बारह बजे के बाद पांच सौ और हज़ार के नोट रद्दी के टुकड़े हो जाएंगे। मैं उनसे कहता कि आप सिर्फ नोट बंद करने का ऐलान कीजिए और जनता को भरोसा दीजिए कि उनके पास जो नोट हैं, उन्हें आप इतने दिनों के भीतर बैंक में जमा करा दें। ये नोट रात 12 बजे के बाद बेशक आम प्रचलन में नहीं रहेंगे पर आप बिल्कुल परेशान न हों, इस नोट पर रिजर्व बैंक की ओर से धारक को इतने रूपए देने का वचन दिया गया है, उस वचन का पालन होगा। हां, इतना ध्यान रहे कि आपसे आयकर वाले जरूर पूछ सकते हैं कि आपके पास ये नकदी आई कहां से। इतना कहने भर से स्थिति काफी आसान हो जाती।
रेल में हवाई यात्रा के सुख बनाम भारतीय रेल
कल 08792 निजामुद्दीन-दुर्ग एसी सुपरफास्ट स्पेशल से वास्ता पड़ा। निजामुद्दीन से चलने का ट्रेन का निश्चित समय सवेरे 830 बजे है सुबह सात बजे नेशनल ट्रेन एनक्वायरी सिस्टम पर चेक किया तो पता चला ट्रेन राइट टाइम जाएगी। यहीं से चलती है इसलिए कोई बड़ी बात नहीं थी। स्टेशन पहुंचा तो बताया गया प्लैटफॉर्म नंबर चार से जाएगी। प्लैटफॉर्म पर पहुंच गया तो घोषणा हुई (संयोग से सुनाई पड़ गया वरना देश भर में कई स्टैशनों के कई प्लैटफॉर्म पर घोषणा सुनाई नहीं पड़ती है और हम कुछ कर नहीं सकते) कि ट्रेन एक घंटे लेट है। परेशान होने के सिवा कुछ कर नहीं सकता था।
भाजपा राज में विमान अपहरण और ‘संपोलों’ को छोड़ा जाना… सुनिए पत्रकार संजय सिन्हा को
Sanjay Sinha : तारीख़ थी 24 दिसंबर। सर्दियों की शाम थी, मैं ज़ी न्यूज़ के दफ्तर से निकल कर घर जाने की सोच रहा था कि ब्यूरो चीफ दौड़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरे और सीधे संपादक के कमरे में घुसे। सबकी निगाहें उन पर थीं कि आख़िर ये इतनी जल्दी में क्यों हैं? मैं उनके पीछे-पीछे भागा। वो हांफते हुए बस इतना ही कह पा रहे थे कि काठमांडू से दिल्ली के लिए जो विमान उड़ा था, उसका अपहरण हो गया। पूरे न्यूज़ रूम में अफरा-तफरी मच गई।
जानिए, रोकने के बावजूद संजय सिन्हा को क्यों इस्तीफा सौंप गई यह महिला मीडियाकर्मी
Sanjay Sinha : मेरे दफ्तर में काम करने वाली एक महिला ने कल अपना इस्तीफा सौंप दिया। वो मुझसे मिलने आई थी और बता रही थी कि उसे बहुत अफसोस है कि वो नौकरी छोड़ कर जा रही है, पर मजबूरी है। मैंने उससे पूछा कि ऐसी क्या मजबूरी है? महिला के साथ हुई बातचीत को मैं जस का तस आपके सामने रखने की कोशिश कर रहा हूं….
कभी कभी मुझे अपने पत्रकार होने पर अफसोस होता है
Sanjay Sinha : कभी कभी मुझे अपने पत्रकार होने पर अफसोस होता है। मैंने आपको बताया था कि बहुत साल पहले पटना में मेरे पिताजी का गॉल ब्लाडर का ऑपरेशन हुआ था। हालांकि पटना के एक बड़े सर्जन ने उनके पेट दर्द होने की वज़ह की जांच करके बताया था कि उन्हें पेप्टिक अल्सर है। पर जब ऑपरेशन शुरू हुआ तो उसने कहा कि पेप्टिक अल्सर तो नहीं, पर क्योंकि पेट खोल दिया गया है इसलिए गॉल ब्लाडर का ऑपरेशन कर देता हूं। उसने गॉल ब्लाडर निकाल दिया। हमें डॉक्टरी जानकारी रत्ती भर नहीं थी। डॉक्टर ने जो कहा, हमने मान लिया। ऑपरेशन के बाद पिताजी करीब हफ्ते भर तक उस डॉक्टर के नर्सिंग होम में रहे। ऑपरेशन के बाद उन्हें जब भी पेट में दर्द होता, नर्स आती और रैनबैक्सी कंपनी का एक इंजेक्शन फोर्टविन दे देती। पिताजी को इंजेक्शन लगता और वो चैन से सो जाते।
टीवी टुडे ग्रुप के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिन्हा ने सम-विषम पर अरविंद केजरीवाल को दिखाया आइना, आप भी पढ़ें..
Sanjay Sinha : आदरणीय अरविंद केजरीवाल जी, नया साल मंगलमय हो। मैं संजय सिन्हा, दिल्ली का एक आम नागरिक, आज खुद को बहुत लाचार और त्रस्त महसूस कर रहा हूं। मैं पत्रकार हूं और रोज सुबह फेसबुक पर एक पोस्ट लिखना मेरा शौक है। मैं आम तौर पर रिश्तों की कहानियां लिखता हूं। मैं स्वभाव से खुश और अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट व्यक्ति हूं। मैं दफ्तर में राजनीति की ख़बरें लिखता हूं, लेकिन कभी निज़ी ज़िंदगी में राजनीति की बातें नहीं करता।
हिंदी अखबार के उप संपादक छोकरे और अंग्रेजी अखबार की कन्या का लव जिहाद!
साल 1988 की बात है। मैं तब जनसत्ता में मुख्य उप संपादक था और उसी साल संपादक प्रभाष जोशी ने जनसत्ता के राज्यों में प्रसार को देखते हुए एक अलग डेस्क बनाई। इस डेस्क में यूपी, एमपी, बिहार और राजस्थान की खबरों का चयन और वहां जनसत्ता के मानकों के अनुरूप जिला संवाददाता रखे जाने का प्रभार मुझे सौंपा। तब तक चूंकि बिहार से झारखंड और यूपी से उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था इसलिए यह डेस्क अपने आप में सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा जिम्मेदारी को स्वीकार करने वाली डेस्क बनी। अब इसके साथियों का चयन बड़ा मुश्किल काम था। प्रभाष जी ने कहा कि साथियों का चयन तुम्हें ही करना है और उनकी संख्या का भी।
हम दोनों बेहद अकेले हैं, जीने का कोई मकसद नज़र नहीं आता, ऐसे में हम पति-पत्नी अपनी मर्जी से जान दे रहे हैं!
( File Photo Sanjay Sinha )
Sanjay Sinha : आप घर से निकलिए। लोगों से मिलिए। लोगों से बातें कीजिए। यहां फेसबुक पर आइए। अपने दिल की बात कहिए। जो दिल में आए वो कीिजए। यूं ही किसी को गले लगा लीजिए। किसी के घर यूं ही पहुंच जाइए कि आज आपकी चाय पीनी है। किसी को घर बुला लाइए कि चलो आज चाय पीते हैं, साथ बैठ कर। किसी से मुहब्बत कर बैठिए। किसी को मुहब्बत के लिए उकसाइए। कुछ भी कीजिए। लेकिन खुद को यूं तन्हा मत छोड़िए। खुद को यूं गुमसुम मत रखिए। खुद में ऊब मत पैदा होने दीजिए। कुछ न सूझे तो किसी अनजान नंबर पर फोन करके यूं ही बातें करने लगिए, लेकिन करिए जरूर।
टाइम्स ग्रुप की ‘माधुरी’, डिंपल कपाड़िया की तस्वीर, शत्रुघ्न सिन्हा के कठे होंठ, सोनाक्षी सिन्हा की रेखा से नाराजगी
Sanjay Sinha : मुझे लगता है कि मैंने अपनी फिल्मी कहानियां लिखनी अगर बंद नहीं की तो कुछ दिनों मुझे कोई फिल्मी पत्रिका वाले बुला लेंगे कि भैया हमारे पास आ जाओ नौकरी करने, और दिन भर बैठ कर अपनी मुलाकातों, बातों की कहानियां छापते रहो। पता नहीं आपमें से कितनों को याद है कि पहले टाइम्स ग्रुप की एक पत्रिका आती थी ‘माधुरी’। जिन दिनों माधुरी पत्रिका घर आती थी, उस पर पहला हक मेरी बड़ी बहन का होता। मां-पिताजी को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती और मैं छुप-छुप कर उसे पढ़ता। मुझे तब माधुरी पत्रिका पढ़ने की छूट नहीं थी, क्योंकि घर के लोगों को लगता था कि फिल्मी पत्रिका पढ़ कर उनका संजू बिगड़ जाएगा। मेरे लिए दो पत्रिकाएं घर पर आती थीं – चंपक और नंदन।
संजय सिन्हा
साइनाइड ढूंढते ढूंढते उनमें प्यार हो गया और मरने का कार्यक्रम कैंसिल कर आपस में विवाह कर लिया
Sanjay Sinha : मैने ये कहानी कब, कहां और कैसे पढ़ी है मुझे जरा भी याद नही। कहानी भी लगता है कुछ कुछ ही याद है। लेकिन जितनी कहानी याद है उससे मेरी आज की बात पूरी हो जाएगी। कहानी इस तरह है – एक लड़का किसी लड़की के प्रेम में धोखा खाकर ज़िंदगी से निराश हो गया। उसे लगने लगा कि अब ज़िंदगी में कुछ बचा नहीं, और मन ही मन तय कर लिया कि अब मर जाना चाहिए। उसने मरने की सबसे आसान विधा के बारे में पढ़ा और ये समझ पाया कि अगर पोटैशियम साइनाइड जैसा जहर कहीं से मिल जाए तो मौत बेहद आसान हो जाएगी। पोटैशियम साइनाइड मतलब जुबां पर रखो और सबकुछ सदा के शांत।
जब टीवी टुडे ग्रुप के पत्रकार संजय सिन्हा ने सड़क पर गिरी एक अनजानी लड़की की जान बचा ली
संजय सिन्हा
Sanjay Sinha : कल मैंने यमराज के एक चंपू को चैलेंज किया। आप सोच रहे होंगे कि मैं सुबह-सुबह ये क्या फेंक रहा हूं। लेकिन मैं फेंक नही रहा, बल्कि सच कह रहा हूं। हुआ ये कि 9 अगस्त की रात मैं दिल्ली से जयपुर गया, अपनी बहन से राखी बंधवाने। वोल्वो बस से सारी रात यात्रा करते हुए मैं सुबहृ-सुबह जयपुर पहुंच गया था और जयपुर में एक रात रह कर कल सुबह की बस से मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। बस आधे रास्ते यानी मिडवे पर रुकी, चाय पानी के लिए। वहां सबने कुछ न कुछ खाया, फ्रेश हुए और वापस बस में बैठने के लिए पहुंचे ही थे कि एक ल़ड़की खड़े खड़े अचानक रो़ड पर गिरी। ऐसा लगा जैसे पल भर में उसका संसार खत्म हो गया। वो खड़े खड़े ऐसे गिरी थी कि सब के सब भौचक्के रह गए।
वो अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखना चाहता है!
संजय सिन्हा
Sanjay Sinha : हमारे फेसबुक परिवार के एक सदस्य ने गज़ब की इच्छा जाहिर की है। उन्होंने मेसेज बॉक्स में आकर मुझे लिखा है कि उनकी दिली तमन्ना है कि वो अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखें। वाह! रिश्ता हो तो ऐसा हो। यही खासियत है रिश्तों की। रिश्ता जो कभी आपको जीने के लिए प्रेरित करता है, तो कभी मर जाने के लिए उकसाता है। लेकिन इन दोनों स्थितियों से परे भी एक स्थिति होती है और उसी स्थिति की कल्पना हमारे फेसबुक परिवार के इस सदस्य ने की है। वो जीना नहीं चाहते, वो शायद मरना भी नहीं चाहते, वो चाहते हैं अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखना।