मेरठ के हाशिमपुरा में 28 साल पहले हुए जनसंहार मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है। यह खुलासा मेरठ एक रिटायर्ड आईपीएस ने किया है जो उस वक्त मेरठ से सटे गाजियाबाद के एसपी थे। प्रख्यात लेखक और रिटायर्ड आईपीएस विभूति नारायण ने खुलासा किया कि हाशिपुरा जनसंहार मामले में तत्कालीन सरकार ने पीएसी फोर्स के विद्रोह के डर से समुचित कार्रवाई नहीं की थी।
उसके बाद सत्ता में आई तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकारों ने पीडि़तों को न्याय दिलाने की बजाए इस मामले को दबाने की कोशिश की। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व आईपीएस ने अलीगढ़ विश्विद्यालय में आयोजित एक सेमीनार में कहा कि 22 मई 1987 को मेरठ के हाशिमपुरा में 40 से ज्यादा मुसलमानों की सामूहिक हत्या की वारदात देशा में हिरासत में जनसंहार की सबसे बड़ी घटना है, और इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की एक अदालत की ओर से हाल ही में सुनाए गए फैसले में हाशिमपुरा कांड के पीडि़तों को इसलिए न्याय नहीं मिला क्योंकि इसमें पूर्व में की गई जांच आधी अधूरी थी।
उन्होंने कहा कि जिस वक्त यह कांड हुआ था, उस वक्त वरिष्ठ पुलिस अफसरों की बैठक में उन्होंने पीएसी के उन अधिकारियों और जवानों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने की बात रखी थी, जिनके खिलाफ उस सामूहिक हत्याकांड में संलिप्तता के प्रथम दृष्ट्या स्पष्ट सुबूत थे। उस वक्त मुझ से कहा गया था कि अगर कार्रवाई की गई तो पीएसी विद्रोह कर देगी। तब मैंने कहा था अगर पीएसी बगावत करती है तो उससे निपटने के लिए सेना बुलाई जाएगी लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई और 24 घंटे के भीतर ही मेरे हाथ से जांच लेकर सीआईडी को सौंप दी गई, और उसके बाद जो हुआ वो सबके सामने है।
उन्होंने कहा कि इससे भी ज्यादा हैरत की बात तो यह है कि उसके बाद कितनी ही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारें आईं और गईं लेकिन सभी पीडि़तों को इंसाफ दिलाने की बजाए इस मामले को दबाने में लगी रहीं। सबकी कोशिश यही रही कि पीडि़तों को न्याय नहीं मिले।