मेरठ के हाशिमपुरा में 28 साल पहले हुए जनसंहार मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है। यह खुलासा मेरठ एक रिटायर्ड आईपीएस ने किया है जो उस वक्त मेरठ से सटे गाजियाबाद के एसपी थे। प्रख्यात लेखक और रिटायर्ड आईपीएस विभूति नारायण ने खुलासा किया कि हाशिपुरा जनसंहार मामले में तत्कालीन सरकार ने पीएसी फोर्स के विद्रोह के डर से समुचित कार्रवाई नहीं की थी।
Tag: hashimpura
हाशिमपुरा जनसंहार की पुनर्विवेचना के लिए सड़क पर उतरेगा आईएनएल : मोहम्मद सुलेमान
कानपुर : मेरठ के हाशिमपुरा जनसंहार पर हालिया आए अदालती फैसले के बाद, पीडि़तों के इंसाफ के सवाल पर इंडियन नेशनल लीग ने यहां प्रेस क्लब कानपुर में एक प्रेस काफ्रेंस का आयोजन किया। प्रेस काफ्रेंस को इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्म्द सुलेमान, रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब एडवोकेट तथा सामाजिक कार्यकर्ता एखलाक हुसैन चिश्ती ने संबोधित किया।
हाशिमपुरा कांड : नाइंसाफी पर जवाब दें अखिलेश और मुलायम सिंह
लखनऊ : हाशिमपुरा जनसंहार पर आए अदालती फैसले पर रिहाई मंच कार्यालय पर बुधवार को हुई बैठक में विभिन्न राजनैतिक व सामाजिक संगठनों ने अप्रैल में राजधानी लखनऊ में जन सम्मेलन करने व प्रदेश में जन अभियान चलाने का निर्णय लिया। बैठक में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, मेरठ, हाशिमपुरा, मलियाना, कानपुर, बिजनौर समेत विभिन्न सांप्रदायिक हिंसा व जनसंहार पर जांच हेतु गठित आयोगों की रिपोर्ट को सरकार पर छिपाने का आरोप लगाते हुए सपा सरकार से तत्काल इन्हें सार्वजनिक करने की मांग की गई।
हाशिमपुरा : बेगुनाह कौन है इस शहर में कातिल के सिवा
निकल गली से तब हत्यारा, आया उसने नाम पुकारा, हाथ तौल कर चाकू मारा, छूटा लोहू का फव्वारा, कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी? ( रघुवीर सहाय)। क्या दिव्य संयोग है कि जब कई हाई प्रोफाइल केसों में सरकार की पैरवी कर चुके वकील उज्ज्वल निकम खुलासा कर रहे थे कि सरकार ने अजमल आमिर कस्साब को कभी बिरयानी नहीं खिलाई, बल्कि उसके पक्ष में बन रहे माहौल को रोकने के लिए उन्होंने (निकम) ने यह कहानी फैलाई थी, ठीक उसके बाद मेरठ के हाशिमपुरा जनसंहार के 16 आरोपियों को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कोई भी सबूत पेश नहीं किए जा सके।
हाशिमपुरा नरसंहार- उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास का एक काला अध्याय
जीवन के कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो जिन्दगी भर आपका पीछा नहीं छोडते। एक दु:स्वप्न की तरह वे हमेशा आपके साथ चलतें हैं और कई बार तो कर्ज की तरह आपके सर पर सवार रहतें हैं। हाशिमपुरा भी मेरे लिये कुछ ऐसा ही अनुभव है। 22/23 मई सन 1987 की आधी रात दिल्ली गाजियाबाद सीमा पर मकनपुर गाँव से गुजरने वाली नहर की पटरी और किनारे उगे सरकण्डों के बीच टार्च की कमजोर रोशनी में खून से लथपथ धरती पर मृतकों के बीच किसी जीवित को तलाशना- सब कुछ मेरे स्मृति पटल पर किसी हॉरर फिल्म की तरह अंकित है।