मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान सहित उनकी पूरी पार्टी भाजपा लगातार ये दावे करती रही है कि व्यापमं कोई बहुत बड़ा महाघोटाला नहीं है और इसकी जांच खुद उन्होंने ही शुरू करवाई। मुख्यमंत्री तो खुद को व्हिसल ब्लोअर भी बताते रहे हैं और पहले सीबीआई जांच से बचते रहे और जब देखा कि सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले को सीबीआई को सौंपने जा रहा है तब आनन-फानन में सीबीआई जांच करवाने का अनुरोध-पत्र सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर दिया। सीबीआई ने हालांकि व्यापमं घोटाले की जांच शुरू कर दी है और सुप्रीम कोर्ट तो व्यापमं से अधिक बड़ा और गंभीर घोटाला डीमेट को बता रहा है और इसकी भी सीबीआई जांच होगी। इधर नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा को एक बार फिर जोरदार सफलता मिली, जिसे व्यापमं घोटाले की क्लीन चिट के रूप में भी जमकर प्रचारित किया जा रहा है।
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मुख्यमंत्री से लेकर पूरी भाजपा और यहां तक कि नई दिल्ली में बैठे बड़े मंत्री व नेता भी कह रहे हैं कि व्यापमं घोटाले का कोई असर जनता में नहीं पड़ा और एक बार फिर भाजपा को शानदार सफलता मिली। यह बात अगर सच मान भी ली जाए तो इसका मतलब यह कतई नहीं निकलता कि व्यापमं और डीमेट घोटाला हुआ ही नहीं। ये तो कांग्रेस का नकारा और निकम्मापन है जो वह आज तक इस घोटाले को जन-जन तक नहीं पहुंचा सकी और ना ही तथ्यात्मक तरीके से अपनी बात रख पाई। वो तो नई दिल्ली के टीवी पत्रकार की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद नई दिल्ली के तमाम न्यूज चैनलों ने 4 दिन तक हल्ला मचाया, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट भी अलर्ट हुआ और संसद तक इस घोटाले की गूंज रही। मध्यप्रदेश की कांग्रेस तो और भी ढीली है, जिसने कभी भी ऐसे मुद्दों को दमदारी से नहीं उठाया।
यह बात भी सच है कि मध्यप्रदेश सरकार का व्यापमं के साथ-साथ अन्य घोटालों के मामले में मीडिया मैनेजमेंट भी बेहतर रहा है और एक बार फिर प्रदेश का मीडिया व्यापमं महाघोटाले को बहुत कम कवरेज दे रहा है, मगर अखबार दैनिक भास्कर ने 20 अगस्त को मध्यप्रदेश के लोकायुक्त और एसआईटी प्रमुख का जो साक्षात्कार प्रकाशित किया, उसे पढऩे के बाद तो मुख्यमंत्री से लेकर पूरी भाजपा की पोलपट्टी बखूबी उजागर हो जाती है, जिसमें इन दोनों शख्सियतों ने व्यापमं को ऐसा भयावह भ्रष्टाचार बताया जो उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा और ना सुना। मध्यप्रदेश के लोकायुक्त जस्टीस पी.पी. नावलेकर सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं और उनकी बात कम महत्वपूर्ण नहीं रखती। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मैंने अपने जीवन में कई केस देखे, लेकिन कभी व्यापमं जैसा मामला सामने नहीं आया। सबसे बड़ा अफसोस तो यह है कि मेहनत करने वाले बच्चों का हक मारा गया, उनके सपने टूटे और कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि कोई घोटाला इतना व्यापक हो सकता है। जो हुआ वह बिल्कुल कल्पना से परे है और अब सीबीआई से उम्मीद है कि घोटाले की पूरी परतें खुले और पूरा सच उजागर हो।
इसी मामले पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर व्यापमं घोटाले की जांच कर रही एसटीएफ पर निगरानी के लिए एसआईटी का गठन किया गया था। इसके प्रमुख जस्टिस चन्द्रेस भूषण बनाए गए, जो सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल तो रहे, वहीं हाईकोर्ट जज रहते हुए सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने साक्षात्कार में कहा कि अपने जीवन में सैंकड़ों केस देखे, लेकिन व्यापमं जैसा व्यापक केस कभी सामने नहीं आया। यह कल्पना से परे है और अब पूरी सच्चाई सीबीआई जांच से सामने आने की उम्मीद है। संभवत: अन्य राज्यों में भी ऐसे घोटाले होंगे और मैं मध्यप्रदेश सरकार को इस बात का क्रेडिट देना चाहूंगा कि उसने इसे सामने लाने की कोशिश की, भले ही आधी-अधूरी कोशिश हो। श्री भूषण ने यह भी सच्चाई स्वीकार की कि एसटीएफ जांच में भी कमी रही, जो वे अभी नहीं बता सकते… अब सवाल यह है कि मध्यप्रदेश की दो प्रमुख जांच एजेंसियों के सर्वोच्च जब यह मान रहे हैं कि व्यापमं घोटाला वाकई अत्यधिक व्यापक है, जो उनकी कल्पना से भी परे रहा और इसकी अभी तक सही जांच नहीं हो सकी और सीबीआई से उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी के सारे दावे इस साक्षात्कार से ही झूठे साबित हो जाते हैं, जो बार-बार ये कहते रहे हैं कि व्यापमं इतना बड़ा घोटाला नहीं है और एसटीएफ उसकी सही जांच कर रहा था। कांग्रेस हालांकि लोकायुक्त और एसआईटी प्रमुख की कही गई बातों के आधार पर भाजपा के दावों की पोल खोल सकती है, मगर दिक्कत यह है कि कांग्रेस इन बातों और तथ्यों से अनभिज्ञ रही होगी या किसी मैनेजमेंट के चलते बोल नहीं पा रही है।
लेखक राजेश ज्वेल पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं. उनसे सम्पर्क 098270-20830 या [email protected] के जरिए किया जा सकता है.