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यह तो शार्ली आब्दी का सरासर अपमान है!

Dayanand Pandey : हमारे भारतीय समाज में ही नहीं पूरी दुनिया में ही लेखक वर्ग अपनी सहिष्णुता, अपने प्रतिरोध और न झुकने के लिए जाना जाता है। इस के एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। भारत में भी, दुनिया में भी। लेखक टूट गए हैं, बर्बाद हो गए हैं, पर झुके नहीं हैं। अपनी बात से डिगे नहीं हैं। व्यवस्था और समाज से उन की लड़ाई सर्वदा जारी रही है। हर कीमत पर जारी रही है। इसी अर्थ में वह लेखक हैं। लेकिन इधर कुछ लेखकों में पलायनवादिता की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। इन लेखकों में एक सब से बड़ी दिक्कत आई है तानाशाही प्रवृत्ति की। इस तानाशाही ने लेखक बिरादरी का बड़ा नुकसान किया है।

<p>Dayanand Pandey : हमारे भारतीय समाज में ही नहीं पूरी दुनिया में ही लेखक वर्ग अपनी सहिष्णुता, अपने प्रतिरोध और न झुकने के लिए जाना जाता है। इस के एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। भारत में भी, दुनिया में भी। लेखक टूट गए हैं, बर्बाद हो गए हैं, पर झुके नहीं हैं। अपनी बात से डिगे नहीं हैं। व्यवस्था और समाज से उन की लड़ाई सर्वदा जारी रही है। हर कीमत पर जारी रही है। इसी अर्थ में वह लेखक हैं। लेकिन इधर कुछ लेखकों में पलायनवादिता की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। इन लेखकों में एक सब से बड़ी दिक्कत आई है तानाशाही प्रवृत्ति की। इस तानाशाही ने लेखक बिरादरी का बड़ा नुकसान किया है।</p>

Dayanand Pandey : हमारे भारतीय समाज में ही नहीं पूरी दुनिया में ही लेखक वर्ग अपनी सहिष्णुता, अपने प्रतिरोध और न झुकने के लिए जाना जाता है। इस के एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। भारत में भी, दुनिया में भी। लेखक टूट गए हैं, बर्बाद हो गए हैं, पर झुके नहीं हैं। अपनी बात से डिगे नहीं हैं। व्यवस्था और समाज से उन की लड़ाई सर्वदा जारी रही है। हर कीमत पर जारी रही है। इसी अर्थ में वह लेखक हैं। लेकिन इधर कुछ लेखकों में पलायनवादिता की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। इन लेखकों में एक सब से बड़ी दिक्कत आई है तानाशाही प्रवृत्ति की। इस तानाशाही ने लेखक बिरादरी का बड़ा नुकसान किया है।

तानाशाही इस अर्थ में कि हम जो कहें वही सही। अगर भूले से भी कोई असहमत हो जाए उन के कहे से या लिखे से तो यह लेखक बलबला जाते हैं। ऐसे गोया उन पर कितना बड़ा अत्यचार हो गया हो! भाई वाह! आपका विरोध, विरोध है, दूसरे का विरोध अत्याचार! इतनी भी सहिष्णुता शेष नहीं रह गई है कि आप किसी का विरोध भी न सह सकें अपने लिखे को लेकर तो आप लेखक हैं किस बात के? ऐसे ही समाज से और व्यवस्था से लड़ेंगे और कि उसे बदलेंगे? इस तरह छुई-मुई बन कर? इतनी भी रीढ़ आप में अगर बाकी नहीं रह गई है कि किसी का विरोध न सह सकें आप तो क्या डाक्टर ने कहा है कि आप लेखक बने रहिए?

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बात यहीं तक नहीं है अंगुली कटवा कर शहीद बनने कि ललक भी लेखकों में बहुत तेज़ी से बढ़ी है। तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन का मामला ताज़ा-ताज़ा है। मैं ने मुरुगन कि कोई रचना नहीं पढ़ी है। लेकिन उनके बाबत फेसबुक पर भेड़िया धसान देख रहा हूं। सुना है अंग्रेजी चैनलों पर भी चर्चा कुचर्चा है। लेकिन सब से ज़्यादा हैरतंगेज है मुरुगन कि तुलना शार्ली आब्दी से कर देना। लोगों को इतनी तमीज भी नहीं है कि शार्ली आब्दी को बरसों से धमकियां मिल रही थीं, इस्लामी संगठनों से लेकिन उस टीम ने अपनी जान दे दी पर अपना काम, अपना विरोध नहीं छोड़ा। मारे जाने के बाद भी उनका वह काम उनके साथी पूरी ताकत से जारी रखे हैं। बिना डरे और बिना झुके। और मुरुगन कि बहादुरी देखिए कि एक विरोध का प्रतिकार वह फेसबुक पर अपने लेखक के मरने की कायराना घोषणा कर के देते हैं। और उनके अंध समर्थक जो उन्हें कभी पढ़े भी नहीं हैं, उन्हें शार्ली आब्दी घोषित कर देते हैं। यह तो कोई बात नहीं हुई दोस्तों! यह तो शार्ली आब्दी का सरासर अपमान है!

वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से.

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