Pushya Mitra : दिलचस्प है कि कुछ महीने पहले कुछ लोग शहाबुद्दीन की तारीफ जिस अंदाज में करते थे, आज कुछ दूसरे लोग योगी आदित्यनाथ की तारीफ उसी अंदाज में कर रहे हैं। गुंडई से किसी को परहेज नहीं है, बस गुंडा अपना होना चाहिये।
बिहार में प्रभात खबर अखबार में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार पुष्य मित्र के उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….
Chitra Agrawal : आप शहाबुद्दीन और आदित्यनाथ की तुलना कैसे कर सकते हैं? और गुंडा जैसे शब्द? दोनों में कोई समानता, कोई तुलना नहीं। हां हिन्दुत्ववाद के मुद्दे पर आप उसे नापसंद कर सकते हैं लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं कि उन्हें शहाबुद्दीन के साथ खड़ा कर दिया जाए। शहाबुद्दीन के कारनामों के बारे में तो खुद आपने इतना लिखा है लेकिन योगी आदित्यनाथ का एक भी ऐसा काम नहीं है। हां यह ज़रूर है कि वो अपने फायरी विचारों के कारण कट्टरवादी नेता समझे जाते हैं लेकिन आजतक एक भी दंगे करवाने, लोगों के साथ बुरा करने या किसी क्राइम में .योगी आदित्यनाथ का नाम नहीं आया है… और गुंडा अपना होना चाहिए…कैसी भाषा है यह? सच में… क्या आपको ऐसा वाकई लगता है…। दरअसल दूसरों के विचारों, पसंद, नापसंद के प्रति खुलापन होना चाहिए। आप के विचार आपके अपने हैं लेकिन दूसरों के भी अपने स्वतंत्र विचार हैं, अगर उनका आपसे इत्तिफाक नहीं है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आप उसे जज कर सकते हैं या उसकी पसंद को गुंडे का नाम दे सकते हैं।
Pushya Mitra मेरी नजर में दोनों गुंडे हैं। इनका देश में और मानवता की भावना में कोई भरोसा नहीं है।
Chitra Agrawal फिर आपमें और उन न्यूज़ चैनल के अन्य पत्रकारों में क्या फर्क है जो अपनी राय के आधार पर लोगों को जज करते हैं और बिना सही बात जाने उनको प्री कन्सीव्ड नोशन्स के आधार पर कतारों में खड़ा कर देते हैं।
Pushya Mitra आप सोच सकती हैं। मगर मेरे लिये अपना सच ही महत्वपूर्ण है। मैं गलत को गलत कहना कभी नहीं छोड़ूंगा
Chitra Agrawal एक बात और जैसा कि आपने खुद अपनी पोस्ट में मोदी जी के लिए लिखा था कि जब तक मोदी के विरोधी रहेंगे वो और मज़बूत, और ज्यादा मज़बूत होंगे, ज़रा सोचिए अब वैसा ही कुछ आप योगी आदित्यनाथ के साथ कर रहे हैं। लोग उन्हें जितना नीचे गिराएंगे, दरअसल में उनकी छवि उतनी ही करिश्माई बनेगी।
Pushya Mitra इस चक्कर में मैं एक दंगाई मानसिकता के व्यक्ति का समर्थन नहीं कर सकता।
Jai Kumar Singh पुष्य मित्रा जी आपके शब्दों में अजीब सी बू आती है! एक पत्रकार के लिए अशोभनीय है। योगी आदित्यनाथ जी को जनता ने बहुमत से चुनाव किया है। आपकी गाली योगी के लिए नहीं वरन जनता को है। खास विचारधारा के साथ पत्रकारिता छोड़ दें। धन्यवाद!
हिमांशु कुमार घिल्डियाल ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी पूर्वाग्रही पत्रकार ही पत्रकारिता को बदनाम करते हैं। यही कारण है कि सोशल मीडिया के आने के बाद इनकी प्रासांगिकता और विश्वसनीयता ही ख़त्म हो गई है तथा इन पर आम आदमी भरोसा ही नहीं कर पाता है। ये सही खबर को छुपा कर, छापने की कीमत मांग कर,तोड़ मरोड़ कर तथा एक निश्चित एजेंडे पर चलकर अपने ऐशो आराम का सामान जुटाते हैं। अब तक की सभी सरकारों ने इस तथाकथित चौथे स्तम्भ को रीढ़ विहीन कर दिया है।
Ajay KS पुष्यमित्र जी आज आपका पाला पक्के टाइप के भक्तों से पड़ा है। बिरहिनि के खोंता में हाथ दाल दिए हैं। फिर भी डंटे रहिये ।
Sumit Choudhary आपको योगी को समझने के लिए गोरखपुर जाना पड़ेगा। कहीं आप भी योगी को वैसा ही तो नहीं समझ रहे जैसा मोदी को गुजरात दंगे के बाद समझा गया था।
Anand Sharma कहीँ आप त्वरित अतिवादी प्रतिक्रिया तो नहीँ दे रहे शाहाबुद्दीन और योगी को एक प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा कर……मैं योगी को सम्पूर्णता से जानना चाहता हूँ
Pushya Mitra आप एक बुरे व्यक्ति में अच्छाई तलाशना चाह रहे हैं। आप योगी को इसलिये मौका देना चाहते हैं क्योंकि अगर वह बुरा भी हुआ तो आपका हमारा नुकसान नहीं करेगा।
Jai Kumar Singh क्या बुराई है बतायें। हिंदू होना गुनाह है और हिंदुत्व की बातें अपराध है ? उन्होंने कब और कहां दूसरे धर्म के लोगों को गाली दी है?
Praveen Jha योगी-ओवैसी का भेद निकालिए। शहाबुद्दीन जी तो जेल में ही रहते हैं।
Pushya Mitra मैं साम्राज्य के मामले में कह रहा हूँ। बाकी योगी की तुलना छोटे ओबैसी से हो सकती है। बड़ा भाई पढ़ा-लिखा समझदार है।
Praveen Jha यह अवश्यंभावी था। इसमें बित्ता भी शक नहीं था। पाँच बार लगातार सांसद रहे। यूपी में उनसे बड़े कद का कोई नेता नहीं। हिंदुत्व एजेंडा के पूरे भारतवर्ष में सबसे बड़े नेता हैं योगी (आडवाणी जी और मोदीजी के बाद)। इतनी बड़ी बहुमत में किसी ऐरू-गैरू के चुनाव का मतलब ही नहीं। बाकी, योगीजी का एक और पहलू है, उस पर फिर कभी। वो मुलायम जी के खास रहे हैं, और बैकग्राउंड इमेज अलग रखी है। बड़े टैक्टिकल आदमी हैं। मुझे पक्का यकीन था, उनके नतीजे के बाद वाले दो मिनट के भाषण से ही।
Shubam Kuamar Rai योगी और शहाबुद्यीन की तुलना करना मानसिक दिवालीएपन की निशानी है
Dharmendra Pandey योगी जनता की चुनी हुई सरकार के सदस्य और जननेता हैं तथा लोकतंत्र की अपनी मर्यादा है। शहाबुद्दीन अदालत द्वारा दोष सिद्ध व्यक्ति हैं पर योगी के साथ ऐसा कुछ नहीं है। दोष देने वाले तो उच्चतम न्यायालय द्वारा बरी मोदी को भी बहुत कुछ कहते हैं पर एक पत्रकार की हैसियत से बस इतना ही कहना चाहूंगा कि जब तक व्यक्ति न्यायपालिका द्वारा दोषी न पाया जाए तब तक खुद ही व्यक्तिगत आकलन के आधार पर कोई कटु शब्द प्रयोग न करें। यही नियम राष्ट्रदोह के आरोप में गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति पर भी लागू होता है, जबकि उस गुनाह पर खिलाफ का अदालती फैसला न आया हो।
Indu Bhushan शाहबुद्दीन से योगी की तुलना करके आपने हाईट ही कर दिया। योगी पर आज आपका लगातार कई पोस्ट पढ़कर आपकी मानसिक स्थिति के बारे में ही सोचता रहा हूँ। सर पानी पीजिये और आराम कीजिये।
Abhay Dubey तिहाड की बैरक और लखनऊ की गद्दी मे कुछ तो अंतर होगा?
Satyendra Singh आपके तर्क के हिसाब से भगवान श्री राम भी और देश के सीमा प्रहरी या सैनिक भी “गुंडो” की श्रेणी मे आयेंगे, क्योकि वे भी नर संहारक हैं! धन्य हैं आपकी मानसिकता और पत्रकारिता ।
Naresh Jha बेटा बिहार में रहते रहते लालू वाला बुद्धि हो गया है का। कुछ दिन आराम क्यों नहीं कर लेते। पत्रकार का कमी है क्या। एक से एक नमूने हैं।
Girish Pandey आप जैसे गंभीर आदमी को सुनी सनाई बात पर टिप्पड़ी नही करनी चाहिए।
Navin Kr Roy आप पत्रकार हो सकते हो पर यह जरूरी नही कि आप बुद्धिजीवी भी हो। जैसे कोई डिग्रीधारी हो सकता है,पर जरूरी नही कि शिक्षित भी हो। पता नहीं क्यों अधिकाँश पत्रकार अपने आप को राष्ट्रीय कर्णधार क्यों समझने लगते हैं। अखबारों में खबर लिखो भाई, तुम्हारी सोच और ज्ञान की सीमा इससे अधिक नही है। जैसे ही तुमने शहाबुद्दीन से योगी जी की तुलना की, वैसे ही तुम्हारे ज्ञान की सीमा का पता चल गया।
Gopalji
July 14, 2015 at 7:21 pm
कुछ ब्यूरोक्रेट्स के भ्रष्टाचार और स्वार्थलिप्सा के कारण देश आज भी आज़ाद नहीं है।