प्रवीण सिंह-
एक थे मिस्टर फैक्ट चेकर। राजधानी की पुलिस ने उठा लिया। तब से लोकतंत्र खतरे में है। लेकिन मामला कुछ ऐसा है कि महाशय ने ट्रोलर्स की तरह एक टीवी डिबेट का क्लिप काटा और उसे वायरल कर दिया। यह वैसा ही था जैसे कि एक राजनीतिक दल का आईटी सेल देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के युवराज के खिलाफ करता रहता है।
मिस्टर फैक्ट चेकर के इस क्लिप ने भारत के अलावा दुनिया के तमाम देशों में बवाल मचा दिया। भारत की छीछालेदर हुई ठीक ठाक।
मिस्टर फैक्ट चेकर अपने धर्म के प्रवर्तक पर कथित टिप्पणी से आहत थे। लेकिन इनके पुराने ट्वीट वगैरह खंगालने पर पता चलता है कि दूसरे धर्म से जुड़े मीम्स खूब शेयर करते थे।
भाई फैक्ट चेकर प्रगतिशीलता एकतरफा नहीं होती। जिस तरह अपने धर्म पर हुई टिप्पणी से आहत हुए हो, दूसरे धर्म लोग भी उसी तरह आहत हो सकते हैं।
मिस्टर फैक्ट चेकर के साथ इनके समर्थक प्रगतिशील लोगों से कहना है कि बस कीजिए। रहने दीजिए लोकतंत्र बचाने को। आपके इस हॉफ सेक्युलरिज्म वाले रवैये से और भी मुश्किल पैदा हो रही हैं।
अमिताभ श्रीवास्तव-
धार्मिक भावनाएं आहत होने के मामले में ज़ुबैर और रतनलाल की फटाफट गिरफ्तारी हो जाती है लेकिन नूपुर शर्मा बची रहती हैं। ऐसी पक्षपाती न्याय प्रणाली पर अविश्वास न हो तो और क्या हो।
दिलीप मंडल-
300 से ज़्यादा लोकसभा सांसदों वाली पार्टी की सरकार इतनी सहमी-सहमी क्यों है? इसमें आत्मविश्वास की कमी क्यों है? कब तक ये कहती रहेगी कि उसने मुझे छू दिया। उसने मुझे देख लिया। उसने मुस्कुरा दिया। Alt News वाले ज़ुबैर ज़्यादातर सांप्रदायिक मामलों की फैक्ट चेकिंग करते हैं। इनसे बीजेपी को नुक़सान कहाँ है। फिर भी डर?
आगाज़ सिद्दीकी-
Alt News के को-फाउंडर और फैक्ट-चेकर मोहम्मद ज़ुबैर को नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे साम्प्रदायिक-वैमनस्यता फैलानेवाले भाजपाईयों को अंतरराष्ट्रीय-मंच तक हाईलाइट करना महंगा पड़ गया है।
जिन नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के खिलाफ देशभर में FIR दर्ज़ हुईं और जिनके कारण दुनियाभर में देश की छवि खराब हुई उन्हें गिरफ्तार करने के बजाय सरकारी सुरक्षा दी जा रही है जबकि उनकी करतूतें उजागर करनेवाले को सरकारी शिकंजे में ले लिया गया है।
मुहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी भी भाजपा सरकार के लिए गले की फांस बन सकती है क्योंकि ज़ुबैर की गिरफ्तारी से फिर दुनियाभर में नूपुर शर्मा की गलीज़ हरकत हाईलाइट होगी।
अशोक कुमार पांडेय-
राहुल गांधी जी, तेजस्वी यादव जी, अखिलेश यादव जी, जयंत चौधरी जी, YSR जी सहित विपक्ष के कई नेताओं ने स्पष्ट तौर पर ज़ुबैर की गिरफ़्तारी का विरोध किया।
केजरीवाल साहब को तो मैं विपक्ष मानता नहीं, लेकिन उनके अलावा बाक़ी लोगों को भी इस मसले पर बोलना चाहिए। तीस्ता के लिए भी आवाज़ें उठनी चाहिए।
संजय कुमार सिंह-
जो अपने ही आदमी को नहीं पहचान पाए !!
दिल्ली पुलिस को कोमल शर्मा नहीं मिली, नुपुर शर्मा नहीं मिली ज़ुबैर को ढूंढ़ लिया। इन्हें आप साधारण मामलों में रख सकते हैं। कोई मिले नहीं मिले यह तो साधारण बात हो सकती है। लेकिन दिलचस्प यह है दिल्ली पुलिस अपने अधिकारी / कर्मचारी को ढूंढ़ना तो छोड़िये, पहचान नहीं पा रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किए गए व्यक्ति की मौत के दो साल बाद दिल्ली पुलिस अपने ही आदमी की पहचान के लिए नकद पुरस्कार की योजना बना रही है। खबर के अनुसार आरोपी कार्मिकों के खिलाफ सबूत तलाशने में बार-बार ठोकर खाने के बाद यह योजना है।
रवीश कुमार-
वह झूठ उजागर कर रहा था, तब उससे ख़तरा हो गया। धर्म के नाम पर नफ़रत के खेल को उजागर किया, तो उसी से नफ़रत हो गई। ज़ुबैर जेल में है। आहत भावनाओं के इस खेल में उन्हें ख़तरा नहीं, जो झूठ के तंत्र के साथ हैं। ख़तरा उन्हें है जो झूठ को उजागर करते हैं।
अमरीका में भारत के चीफ जस्टिस ने कहा है कि नागरिकों को स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए अथक परिश्रम करना चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ के कहा है कि सरकार के झूठ को उजागर करते रहना चाहिए। इन दोनों काम के कारण ज़ुबैर जेल में है। उम्मीद के मुताबिक़ आप इसे भी अनदेखा ही करेंगे। आपकी सुविधा सर्वोच्च है। वैसे भी कुछ निंदा कर रहे हैं और बहुत लोग जश्न मना रहे हैं। फ़र्क़ किसे पड़ता है।