प्रभात डबराल-
आप पत्रकारिता की बात कर रहे हैं कि हम १८० देशों में १६०वें नम्बर पर हैं…मैं ये सोचकर हैरान हूँ कि अगर कोई ऐसा सर्वे पत्रकार यूनियनों के बारे में हो तो हमारी यूनियनें किस पायदान पर मानी जायेंगी…
मैं NUJ की बात नहीं कर रहा. वो तो संघ का आनुषांगिक संगठन है. मैं बात कर रहा हूँ IFWJ और उससे टूट कर अलग हुए IJU और उनसे जुड़े राज्य संगठनों की…
iFWJ में १९८७/८८ में एक युगांतरकारी परिवर्तन हुआ. सीपीएम से जुड़े पत्रकार नेताओं की मदद से कोटमराजू विक्रम राव अध्यक्ष बन गए. और तब से वही अध्यक्ष हैं. IFWJ विक्रम राव की जेब में दम तोड़ रही है.
कोटमराजू विक्रम राव के ख़ास पट्ठे एस के पांडे भी लगभग उसी समय १९८७/८८ में ही DUJ के सेक्रेटरी बने थे. वो CPM के माने जाते हैं. बाद में पांडे और विक्रम राव में भी ठन गई. लेकिन दिल्ली में पांडे ने विक्रम राव को घुसने नहीं दिया.
पांडे भी १९८७/८८ से DUJ पर क़ाबिज़ हैं. कभी अध्यक्ष रहते हैं और कभी जनरल सेक्रेटरी. कोई और वहाँ आ ही नहीं सकता. DUJ का क़रीब तीन हज़ार वर्ग फुट का आफिस दिल्ली के दिल कनाट प्लेस में है. सौ दो सौ करोड़ से कम का क्या होगा. ये तो वो है जो नंगी आँखों से दिखाई देता है.
विक्रम राव पर उनके विरोधियों ने जो आरोप लगाये हैं वो लिखने लगें तो उपन्यास बन जाएगा.
चालीस साल से IFWJ पर विक्रम राव का व्यक्तिगत क़ब्ज़ा है और DUJ पर पांडे का.
ऐसी यूनियनों से आप क्या उम्मीद करेंगे…और वो क्या खा कर पत्रकारिता का झंडा बुलंद करेंगी….