पत्रकारों की टूटी दोस्ती, आपसी मधुर रिश्तों मे पड़ी फूट, मोदी विरोध में कई पत्रकारो की गयी नौकरियाँ, दो खेमों में बंटे पत्रकार, लखनऊ के दो नामी पत्रकार दोस्तों की दोस्ती का हुआ कत्ल.. : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के भक्तों और विरोधी पत्रकारों मे इन दिनों तलवारें खिंची हैं। सोशल मीडिया का बढ़ता रिवाज ऐसे विवादों में आग में घी का काम कर रहा है। भाजपाई और गैर भाजपाई पत्रकारों के दो गुट तैयार हो गये हैं। जो गाहे-बगाहे कभी किसी मुद्दे पर तो कभी किसी मसले पर आपस मे भिड़ जाते हैं।
मोदी भक्ति और विरोध में होती तकरारों मेँ कई नामीगिरामी पत्रकारों की दोस्ती में दरार आ गयी है। ऐसा ही कोई विवाद दारू के जाम लड़ने के साथ लड़ाई की शक्ल पैदा कर देता है तो कभी सोशल मीडिया पर माँ-बहन की गालियो की नौबत आ जाती है। प्रेस क्लब, मीडिया सेन्टर और पत्रकारों के whats app ग्रुप्स आये दिन मोदी समर्थन और विरोध का अखाड़ा बन जाते हैं। कल लखनऊ में ऐसा ही जबरदस्त वाकिया हुआ। दो नामीगिरामी वरिष्ठ पत्रकार आपस मे भिड़ गये। एक अंग्रेजी अखबार से जुड़े हैं, क्षत्रिय पत्रकारों की शान हैं। बड़े संगठनों में चुने हुए पत्रकार नेता भी रहे हैं। ये काफी समय तक दैनिक जागरण लखनऊ में भी रहे हैं। दूसरे मियाँ भाई हैं। प्रदेश के बड़े पत्रकारों मे शुमार हैं इनका नाम। ये भी एक बड़े पत्रकार संगठन में अध्यक्ष चुने जा चुके हैं। काँग्रेस के बड़े नेताओं से बहुत ही करीबी रिश्ते हैं इनके। ये लम्बे अरसे से एक उर्दू अखबार निकाल रहे हैं।
ये दोनों दिग्गज पत्रकारों का दोस्ताना रिश्ता रहा है लेकिन मोदी समर्थन और मुखालिफत के टकराव में कल इन दोनों पत्रकारों की दोस्ती का कत्ल हो गया। कल रात का ये झगड़ा लखनऊ के पत्रकारों की चर्चा का विषय बना हुआ है। इस लड़ाई पर वरिष्ठ पत्रकारों को नसीहत देने वाली नज्म भी मौका-ए-झगड़े पर लिख दी गयी :-
न मोदी काम आयेँगे, न राहुल आयेँगे
अपने ही काम आते हैं, अपने ही काम आयेँगे।
तुम दफन होगे तो क्या राहुल भी वहाँ आयेँगे !
जब जलोगे आप तो मोदी भी कहाँ आयेँगे !
जो हैं हमपेशा, हमारे दोस्त अपने जाँनशीँ।
मेरे मरने पर हमारे साथ ये ही जायेँगे।
न कबुतर न बटेरे न मुर्गे लड़वायेँगे,
ये सियासी लोग हैं आपस मे ही भिड़वायेँगे।
रहेगा ‘राज न यारो के बहादुर किस्से,
फुजूल बातो में रिश्ते खत्म करायेँगे।
सियासी खेल हैं मुद्दे ‘जदीद मरकज’ के
तुम्हारा जज्बा हो कमजोर तो भड़कायेँगे।
जो टूट जायेँगे रिश्ते तो कौन देगा “हिसाब”
हुकुमते जो चलाते हैं मस्कुरायेँगे।।
नवेद शिकोह
पत्रकार
लखनऊ
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